अखाड़ा परिषद पर चौतरफा हमले, इलाहाबाद के संत को धमकी

Update:2017-10-06 16:05 IST

आरबी त्रिपाठी

लखनऊ: अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने कथित रूप से नकली संतों की सूची क्या जारी की, खुद ही कठघरे में खड़ा हो गया है। संत समाज और धर्माचार्य अब कहने लगे हैं कि अखाड़ा परिषद के कुछ लोगों ने अपनी राजनीति चमकाने और स्वार्थ साधने के चक्कर में दूसरों पर एक अंगुली तो उठाई मगर वे भूल गये कि चार अंगुलियां उनकी ओर स्वाभाविक रूप से उठ गई हैं। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि पर चौतरफा हमले हो रहे हैं। हरियाणा, पंजाब, हरिद्वार, काशी, मथुरा-वृंदावन आदि तीर्थस्थलों और स्थानों के प्रमुख संत अखाड़ा परिषद के इस निर्णय के पूरी तरह खिलाफ हैं।

कुछ संतों ने तो अखाड़ा परिषद के औचित्य पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। धर्माचार्यों का कहना है कि कौन संत हो सकता है और कौन नहीं, यह अखाड़ा परिषद कैसे तय कर सकता है। क्या किसी संत समाज में अखाड़ा परिषद को इस बात की जिम्मेदारी दी गयी है? अखाड़ा परिषद इस बात की ठेकेदारी कब से करने लगा? हम ऐसी अनर्गल घोषणाओं के खिलाफ हैं।

परिषद की अनाधिकार चेष्टा

अखिल भारतीय दंडी संन्यासी प्रबंधन समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी ब्रह्माश्रम जी महाराज का कहना है कि अखाड़ा परिषद अखाड़े के संतों पर नियंत्रण करने के लिए है, दूसरे संप्रदाय या अखाड़े के बाहर वाले संतों के लिए नहीं। निजी वैमनस्य से किसी का निष्कासन या फर्जी घोषित करना अखाड़ा परिषद की अनाधिकार चेष्टा है। अगर अखाड़ा परिषद के बाहर के संत कोई गलत काम करते हैं तो उस संप्रदाय का प्रधान उस पर अंकुश लगाने के लिए अधिकृत हैं। अखिल भारतीय संत महासभा के स्वामी चक्रपाणि ने तो अखाड़ा परिषद के फैसले को पहले ही खारिज कर दिया है।

अखाड़ा परिषद अपना औचित्य बताए

अखिल भारतीय दंडी संन्यासी प्रबंधन समिति के राष्ट्रीय संरक्षक और हरियाणा के नागेश्वर धाम पीठाधीश्वर स्वामी महेशाश्रम ने तो अखाड़ा परिषद पर ही हमला बोल दिया है। उनका कहना है कि पहले अखाड़ा परिषद ही बताए कि उसका कोई औचित्य है क्या? अखाड़ा परिषद स्वामी करपात्री जी ने 1954 में तब बनाया था जब कुंभ मेले में स्नान के लिए संन्यासी और बैरागी अखाड़े के संत आपस में संघर्ष करते थे। इसे रोकने के लिए इस अस्थायी परिषद का गठन हुआ था। इसके तहत किसी भी कुंभ मेले से तीन महीने पहले परिषद गठित होगा और मेला खत्म होते ही भंग हो जाएगा। स्थायीकरण की व्यवस्था थी ही नहीं। कुछ संतों ने अपना महत्व बनाए रखने के लिए अपने मन से इसे स्थायी बना दिया। अखाड़ों का काम धर्म पर होने वाले आघातों को शंकराचार्यों के निर्देशन में रोकना है, न कि स्वयं फैसले कर लेना। कौन संत है, कौन नहीं, अखाड़ा परिषद यह तय करने वाला कौन होता है। यह सूची अनर्गल घोषणा है। इसे कोई नहीं मानता।

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संत अपना आचरण सही रखें

सोहम् संप्रदाय के संत स्वामी अच्युतानंद महाराज ने कहा कि संत समाज अपने दायित्व को स्वयं समझता है। हम अपने आपको सही रखें तो किसे समझाने की जरूरत है कि कौन सही है, कौन नहीं। कौन असली, कौन नकली है, यह कोई संस्था कैसे तय कर सकती है। अच्छा या बुरा घोषित करना अखाड़ा परिषद का काम नहीं। वह अपने अखाड़े की व्यवस्था देखे, उसी का नियंत्रण करे, यही उचित होगा। समाज को वैसे भी अपनी इच्छाओं के अनुरूप काम करने वाले संत ही उचित लगते हैं। संतों को स्वयं का आचरण ठीक रखने की जरूरत है।

अखाड़ा परिषद को अधिकार नहीं

हरिद्वार के स्वामी देव स्वरूपानंद महाराज का विचार है कि समाज खुद देख लेता है, तय कर लेता है कि कौन संत है, कौन नहीं। अखाड़ा परिषद की दृष्टि से कौन संत है, कौन नहीं, यह तय करना उसका काम नहीं है। अखाड़ा परिषद को इस तरह के फैसले लेने का कानूनी अधिकार भी नहीं है। समाज किसको मानता है, किसको नहीं, यह उस पर निर्भर है। अखाड़ा परिषद के ही तमाम संतों का स्तर कितना गिरा है। अखाड़ा परिषद चाहे तो वहां सुधार करे। समाज में कई तरह के लोग होते हैं। लोग अपने अपने स्तर से अच्छा बुरा तय करते हैं। दरअसल, लोग समय पाकर अपनी-अपनी राजनीति कर रहे हैं। इस समय अखाड़ा परिषद में यही हो रहा है।

अखाड़ा परिषद को लेकर उठे विवादों के बीच संयुक्त धर्माचार्य मोर्चा के राष्ट्रीय संयोजक आचार्य कुशमुनि स्वरूप ने इलाहाबाद के सिविल लाइंस थाने में एक अर्जी दी है, जिसमें खुद को जान-माल का खतरा बताते हुए रिपोर्ट दर्ज करने को कहा है। पुलिस ने उनकी अर्जी ले तो ली है, लेकिन उस पर फिलहाल मुकदमा नहीं लिखा है। आचार्य कुशमुनि का कहना है कि बीते दिनों उनके पास एक फोन आया। फोन करने वाले ने खुद को महंत नरेंद्र गिरि का शिष्य और भांजा बताते हुए उन्हें धमकाया है कि अगर तुमने नरेंद्र गिरि के खिलाफ कोई बात कही तो तुम्हें जान से मार देंगे। इस बारे में महंत नरेंद्र गिरि से उनका पक्ष जानने के लिए संपर्क की कोशिश की गई, लेकिन संपर्क नहीं हो सका।

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