Lucknow News: कालजयी नाटक अंधायुग की प्रस्तुति के साथ एमिटी थिएटर उत्सव 2024 का हुआ समापन
Lucknow News: प्रोफेसर कुमकुम रे ने कहा कि नाट्यकला मात्र इंटरटेनमेंट नहीं बल्कि यह इंफोटेनमेंट है। नाटक के साथ हमें जीवन कौशल से जुडी़ अनेक जानकारी मिलती हैं। उन्होने कहा कि हमारा उद्देश्य अपने हर एक विद्यार्थी को सफलता की एक कहानी बनाना है।
Lucknow News: विगत एक सप्ताह से चल रहे एमिटी विश्वविद्यालय लखनऊ परिसर के वार्षिक थिएटर उत्सव 2024 का आज धर्मवीर भारती कृत कालजयी नाटक ‘‘अंधायुग’’ के भव्य मंचन के साथ ही समापन हो गया। माइमेसिस ड्रामेटिक्स एंड फिल्म क्लब, एमिटी स्कूल ऑफ लैंग्वेजेज द्वारा आयोजित वार्षिक थिएटर उत्सव 2024 के प्रथम दिन ‘नाट्यकला और जीवन कौशल’ विषय पर एक अंर्तराष्ट्रीय सम्मेलन के आयोजन के साथ आरम्भ हुआ। इसी के साथ सात दिवसीय कार्यशाला का भी आरम्भ किया गया। आज समापन समारोह में विख्यात नाट्य निर्देशक पद्मश्री स्व. राज बिसारिया की धर्मपत्नी श्रीमती किरन बिसारिया, उप प्रति कुलपति, एमिटी विश्वविद्यालय लखनऊ परिसर सेवानिवृत्त विंग कमांडर अनिल कुमार तिवारी, निदेशिका एमिटी स्कूल ऑफ लैंग्वेजेज प्रोफेसर कुमकुम रे, सहित सभी विभागाध्यक्ष और विद्यार्थी उपस्थित रहे।
विद्यार्थी को सफलता की एक कहानी बनाना उद्देश्य
समापन समारोह में संबोधित करते हुए विंग कमांडर अनिल कुमार तिवारी ने कहा कि, नाट्य कला और साहित्य हमें अकादमिक ज्ञान के साथ ही जीवन कौशल से भी जोड़ती है। प्रोफेसर कुमकुम रे ने कहा कि नाट्यकला मात्र इंटरटेनमेंट नहीं बल्कि यह इंफोटेनमेंट है। नाटक के साथ हमें जीवन कौशल से जुडी़ अनेक जानकारी मिलती हैं। उन्होने कहा कि हमारा उद्देश्य अपने हर एक विद्यार्थी को सफलता की एक कहानी बनाना है। समापन समारोह का मुख्य आकर्षण एमिटी के विद्यार्थियों द्वारा मंचित नाटक अंधायुग रहा। अंधायुग धर्मवीर भारती द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध हिंदी नाटक है, जिसे भारतीय साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। यह नाटक नैतिकता, धर्म, और मानवीय मूल्यों के गंभीर प्रश्नों को उठाता है। नाटक अंधायुग की कहानी महाभारत के युद्ध के अठारहवें दिन के बाद शुरू होती है, जब कौरवों और पांडवों के बीच विनाशकारी युद्ध समाप्त हो चुका है। युद्ध में भीष्म, द्रोण, कर्ण और दुर्याेधन जैसे महान योद्धाओं की मृत्यु हो चुकी है, और अब युद्ध का शेष परिणाम धृतराष्ट्र, गांधारी, कृष्ण, युयुत्सु, अश्वत्थामा, और विदुर जैसे पात्रों के विचारों और कृत्यों के माध्यम से प्रकट होता है। धृतराष्ट्र और गांधारी अपने पुत्रों की मृत्यु से अत्यंत पीड़ित हैं। कृष्ण, जो महाभारत युद्ध के साक्षी और कर्ता-धर्ता रहे हैं, अब भी युद्ध के परिणामों का सामना कर रहे पात्रों को जीवन के सत्य और धर्म का बोध कराते हैं। नाटक में अश्वत्थामा की महत्त्वपूर्ण भूमिका है, जो प्रतिशोध की आग में जल रहा है और अपने क्रोध में मानवता के नाश की ओर अग्रसर है। इस संघर्ष के बीच, नाटक यह प्रश्न उठाता है कि हिंसा और युद्ध के इस अंधकारमय युग में क्या नैतिकता और धर्म बचा रहेगा, और यदि हाँ, तो किस रूप में?
कावेरी यादव द्रौपदी तो सार्थक यादव बने दुस्साशन
नाटक के मुख्य कलाकारों में द्रौपदी के रूप में कावेरी यादव, दुस्साशन के रूप में सार्थक यादव, धृतराष्ट्र की भूमिका में प्रियांशु दत्ता राय, गांधारी बनी दिव्यांशी श्रीवास्तव और श्रीकृष्ण और संजय की दोहरी भूमिका में आर्या अवस्थी ने अपने अभिनय की छाप छोड़ी। अश्वत्थामा के रूप में कुबेर तिवारी, विदुर और शकुनि की भूमिका में विकास सिंह और व्यास, वृद्ध याचक एवं नृत्यांगना की भूमिका में सृष्टिका तिवारी ने प्रभावित किया। इनके अलावा अनन्या शुक्ला और नरेष खान ने प्रहरी, नयना कुमारी ने कृपाचार्य, शिवानी झा ने कृतवर्मा, कनक मिश्रा ने युयुत्सु, अमन शाह ने युधिष्ठिर की भूमिका निभाई। नाटक का र्निदेशन रोहित यादव और उदय खन्ना, संकाय सदस्य, एमिटी स्कूल ऑफ लैंग्वेजेज ने किया। प्रकाश संचालन मोहित सिंह ने किया। इस उत्सव का आयोजन लखनऊ मैनेजमेंट एसोसिएशन, भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय, अवध गर्ल्स डिग्री कॉलेज और एहसास फाउंडेशन के सहयोग से किया गया।