CM के शहर में दुर्दशा ग्रस्त हो चुका है बाबा राघवदास द्वारा स्थापित कुष्ठाश्रम

Update: 2017-08-06 08:02 GMT

गोरखपुर: प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ के आवास से गोरखनाथ पीठ से मात्र 3 किलो मीटर की दूरी पर राजेंद्र नगर में वर्ष 1951 से स्थित कुष्ठ सेवाश्रम दुर्दशा की मार झेल रहा है। जहां पूरे देश में स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत शौच मुक्त भारत की कल्पना की जा रही है, वहीं इस कुष्ठ सेवाश्रम में एक भी शौचालय नहीं है।

जो पूर्व में बने भी हुए हैं, वो भी टूटे हुए निष्प्रयोज्य हैं। जिसके कारण कुष्ठ रोग से पीड़ित मरीज और आश्रम के कर्मचारियों को भारी दिक्कतें उठानी पड़ रही है। इसके अलावा यहां पर डॉक्टर और नर्स की कमी भी है। वर्तमान में यहां तीन कर्मचारी इस आश्रम को चला रहे हैं। जिसमें यहां के प्रभारी चिकित्सक जो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जंगल कौड़िया से अटैच किए गए हैं। एक नर्स जो संविदा पर है और एक अन्य कर्मचारी है।

इस कुष्ठाश्रम का इतिहास बताते चलें तो कुष्ठ रोगियों की भयावहता को देखते हुए समाजसेवी बाबा राघव दास द्वारा तिलक जयंती के दिन 1951 ने गोरखपर- सोनौली मार्ग पर स्थित राजेंद्र नगर में कुष्ठ सेवाश्रम की स्थापना की गई थी। जो मुख्यमार्ग पर स्थित है। उस समय जमींदार सुभानअल्लाह के ऐशगाह में मात्र 8 डिसमिल जमीन में इसे स्थापित किया गया क्योंकि आजादी के बाद भारत- पाकिस्तान बंटवारे के बाद सुभान अल्लाह पाकिस्तान चले गए थे। तब बाबा राघव दास ने उस हवेली में कुष्ठ आश्रम खोल दिया और कुष्ठ रोगियों की सेवा करने लगे।

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धीरे-धीरे उस आश्रम में 200 रोगी आ गए। फिर आश्रम को कुछ और जमीन दान में मिल गई तथा आश्रम का एरिया बढ़ कर 23 डिसमिल हो गया। बाबा राघव दास के कुष्ठ रोगियों की सेवा भाव को देखते हुए तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ0 राजेंद्र प्रसाद ने अपने पैतृक गांव जीरादेई में कुष्ठ आश्रम की स्थापना की थी। लेकिन बाबा राघव दास के निधन के बाद कुष्ठ आश्रम की स्थिति बिगड़ गई और अमेरिका की संस्था हेल्पेज इंडिया कार्पोरेशन ने आश्रम का सहयोग करना बंद कर दिया तो रोगी भी पलायन करने लगे। रोगियों की संख्या घट कर 30 हो गई। उसके बाद प्रशासनिक लापरवाही से कुछ आसामाजिक तत्व कुष्ठाश्रम की जमीन पर कब्जे का प्रयास करने लगे।

जब मामला जिला प्रशासन तक पंहुचा तो 1982- 83 में उस समय के तत्कालीन जिलाधिकारी पंडित सुरति नारायण मणि ने उसे प्रशासन के अधीन करते हुए उसकी निगरानी के लिए एक कमेटी बना दी। जिसमें डीएम अध्यक्ष ,सिटी मजिस्ट्रेट सचिव बनाए गए। उसके बाद आश्रम प्रशासन के हाथों में चला गया। तब से लेकर आज तक कुष्ठ आश्रम अपने धीमी रफ्तार से चलता रहा । इस समय आश्रम में 20 रोगी है, जिसमे से कुछ मानसिक अवसादग्रस्त हो गए हैं। जबकि इसकी देखरेख करने वाली कमेटी के लोगों के पर्याप्त ध्यान नहीं देने से वर्तमान में स्थितियां दयनीय बनी हुई है।

वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट स्वच्छ भारत मिशन की कल्पना को साकार करने वाली प्रदेश सरकार में मंत्री विधायक और जन प्रतिनिधि भी इधर मुड़ कर नहीं देखते। वर्तमान में आश्रम में कर्मचारियों का भी टोटा है, मात्र तीन कर्मचारी 20 रोगियों की इलाज और देखरेख में लगे हैं । जिसमें से डॉ0 डी के साहनी चिकित्सक, जो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जंगल कौड़िया यहां अटैच है। गुड़िया पांडेय स्टॉफ़ नर्स संविदा पर और रविशंकर श्रीवास्तव एकाउंटेंट के पद पर कार्यरत हैं। इस कुष्ठाश्रम में रोगियों की चिकित्सा की समुचित व्यवस्था नहीं है और स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत पूरे देश को शौच मुक्त करने का सपना इस सेवाश्रम में दम तोड़ता दिखाई देता है।

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