इंसानियत का कातिल लोहिया अस्पताल, सीएमएस बोले- सुबह 10 बजे ऑफिस आना

Update: 2017-11-20 19:55 GMT

अमित यादव

लखनऊ: राजधानी का प्रसिद्ध लोहिया अस्पताल कभी अपनी बेहतर चिकित्सा के लिए जाना जाता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। आए दिन मरीजों के उत्पीड़न की यहां से ख़बरें मिलना आम बात हो गई है। मरीजों की डाक्टर सुनते नहीं और कर्मी बिना पैसा लिए कुछ करते नहीं। सूबे के दूर दराज के इलाकों से आए मरीज और उनके परिजन यहां आकर डाक्टरों और कर्मियों के शोषण का शिकार बनते हैं। मरीजों के परिजन थकहार कर पैसे देने को राजी हो जाते हैं तब कहीं मरीज को सुविधा नसीब होती है। सोमवार को भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला है। मजे की बात ये है कि जब कोई दुर्व्यवहार की शिकायत उच्चाधिकारियों से करता है, तो वहां से भी उसे दुत्कार मिलती है।

क्या है पूरा मामला

हॉस्पिटल के महिला वार्ड में सीतापुर, महमूदाबाद की काजमा खातून (26 वर्ष) को उनके पति इस्लाम 10 नवंबर को इस उम्मीद के साथ एडमिट कराया था कि राजधानी के इतने नामी अस्पताल में उनका बच्चा सुरक्षित जन्म लेगा। पत्नी को भी अच्छा इलाज मिलेगा। लेकिन उनके सपनों को किसी की नजर लग गई। बड़े ऑपरेशन से होने वाला नवजात शिशु काल के गाल में समा गया। अब पत्नी भी दर्द से व्याकुल है। एक तो बच्चे का गम और अब पत्नी का दर्द इस्लाम से सहा नहीं जाता।

इस्लाम के मुताबिक उनकी पत्नी बेड नंबर 26 पर एडमिट है। उसे पिछले 10 दिनों से यूरिन नहीं हो रहा। पेट फूलने लगता है। सही से ड्रेसिंग न होने के चलते टाकों में मवाद पड़ गया है। वो दर्द से चीखती चिल्लाती है। लेकिन कोई स्वास्थ्य कर्मी उसकी सुनता नहीं।

इस्लाम का आरोप है कि जब मै नर्स या वार्ड बॉय को बुलाता हूं, तो वो पैसे की मांग करते हैं। इसके बाद किसी तरह पाइप के माध्यम से शरीर से यूरिन निकाला जाता है।

इस्लाम के साथ जब न्यूजट्रैक डॉट कॉम के संवाददाता ने बात की तो उसकी आखें भर आई। रुंधे गले से उसने कहा कि काजमा के टांके मवाद से भर गए हैं। यूरिन नहीं होता। पेट बेतहाशा फूलने लगता है, तो उसे असहनीय दर्द होता है। लेकिन हमारी यहां कोई नहीं सुनता। सब पैसे के पीछे पागल हैं।

इसके बाद जब हमारे संवाददाता ने सीएमएस संजीव भार्गव से बात करनी चाही तो वो भड़कते हुए उल्टा सीधा बोलने लगे। उन्हें इस बात पर आपत्ति थी कि देर शाम क्यों फोन किया जा रहा है। काफी कहासुनी के बाद उन्होंने इस्लाम को मंगलवार सुबह 10 बजे ऑफिस आने को कहा। जब इस समय मरीज की राहत के लिए उनसे मदद मांगी गई, तो उन्होंने साफ़ कह दिया कि उसकी कोई मदद नहीं हो पाएगी।

अब इसके बाद जो बड़ा सवाल उठता है। वो ये है कि इतने जिम्मेदारी वाले पद पर बैठा कोई भी इंसान इतना अमानवीय कैसे हो सकता है कि उसे किसी की दर्द भरी चीखें पिघला न सकें। सवाल ये भी है कि सीएम योगी और उनकी सरकार जो स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं, वो क्या ऐसे अधिकारियों के बलबूते संभव हो सकेंगे।

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