Navratri in Kushinagar: सच्चे मन से मांगी गयी हर मुराद पूरी करती हैं धर्मसमधा की माता

Kushinagar News: जनपद रामकोला नगर पंचायत क्षेत्र में पडरौना- रामकोला मार्ग पर स्थित प्रसिद्ध धर्मसमधा देवी का मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। ऐसी मान्यता है कि यहां सच्चे दिल से मांगी गई हर मुराद माता पूरी करती हैं ।

Update:2023-10-18 16:37 IST

सच्चे मन से मांगी गयी हर मुराद पूरी करती हैं धर्मसमधा की माता: Photo-Newstrack

Kushinagar News: जनपद रामकोला नगर पंचायत क्षेत्र में पडरौना- रामकोला मार्ग पर स्थित प्रसिद्ध धर्मसमधा देवी का मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। ऐसी मान्यता है कि यहां सच्चे दिल से मांगी गई हर मुराद माता पूरी करती हैं । माता अपने भक्तों को कभी निराश नहीं करती हैं। इसलिए हर समय भारी संख्या में श्रद्धालु मां का दर्शन करने आते हैं और अपनी मन्नतें मांगते हैं। वैसे तो यहां वर्ष भर श्रद्धालु पूजा अर्चना करने आते है लेकिन नवरात्रि में काफी भीड़ रहती है।

धर्मसमधा देवी मंदिर अति प्राचीन है। यहां के देवी मां की महिमा और ऐतिहासिकता के विषय में पुजारी लालमन तिवारी ने बताया कि धर्मसमधा देवी मां कुसम्ही के मल्ल गणराज्य के राजा मदन पाल सिंह की कुलदेवी हैं । एक बार की बात है कि रामकोला थाने पर एक दरोगा त्रिजुगी नारायण गश्त पर निकले ननथे तभी उन्होंने सोमल के किनारे एक सफेद वस्त्र धारी महिला को देखा। दरोगा ने उक्त महिला का पीछा किया वह महिला भागते हुए धर्मसमधा नामक स्थान पर आयीं और एक खंडहर में अंतर्ध्यान हो गई । दरोगा जी काफी खोजबीन किए । शीघ्र ही उन्हें आभास हो गया कि वह श्वेता वस्त्र धारी महिला दिव्य शक्ति हैं। उन्होंने अपने सहकर्मियों के सहयोग से उस स्थल पर एक छोटा सा स्थान बनवा दिया। जिस पर बाद में एक छोटा सा मंदिर बना। धीरे-धीरे मंदिर की प्रसिद्धि बढ़ती गई और आज यहां पर एक भव्य मंदिर बन गया है।

क्या है इतिहास

इसी मंदिर के बगल में पोखरो के बीच में सती माता का भी एक मंदिर है। इस मंदिर का भी ऐतिहासिक महत्व है जो मल्ल राजा मदन पाल सिंह की पुत्री से जुड़ा हुआ है। राजा के दरबार की ज्योतिषाचार्यों ने राजा के पुत्री की कुंडली को देख कर बताया कि सुहागरात के समय इस कन्या के पति को बाघ मार देगा। राजा ने इसके लिए धर्मसमधा नामक स्थान पर पोखर ओं के बीच में एक महल बनवाया जहां पर उनकी पुत्री और दामाद सुहागरात का समय बिता सकें। राजा ने सोचा था कि तालाब पार कर बाघ तो आएगा नहीं । लेकिन विधि का विधान कोई नहीं टाल सकता है। नाउन के उबटन की झिल्ली से बाघ बन गया और राजकुमारी के पति को मार डाला। राजकुमारी अपने पति के साथ चिता में सती हो गई। जो भी श्रद्धालु धर्मसमधा देवी मंदिर का दर्शन करने आते हैं वे अवश्य सती माता का दर्शन करते हैं। सती माता मन्दिर में नीम के पेड़ पर देवी देवताओं की आकृति उभरी आकृति को भक्त गण माथा टेक रहे हैं। धर्मसमधा देवी मंदिर आने वाले भक्तों के लिए यह आकर्षण का केंद्र बन गया है।


नीम के पेड़ पर उभरी देवी देवताओं की प्रतिमा बनी आकर्षण का केंद्र

सती माता का मंदिर दो पोखरों के बीच में है। मथुरा दास बाबा के समय यहां सती माता और अन्य देवी देवताओं के छोटे-छोटे मंदिर थे। इन्हीं मंदिरों के बीच में एक विशाल नीम का पेड़ था । जब मंदिर का निर्माण भव्य रूप में शुरू हुआ तो पुजारी नीम के पेड़ को जड़ से नहीं कटवाये बल्कि उपर से उसकी कटाई छंटाई कर दी गई है। यह पेड़ मंदिर के लिंटर के नीचे ही सती माता के मंदिर और भोले बाबा के शिवलिंग के बीच में है।

मंदिर के पुजारी त्रिलोकी मिश्रा ने बताया कि ध्यान से देखने पर सबसे नीचे सती माता का की आकृति, बीच में गणेशजी और हनुमान जी की आकृति दिखती है। पेड़ पर बनी इन आकृतियों पर भक्त गण सिंदुर, फूल आदि चढ़ाकर पूजा अर्चना करते देखे गए। धर्मसमधा देवी मंदिर में वर्ष भर श्रद्धालु आते हैं। मंदिर वर्तमान में भव्य रूप में विद्यमान है। मंदिर की प्रसिद्धि दिन पर दिन बढ़ रही है। यहां प्रत्येक माह में देवी मां के समक्ष लड़के लड़कियों की शादियां होती हैं ।शारदीय नवरात्र और चैत नवरात्र में काफी भीड़ होता है। मंदिर में दुर्गा माता का प्रतिमा व चरण पादुका है। कहा जाता है कि माता रानी जब यहां खड़ी हुई तो वही उनके चरण का निशान रह गया। श्रद्धालु अपनी मन्नतें मानते हैं और पूरा होने पर कढ़ाई, नारियल, चुनरी आदि चढ़ाने आते हैं।

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