UP Election 2022: मुस्लिमों को साधने की कोशिश में मायावती, 23 को करेंगी प्रत्याशियों के चयन पर अंतिम फैसला
UP News: बीते चुनावों में बहुजन समाज पार्टी यूपी में हर वर्ग को साधने की कोशिश में है। इन दिनों वह प्रदेश की आरक्षित सीटों पर भाईचारा सम्मेलनों का आयोजन करवा रही है।;
मायावती (फोटोःन्यूजट्रैक)
UP News: पिछले दो विधानसभा चुनावों में अपेक्षित सफलता से दूर रहने के बाद बहुजन समाज पार्टी यूपी में हर वर्ग को साधने की कोशिश में है। इन दिनों वह प्रदेश की आरक्षित सीटों पर भाईचारा सम्मेलनों का आयोजन करवा रही है। पार्टी की नीति दलितों को ब्राम्हणों और मुस्लिमों के साथ जोड़कर आरक्षित सीटों को जीतने की है। इसी के तहत आज से लखनऊ मंडल की 14 आरक्षित सीटों पर मुस्लिमों को भी शामिल करेगी। इन सम्मेलनों का आयोजन पार्टी महासचिव सतीश चन्द्र मिश्र की देखरेख में करवाए जा रहे है।
यहां यह भी बताना जरूरी है कि प्रदेश में इस समय 86 आरक्षित सीटें हैं। इनमें 84 अनुसूचित जाति के लिए, तो दो सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए हैं। जहां तक बहुजन समाज पार्टी की बात है तो जब 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने अपने दम पर प्रदेश की सत्ता हासिल की थी। हांलाकि उस समय आरक्षित सीटें 89 थीं। तब बसपा ने 62 आरक्षित सीटों पर विजय हासिल की थी।
ब्राह्मण मुस्लिम और अनुसूचित जाति
इसके बाद अगले विधानसभा चुनाव यानी 2012 में जब समाजवादी पार्टी की सरकार बनी तो इन सीटों पर बसपा की ताकत कम हो गयी और वह केवल सीट ही जीत सकी। इस चुनाव में समाजवादी पार्टी ने 58 आरक्षित सीटें जीती। जहाँ तक मुस्लिम प्रत्याशियों की बात है तो जब उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के नेतृत्व में सपा की सरकार का गठन हुआ तो सब से ज्यादा 64 मुसलमान विधायक चुनाव जीत कर आए थे।
इनमें से 41 समाजवादी पार्टी, 15 बसपा, दो कांग्रेस और छह विधायक अन्य दलों से विधानसभा में थे। इससे पहले 2007 के विधानसभा चुनाव में 56 मुसलमान विधायक बने थे जिनमें से 29 बसपा, 21 सपा व छह अन्य दलों के थे। पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा ने सबसे ज्यादा 102 मुस्लिम प्रत्याशी उतारे लेकिन सिर्फ 5 मुस्लिम प्रत्याशी ही चुनाव जीत पाए।
बसपा ने लोकसभा चुनाव 2014 मे सभी 80 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे । तब ब्राह्मण मुस्लिम और अनुसूचित जाति को केंद्र में रखकर 21 सीटे ब्राह्मण प्रत्याशियों को, 19 सीटे मुस्लिम प्रत्याशियों को दी गई थी। अन्य पिछड़ा वर्ग को 15 तथा क्षत्रियों को को सिर्फ 8 सीटे दी थी।
लेकिन मोदी लहर के चलते उसे एक भी सीट नही मिल पासी। यह बात अलग है कि उसका वोट प्रतिशत 19,78 रहा। जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में मायावती ने बड़े ही चतुराई से सीटों का बंटवारा किया और सपा से ऐसी सीटे ले ली जिन पर वह दूसरे स्थान पर थी।
तीनों बडे़ वोट बैंक को साधने की भरसक कोशिश
उत्तर प्रदेश में जब 2007 में मायावती की पूर्ण बहुमत की सरकार थी। तब मायावती का सोशल इंजीनियिरिंग के फार्मूल के तहत ब्राम्हण नेता सतीश चन्द्र मिश्र आल इण्डिया लीगल सेल के अध्यक्ष के तौर काम कर रहे थें। जबकि ब्राम्हणों को पार्टी से जोडे जाने का कार्य ओपी त्रिपाठी, गोपाल नारायण मिश्र तथा रामवीर उपाध्याय देखते थें। जबकि मुस्लिम नेता के तौर पर नसीमुद्दीन सिद्दीकी थें। पर अब संगठन के अंदर सब कुछ बदल गया है। इनमें से अधिकतर नेता अब बसपा में नहीं हैं।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी ताकत का कई बार प्रदर्शन कर चुकी बसपा यहां की 21 आरक्षित सीटों पर इस तरह के सम्मेलनों का आयोजन कर चुकी है। हाल ही में 16 दिसंबर से शुरू हुए भाईचारा सम्मलेनो के दूसरे चरण में बसपा इन तीनों बडे़ वोट बैंक को साधने की भरसक कोशिश में है। इसी के तहत आज से इस तरह के सम्मेलन का आयोजन लखनऊ मंडल में शुरू किए गए हैं।
वहीं दूसरी तरफ बसपा अध्यक्ष मायावती ने 23 दिसंबर को पार्टी मुख्यालय पर बैठक बुलाई है। विधानसभा चुनाव को लेकर यह बैठक काफी अहम मानी जा रही है। इसमें प्रदेश के सभी मुख्य सेक्टर प्रभारियों के साथ प्रदेश के 75 जिलों के जिलाध्यक्षों को बुलाया गया है।
कहा जा रहा है कि बसपा अध्यक्ष मायावती बैठक कर सेक्टर प्रभारियों से उनकी विधानसभा क्षेत्रों के ताजा हालात का जायजा लेगें। साथ ही अपनी रैलियों को लेकर भी उनके विचार विमर्श करेंगी। इसी दौरान वह प्रत्याशियों के नामों को भी अंतिम रूप दे सकती है।