Sultanpur Loksabha Election 2024: सुलतानपुर लोकसभा सीट पर मेनका गांधी ने अकेले संभाली कमान
Sultanpur Loksabha Election 2024: सुलतानपुर लोकसभा सीट पर मेनका की विजय यह बता देगी कि भाजपा के स्टार प्रचारकों के बिना भी वह अकेले सपा व बसपा से निपटने में सक्षम हैं। सपा या बसपा की जीत यह साबित कर देगी कि विकास व जनसंपर्क नहीं सुलतानपुर को जातियां पसंद हैं।
Lok Sabha Election 2024: गोमती नदी के किनारे बसे सुलतानपुर जिले के ही रहने वाले मजरूह सुलतानपुरी ने लिखा है कि हम हैं मता-ए-कूचा ओ बाजार की तरह, उठती है हर निगाह खरीददार की तरह। मता (सामान)-ए-कूचा (तंग गली) यानी गली पर रखे सामान, या फुटपाथ की दुकान। सुलतानपुर की सियासत में नेताओं का आना-जाना भी कुछ ऐसा ही है। यहां कई बड़े दिग्गज नेता आए चुनाव व सुविधा के अनुसार कभी टिके और कभी ठिकाना बदल लिया। बावजूद इसके सपा को छोड़कर सभी राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों को यहां की जनता ने ‘सुलतान’ बनाया है। फिलहाल, इस बार भाजपा ने मेनका गांधी को दोबारा उतारकर पार्टी ने बड़ी जिम्मेदारी दे दी है। जबकि सपा ने इतिहास बदलने के लिए राम भुआल निषाद को चुनावी रण में उतारा है। वहीं बसपा ने इतिहास दोहराने के लिए उदराज वर्मा को उम्मीदवार बनाया है। इस बार यहां कुल 9 उम्मीदवार मैदान में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। लेकिन सुलतानपुर लोकसभा सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है।
तीनों मुख्य पार्टियों की यह है रणनीति
सुलतानपुर लोकसभा सीट पर भाजपा के स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल एक भी नेता अभी तक मेनका के चुनाव को धार देने नहीं आया है। मेनका गांधी की तरफ से भी पार्टी नेताओं से यहां किसी बड़े नेता को भेजने की सिफारिश नहीं की गई है। अवध क्षेत्र के इस हिस्से में आने वाली 1200 ग्राम पंचायतों में से 1100 पंचायतों को कवर करने का जिम्मा मेनका ने खुद ही उठाया है। स्टार प्रचारकों को अपने चुनाव में न बुलाने के पीछे मकसद यह है कि ध्रुवीकरण की राजनीति खेल बिगाड़ सकती है। मेनका अपने पांच साल के काम के आधार पर सभी जाति-वर्ग में वोट मांग रही हैं। उनका मानना है कि इस काम की बदौलत ही इस बार भी चुनावी नैया पार लगेगी। हां, इतना जरूर है कि उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री संजय निषाद यहां चुनाव प्रचार के लिए आते हैं, तो उनका भाजपा कार्यकर्ता तहेदिल से स्वागत करेंगे। कारण साफ है कि इंडिया गठबंधन से सपा उम्मीदवार राम भुआल निषाद को उतार कर भाजपा के परंपरागत निषाद मतदाताओें में गहरी सेंधमारी की तैयारी की है। बता दें कि सपा के उम्मीदवार राम भुआल निषाद पहले भाजपा में ही थे। भाजपा से पहले वे बसपा में थे। राम भुआल दो बार विधायक और बसपा सरकार में राज्यमंत्री रहे हैं। फिलहाल उनके पक्ष में इंडिया गठबंधन की ओर से अखिलेश यादव ही जनसभा किए। कांग्रेस का गांधी परिवार इस सीट पर अभी तक चुनाव प्रचार करने नहीं आया है। जबकि राहुल और प्रियंका पड़ोस में ही रायबरेली व अमेठी में डेरा डाले हुए थे। वहीं हाल ही में लोकसभा चुनाव 2019 में मेनका गांधी के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरें सपा बसपा के संयुक्त उम्मीदवार बाहुबली नेता चंद्र भद्र सिंह 'सोनू' सपा में शामिल हो गए हैं। उस चुनाव में उन्होंने मेनका गांधी की राह मुश्किल कर दी थी।
बसपा ने भी यहां से खेला पिछड़ा कार्ड
बसपा प्रमुख मायावती ने यहां से कुर्मी समुदाय के उदराज वर्मा को टिकट देकर पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी के लगातार नौवीं बार संसद पहुंचने की राह में रोड़े अटका दिए हैं। उदराज वर्मा पहली बार जिला पंचायत सदस्य चुने गए हैं। अब सीधे लोकसभा की तैयारी में है। सुलतानपुर लोकसभा क्षेत्र में आने वाली चार विधानसभा सीटों पर भाजपा और एक पर सपा का कब्जा है। सुलतानपुर लोकसभा सीट पर लोकसभा चुनाव 2014 में वरुण गांधी के बाद 2019 में मेनका गांधी ने परचम फहराया था।
यहां चीनी मिल का मुद्दा सबसे अहम
सुलतानपुर लोकसभा क्षेत्र में सहकारी चीनी मिल सबसे बड़ा मुद्दा है। जो चीनी मिल वर्तमान में है, उसकी गन्ना पेराई की क्षमता बहुत कम है। क्षेत्र में होने वाली गन्ने की फसल को लेकर किसानों को हैदरगढ़ जाना पड़ता है। सीजन के समय मुख्य मार्ग पर जाम लगता है। मिल तक गन्ना ले जाने की लागत में किसान आधा हो जाता है। किसान को अपने गन्ने के लिए यहां चीनी मिल चाहिए। क्षेत्र के करीब बीस हजार किसान वर्तमान में सहकारी चीनी मिल से जुड़े हैं। अन्य किसानों को अपना गन्ना फैजाबाद और अंबेडकरनगर ले जाना पड़ता है। गन्ना ले जाने में लागत ज्यादा आती है। इस सीट के जो भी नतीजों आयेंगे उसमें बड़ा संदेश छिपा रहेगा। यदि मेनका गांधी इस सीट पर विजयी होती हैं, तो गांधी नेहरू परिवार के खाते में उत्तर प्रदेश में एक और सीट जुड़ जायेगी। मेनका की विजय यह भी बता देगी कि भाजपा के स्टार प्रचारकों के बिना भी वह अकेले सपा व बसपा से निपटने में सक्षम हैं। सपा या बसपा की जीत यह साबित कर देगी कि विकास व जनसंपर्क नहीं सुलतानपुर को जातियां चाहिए।