आरबी त्रिपाठी
लखनऊ: अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने अपनी नाक ऊंची करने के चक्कर में एक फैसला क्या लिया, संत समाज में तो युद्ध ही छिड़ गया है। अखाड़ा परिषद इस मामले को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाए बैठा, लेकिन शेष संत समाज इसे अनाधिकार चेष्टा बताकर कहने लगा है कि अगर वह सूची माफी सहित वापस न ली, तो वह अखाड़ों के विवादित संतों की पोल खोलने का अभियान चला देंगे।
फिर पता चलेगा कि कौन असली है और कौन नकली? हालत यहां तक पहुंच गई है कि सूची से संबंधित लोग एक दूसरे को धमकाने और देख लेने तक की धमकी देने से बाज नहीं आ रहे हैं। वरिष्ठ संतों, महंतों, महामंडलेश्वरों और शंकराचार्यों ने अगर इस पर हस्तक्षेप नहीं किया तो शायद वह दिन दूर नहीं जब विवादों की जद में आए कुछ संत और अखाड़ों के कुछ लोग एक दूसरे के सामने हथियार लिए खड़े मिलेंगे या फिर अदालतों के चक्कर काटते नजर आएंगे।
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धमकी देने के मामले में कुछ संतों ने अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि को आरोपों के घेरे में लिया है। अखाड़ा परिषद ने जो फैसला किया है, उससे संत समाज के बीच जातिवाद की बात भी उभर रही है, जो पूरे समाज के लिए घातक साबित हो सकती है। 14 संतों को फर्जी घोषित करने के बाद अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि ने अब संत महासभा को भी फर्जी करार दिया है।
दरअसल संत महासभा ने अखाड़ा परिषद से अनुरोध किया था कि वह 14 संतों की वह सूची वापस ले ले। जब सूची वापस नहीं ली गई तो संत महासभा दिल्ली के जंतर मंतर में एक सम्मेलन बुलाया था, जिसमें तमाम विषयों के साथ-साथ उक्त सूची पर चर्चा हुई और सूची को खारिज कर दिया गया। अखाड़ा परिषद ने इसे अपने ऊपर हमला मानते हुए संत महासभा को ही फर्जी करार दे दिया।
नतीजा यह हुआ कि संत महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणि ने हरिद्वार में कहा कि अखाड़ा परिषद किसी को फर्जी घोषित करने से पहले अपने गिरेबां में झांककर देखे। अपने संगठन का पुलिस वैरिफिकेशन कराकर देखे तो अखाड़ा परिषद में सुपारी किलर प्रतिभानंद जैसों की कमी नहीं है। स्वामी चक्रपाणि यह कहने से नहीं चूके कि संत महासभा तो रजिस्टर्ड है, अखाड़ा परिषद पहले अपना रजिस्ट्रेशन नंबर बताए तो पता चल जाएगा कि कौन असली है और कौन नकली।
प्रतिभानंद नामक सुपारी किलर को पुलिस ने गिरफ्तार किया है लेकिन अखाड़ा परिषद ने उसे अपने यहां से निष्कासित तक नहीं किया है। जांच हो गई तो अखाड़ा परिषद में दर्जनों प्रतिभानंद मिलेंगे। दरअसल, अखाड़ा परिषद ने सूची जारी करके अराजकता फैलाई है और सनातन धर्म को कमजोर करने की कोशिश की है, जिसे संत महासभा किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेगी।
संत महासभा ने अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि से एक सवाल भी पूछा है कि शराब कारोबारी सचिन दत्ता को महामंडलेश्वर किसने बनाया। राधे मां को रातोरात महामंडलेश्वर की पदवी किसने दी। प्रतिभानंद को अखाड़े की सदस्यता किसने दिलाई। मतलब संतत्व की जांच पड़ताल किए बगैर अखाड़ा परिषद पहले किसी को महत्वपूर्ण बनाता है फिर उसे फर्जी घोषित करता है। तो सवाल यह भी उठता है कि फर्जी कौन हुआ। कान खोलकर सुन लीजिए नरेंद्र गिरि! जिनके घर शीशे के होते हैं, वो दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंकते।
