Loksabha Election 2024: अखिलेश के हमले पर बिफरीं मायावती, मुलायम सिंह यादव का जिक्र कर किया जोरदार पलटवार
Loksabha Election 2024: अखिलेश यादव ने बसपा के इंडिया गठबंधन में शामिल होने से जुड़े एक सवाल का जवाब देते हुए कहा कि 2024 के चुनाव के बाद वह क्या करेंगी, इसका कोई भरोसा नहीं है।
Loksabha Election 2024. लोकसभा चुनाव को लेकर उत्तर प्रदेश में सियासी बिसात बिछने लगी है। सत्तारूढ़ एनडीए की अगुवाई कर रही भारतीय जनता पार्टी एक-एक कर अपने सहयोगी दलों से मुलाकात कर रही है और उनसे आगे की रणनीति पर चर्चा कर रही है। वहीं, इंडिया गठबंधन में शामिल प्रदेश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी सपा ने भी अपनी कमर कस ली है। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव कांग्रेस और रालोद जैसे दलों के साथ सीट शेयरिंग पर चर्चा कर ही रहे हैं, साथ ही जनवादी पार्टी और महान दल जैसे छोटे-छोटे राजनीतिक दलों को भी एडजस्ट करने की कोशिश में जुटे हैं।
लेकिन सपा मुखिया बहुजन समाज पार्टी को किसी भी सूरत में अपने अलायंस में शामिल नहीं करना चाहते हैं। कांग्रेस और बसपा के बीच गुपचुप मीटिंग की भनक लगते ही अखिलेश ने इंडिया अलायंस की चौथी मीटिंग में कांग्रेस से स्पष्टीकरण मांग लिया था और एक तरफ से साफ कर दिया था कि मायावती के रहते उनका रहना संभव नहीं है। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव ने एकबार फिर बीएसपी सुप्रीमो मायावती पर हमला बोलते हुए उनकी सियासी विश्वसनीयता पर सवाल उठाया है। यादव ने बसपा के इंडिया गठबंधन में शामिल होने से जुड़े एक सवाल का जवाब देते हुए कहा कि 2024 के चुनाव के बाद वह क्या करेंगी, इसका कोई भरोसा नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर वह आती हैं तो कौन भरोसा दिलाएगा कि चुनाव बाद भी वह हमारे साथ ही रहेंगी। इस पर भड़कीं मायावती ने जवाबी हमला बोला है।
मायावती ने अखिलेश पर किया पलटवार
अखिलेश यादव के इस बयान पर मायावती की ओर से भी प्रतिक्रिया आई है। उन्होंने एक्स पर अखिलेश के पिता और सपा संस्थापक दिवंगत मुलायम सिंह यादव का जिक्र कर जोरदार पलटवार किया है। पूर्व मुख्यमंत्री ने लिखा, अपनी व अपनी सरकार की ख़ासकर दलित-विरोधी रही आदतों, नीतियों एवं कार्यशैली आदि से मजबूर सपा प्रमुख द्वारा बीएसपी पर अनर्गल तंज़ कसने से पहले उन्हें अपने गिरेबान में भी झांककर जरूर देख लेना चाहिए कि उनका दामन भाजपा को बढ़ाने व उनसे मेलजोल के मामले में कितना दाग़दार है।
अपने एक अन्य ट्वीट में मायावती लिखती हैं - तत्कालीन सपा प्रमुख द्वारा भाजपा को संसदीय चुनाव जीतने से पहले व उपरान्त आर्शीवाद दिए जाने को कौन भुला सकता है। और फिर भाजपा सरकार बनने पर उनके नेतृत्व से सपा नेतृत्व का मिलना-जुलना जनता कैसे भूला सकती है। ऐसे में सपा साम्प्रदायिक ताकतों से लडे़ तो यह उचित होगा। बीएसपी चीफ ने अपने इस ट्वीट में मुलायम सिंह यादव का नाम न लेते हुए सपा पर बीजेपी के साथ मिलीभगत का आरोप लगाया है।
माया-अखिलेश की दोस्ती ऐसे दुश्मनी में बदली
दरअसल, 2019 के आम चुनाव में अखिलेश यादव ने बड़ी उम्मीद के साथ बसपा से गठबंधन किया था। इसमें रालोद भी शामिल थी। उन्हें उम्मीद थी कि 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव की तरह यहां भी महागठबंधन कमाल दिखाएगी और बीजेपी को तगड़ा नुकसान होगा। लेकिन नतीजे इसके विपरीत आए। सपा जहां 2014 की तरह इस बार भी 5 सीटों पर सिमट गई, वहीं 2014 में शून्य पर सिमटी बसपा 10 सीटें जीतने में सफल रहीं। रालोद का एक बार फिर खाता नहीं खुल पाया।
नतीजों से स्पष्ट हो गया कि मायावती की अगुवाई वाली बसपा सपा उम्मीदवारों को अपना वोट ट्रांसफर नहीं करा पाई। जबकि सपा के वोट बसपा उम्मीदवारों को ट्रांसफर हुए। इन सबके बाद मायावती ने सपा पर चुनाव के दौरान विश्वासघात करने का आरोप लगाते हुए गठबंधन तोड़ दिया। 2022 में आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में भी बसपा ने अपने उम्मीदवार खड़े करके सपा का गढ़ माने जाने वाली इस सीट पर बीजेपी की जीत आसान कर दी। बताया जाता है कि इन्हीं सब चीजों को लेकर अखिलेश अब मायावती के साथ किसी प्रकार का चुनावी गठबंधन करने के मूड में बिल्कुल नहीं हैं।