Lucknow News: शारीरिक बनावट पर टिप्पणी करना भी यौन उत्पीड़न, 55.2 प्रतिशत महिलाएं नहीं करती शिकायत

Lucknow News Today: सुएज इंडिया की ओर से सफाई मित्रों को दो दिवसीय प्रीवेंशन आन सेक्सुअल हैरेसमेंट को लेकर प्रशिक्षण शिविर लगाया गया।

Report :  Shashwat Mishra
Update: 2022-08-25 13:37 GMT

सुएज़ इंडिया ने सफाई मित्रों के लिए प्रशिक्षण शिविर किया आयोजन

Lucknow News Today: सुएज की ओर से सीवर सफाई मित्रों को प्रीवेंशन आफ सेक्सुअल हैरेसमेंट (Prevention of Sexual Harassment) की जानकारी दी गई। सुएज़ इंडिया संस्था (Suez India Society) के मुख्यालय की ओर से डीजीएम एचआर नेहा अग्रवाल (DGM HR Neha Agarwal) और विनोद ने सुएज की सभी महिला और पुरुष कर्मचारियों व सीवर सफाई मित्रों को कार्य स्थल पर होने वाले लैंगिक उत्पीड़न के बारे में जानकारी दी। साथ ही, इससे किस तरह से बचा जा सकता है, यह भी बताया गया।

पॉश एक्ट के बारे में दी गई जानकारी

सुएज़ इंडिया (suez india) की ओर से सफाई मित्रों को दो दिवसीय प्रीवेंशन आन सेक्सुअल हैरेसमेंट (Prevention of Sexual Harassment) को लेकर प्रशिक्षण शिविर लगाया गया। कंपनी में शामिल सभी महिला और पुरुष 1100 कर्मचारियों व सीवर सफाई मित्रों को कार्य स्थल पर होने वाले लैंगिक उत्पीड़न के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई। यह कार्यक्रम भरवारा व दौलतगंज एसटीपी और अलीगंज, बालागंज जोन में आयोजित हुआ। नेहा अग्रवाल ने बताया कि देश में कार्य स्थल पर महिलाओं का यौन उत्‍पीड़न रोकने के लिए 2013 में कानून बनाया गया था। इसे पॉश एक्ट यानी प्रिवेंशन ऑफ सेक्सुअल हैरेसमेंट ओफ़ विमेन ऐट वर्क कहा जाता है। ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में कार्य स्थल पर जिन महिलाओं का उत्पीड़न हो रहा है, उनमें ज्यादातर गरीब और पिछड़े तबके की महिलाएं हैं।


2021 में 30 प्रतिशत हुआ मामलों में इज़ाफ़ा

वीमेंस इंडियन चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज (Women Indian Chamber of Commerce and Industries) की भारत में यौन उत्पीड़न की स्थिति पर वार्षिक समीक्षा रिपोर्ट में पाया गया कि लगभग 55 प्रतिशत महिलाओं ने कार्यस्थल पर कम से कम एक बार "फिजिकल टच या एडवांसमेंट" या अनुचित स्पर्श का अनुभव किया है, जिसमें चुटकी लेना, थपथपाना, रगड़ना, या किसी अन्य व्यक्ति के बगल से जानबूझकर रगड़ खाते हुए निकलना करना शामिल है। ऐसी घटनाओं का सामना करने वाली महिलाओं में से 55.2 प्रतिशत ने शिकायत दर्ज न कराने का फैसला लिया। कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की घटनाओं को देखने वाले मानव संसाधनों के प्रतिशत में भी 2021 में 64 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, जो 2020 में 23 प्रतिशत थी। वहीं राष्ट्रीय महिला आयोग (National Women Commission) को साल 2021 में महिलाओं के खिलाफ अपराध की करीब 31,000 शिकायतें मिलीं थी जो 2014 के बाद सबसे ज्यादा हैं। इनमें से आधे से ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश के थे। महिलाओं के खिलाफ अपराध की शिकायतों में 2020 की तुलना में 2021 में 30 प्रतिशत का इजाफा हुआ था।

यौन उत्पीड़न का मतलब सिर्फ़ शारीरिक उत्पीड़न नहीं

कार्यक्रम में मौजूद डीजीएम नेहा अग्रवाल (DGM Neha Agarwal) ने कहा कि ध्यान रखें कि ऑफिस में यौन उत्पीड़न का मतलब सिर्फ शारीरिक उत्पीड़न से ही जुड़ा नहीं होता है। इसमें मानसिक उत्पीड़न, कुछ तरह की बातें, कुछ अनकहे इशारे, गलत तरीके से किसी को छूना जैसी हरकत या व्यवहार को भी यौन उत्पीड़न कहा जा सकता है। इसके अलावा, इन तथ्यों से भी समझें जैसे बार-बार मिलने के लिए फोर्स करना, किसी की शारीरिक बनावट के बारे में टिप्पणी करना, घूरना, सीटी बजाना, इशारेबाजी करना आदि। अगर आप ये सब किसी को करते हुए देखते हैं तो आपको अपने सुपरवाइजर को बताना है यदि वह नहीं सुनता है, तो आपको जोनल अधिकारी को बताना है। अगर जोनल अधिकारी भी नहीं सुनता है, तो आपको परियोजना निदेशक राजेश मठपाल (Project Director Rajesh Mathpal) को रिपोर्ट करना है। जिसके बाद संस्था द्वारा कानूनी कार्यवाही अवश्य की जायेगी।

सिविल कोर्ट के बराबर होगी कमेटी की पावर

इसी क्रम में डीजीएम विनोद (DGM Vinod) ने बताया कि प्रिवेंशन ऑफ सेक्सुअल हैरेसमेंट एक्ट के तहत कंपनी देश में हर संस्था या कंपनी को एक कमेटी बनाने की बाध्यता है। यह कमेटी उस जगह या कंपनी में काम कर रहीं महिलाओं की शारीरिक और यौन उत्पीड़न जैसी समस्याओं को सुनेगी। कानून के मुताबिक कमेटी की अध्यक्ष महिला ही होनी चाहिए। कमेटी के पास उतनी पावर होगी, जितनी सिविल कोर्ट के पास होती है। ये कमेटी पीड़ित का बयान ले सकती है, मामले से जुड़े सबूतों और गवाहों की जांच भी कर सकती है। यदि कमेटी किसी को दोषी पाती है तो वह उचित कार्रवाई के लिए अदालत और पुलिस को सूचित कर सकती है। कमेटी दोषी के खिलाफ निलंबन जैसी कार्रवाई भी कर सकती है।

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