विवादों को लेकर सर्वाधिक चर्चा में आए प्रयाग के अखिल भारतीय दंडी सन्यासी प्रबंधन समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता आचार्य कुशमुनि स्वरूप ने कहा है कि महंत नरेंद्र गिरि अब धमकी पर उतर आए हैं। आचार्य कुशमुनि ने दावा किया है कि 15/16 सितंबर की रात नरेंद्र गिरि ने 14-15 बदमाशों को भेजकर धमकी दिलाई है कि अगर तुम नरेंद्र गिरि के खिलाफ बयानबाजी करोगे या उन पर अदालत में मानहानि का मुकदमा करोगे तो तुम्हारी हत्या कर दी जाएगी। आचार्य ने कहा कि इस मामले की पूरी सूचना उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लिखित रूप में भेजी है और उनके साथ किसी तरह की घटना होती है तो इसके लिए अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि और उनके सहयोगियों को जिम्मेदार माना जाए।
शंकराचार्यों के बीच मुकदमेबाजी से भी गरमाया माहौल
ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य पद को लेकर सन 1973 से चल रही मुकदमेबाजी पर हाईकोर्ट के एक फैसले ने भी इसी बीच शंकराचार्यों और फर्जी संतों को लेकर सवाल उठा दिए हैं। फैसला जिस तरह से आया है, उससे मामले के सुप्रीम कोर्ट चले जाने के आसार बढ़ते दिख रहे हैं। पुरी पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने स्वयं मामले के इस दिशा में बढऩे के संकेत दिए हैं। हालांकि मौजूदा समय में इस पद पर विराजमान शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती और इस पीठ के शंकराचार्य होने का दावा कर रहे शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती हाई कोर्ट के फैसले को अपने अपने तरीके से परिभाषित कर इसे अपने अपने पक्ष में बता रहे हैं। इसीलिए कहा जाने लगा है कि यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट जरूर जाएगा।
शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि हाई कोर्ट के आदेश में कहा गया है कि तीन शंकराचार्य मिलकर चौथे शंकराचार्य का चयन करें। मगर इन तीन में से एक शंकराचार्य तो स्वयं वह हैं, जिन पर निर्णय लागू होता है। ऐसे में हो सकता है कि दोनों शंकराचार्य इसके बाद सुप्रीम कोर्ट चले जाएं। हालांकि स्वामी निश्चलांनद चाहते हैं कि दोनों शंकराचार्य आपसी सामंजस्य से विवाद को समाप्त कर दें। शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती के प्रवक्ता के तौर पर ओंकारनाथ त्रिपाठी का कहना है कि हाईकोर्ट का फैसला हमारे पक्ष में है। अब हमें तय करना है कि हम आगे क्या और कैसे करेंगे? इस बारे में जानने के लिए शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के प्रतिनिधि और प्रमुख शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद से संपर्क का प्रयास किया गया लेकिन उनकी टिप्पणी नहीं प्राप्त हो सकी।
आपस में विवाद करके बदनामी न कराएं संत
संत स्वामी हरिचैतन्य ब्रह्मचारी ने समन्वयवादी भाषा का इस्तेमाल किया है। कहा है कि संतों को इस तरह के वाद-विवाद से अलग होकर ईश्वर भजन और जनसेवा का कार्य करना चाहिए। समाज को सही दिशा में ले जाना चाहिए। इस तरह के विवादों और बयानों से संतों की तो बदनामी होती ही है, हमारे सनातन धर्म पर भी आघात पहुंचता है। इसी प्रकार कल्कि पीठाधीश्वर आचार्य प्रमोद कृष्णन ने कहा है कि संत महासभा के अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणि और अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि दोनों सम्मान के योग्य हैं।
वैसे किसी संस्था या संत को फर्जी कहना उचित नहीं। कोई संत किसी के फर्जी होने का प्रमाणपत्र नहीं दे सकता क्योंकि साधु होने वैराग्य, स्वभाव और साधना का विषय है। उन्होंने कहा कि चाहे नरेंद्र गिरि हों, स्वामी चक्रपाणि हों या फिर आचार्य कुशमुनि, गलत और अशोभनीय बयानों से बचें। इससे सनातन धर्म कमजोर होगा और यह करने की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती है।