कोरोना का कहर: सिस्टम की नाकामी से हुई ऑक्सीजन की कमी
ऑक्सीजन भी दो तरह की होती है- औद्योगिक और मेडिकल। मेडिकल ऑक्सीजन 99.5 फीसदी प्योर होती है।
लखनऊ: कोरोना की पहली लहर का एक सबसे बड़ा सबक ये था कि संक्रमित मरीजों में ऑक्सीजन (Oxygen) थेरेपी बहुत कारगर है और इस थेरेपी के चलते बहुत कम मरीजों को वेंटिलेटर पर रखने की जरूरत पड़ती है। लेकिन इतनी महत्वपूर्ण जानकारी होने के बावजूद हमारे देश का हेल्थ सिस्टम कोरोना (Coronavirus) की दूसरी लहर के लिए रत्ती भर तैयारी नहीं कर सका। नतीजा ये है कि देश के लगभग सभी राज्य मेडिकल ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहे हैं, कालाबाजारी चरम पर है और मरीज बिना ऑक्सीजन मारे जा रहे हैं।
ऑक्सीजन भी दो तरह की होती है- औद्योगिक और मेडिकल। मेडिकल ऑक्सीजन 99.5 फीसदी प्योर होती है और इसे मानव शरीर में चिकित्सा के इस्तेमाल के लिए ही बनाया जाता है। मेडिकल ऑक्सीजन के सिलिंडर में कोई अन्य गैस जरा सी भी नहीं नहीं होती। दूसरी ओर औद्योगिक ऑक्सीजन का इस्तेमाल स्टील समेत विभिन्न उद्योगों में किया जाता है। ये ऑक्सीजन मानव प्रयोग के लिए उपयुक्त नहीं होती है।
भारत में प्रोडक्शन और एक्सपोर्ट
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, देश में 7127 मीट्रिक टन की उत्पादन क्षमता है। अब स्टील प्लांट्स में मौजूद सरप्लस ऑक्सीजन का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। एक बात बहुत महत्वपूर्ण है कि भारत ने अप्रैल 2020 से जनवरी 2021 के बीच 9 हजार मीट्रिक टन ऑक्सीजन का निर्यात किया था। कॉमर्स मिनिस्ट्री के अनुसार, वर्ष 2020 में सिर्फ 4500 मीट्रिक टन ऑक्सीजन निर्यात की गई। जनवरी 2020 में भारत ने सिर्फ 352 मीट्रिक टन ऑक्सीजन निर्यात की थी। दिसंबर 2020 में 2193 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का निर्यात हुआ जबकि 2019 के दिसंबर में मात्र 538 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का एक्सपोर्ट हुआ था। साल भर में यानी जनवरी 2021 आते आते हमारा निर्यात 734 फीसदी बढ़ चुका था। ये वही समय था जब हमें कोरोना की दूसरी लहर के लिए कमर कसनी थी।
वैसे सरकार का कहना है कि अप्रैल 2020 से फरवरी 2021 के बीच 9884 मीट्रिक टन औद्योगिक ऑक्सीजन का एक्सपोर्ट हुआ है। जबकि मेडिकल ऑक्सीजन सिर्फ 12 मीट्रिक टन बाहर भेजी गई है। सरकार का कहना है कि जब औद्योगिक ऑक्सीजन एक्सपोर्ट की जा रही थी उस दौरान मेडिकल ऑक्सीजन का उपभोग सितंबर के मुकाबले आधा हो गया था।
ये तर्क दिया गया है कि औद्योगिक ऑक्सीजन का ही एक्सपोर्ट हो रहा था और देश में रोजाना 7 हजार मीट्रिक टन की उत्पादन क्षमता है, लेकिन आज की भयानक स्थिति में ऑक्सीजन के सभी तरह के औद्योगिक इस्तेमाल पर जिस तरह प्रतिबंध लगा दिया गया है उससे साफ है कि ऑक्सीजन की कमी से निपटने के लिए औद्योगिक और मेडिकल ऑक्सीजन, दोनों को अलग अलग करके नहीं देखा जा सकता। स्पष्ट है कि कोरोना से निपटने के लिए दीर्घकालिक प्लानिंग नदारद रही है।
कौन कंट्रोल कर रहा सप्लाई
मौजूदा हाल में देश में ऑक्सीजन की सप्लाई आदि को प्रधानमंत्री कार्यालय यानी पीएमओ द्वारा गठित एम्पावर्ड ग्रुप कंट्रोल कर रहा है। यही ग्रुप राज्यों को ऑक्सीजन सप्लाई की निगरानी कर रहा है। इस एम्पावर्ड ग्रुप में समस्त राज्य, सभी प्रमुख ऑक्सीजन उत्पादक, पेट्रोलियम व विस्फोटक सुरक्षा संगठन, सड़क परिवहन मंत्रालय और भारतीय रेलवे शामिल है। इसी ग्रुप ने 22 अप्रैल से औद्योगिक इस्तेमाल के लिए ऑक्सीजन सप्लाई पर प्रतिबंध लगा दिया है। सिर्फ फार्मा समेत 9 उद्योगों को प्रतिबंध से अलग रखा गया है।
बता दें कि कोरोना की स्थिति मार्च के अंत से ही तेजी से बिगड़ना शुरू हो चुकी थी। अब ऑक्सीजन सप्लाई संकट से निपटने में स्वास्थ्य मंत्रालय, वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय, उद्योग व आंतरिक व्यापार प्रोमोशन विभाग और सेंट्रल ड्रग्स कंट्रोल आर्गेनाईजेशन लगे हुए हैं।
अनसुलझे सवाल
- सरकार का अगर ये दावा है कि हमारे देश में ऑक्सीजन प्रोडक्शन की पर्याप्त कैपेसिटी है तो फिर किल्लत क्यों है?
- अगर पीएमओ के एम्पावर्ड ग्रुप द्वारा ऑक्सीजन की सप्लाई कंट्रोल की जा रही है तो देश में ऑक्सीजन की कमी के लिए कौन जिम्मेदार और दोषी है?
- पूरे एक साल तक भारी मात्रा में ऑक्सीजन एक्सपोर्ट करने के का क्या मतलब था? कोरोना की संभावित लहर के लिए पहले से तैयारी क्यों नहीं की गई?