Chikungunya Effect: चिकनगुनिया के बाद होने वाले गठिया में कारगर है आयुर्वेद चिकित्सा
Chikungunya Effect: डा संजीव रस्तोगी और उनकी टीम द्वारा किये गये इस शोध को हाल ही में नई दिल्ली स्थित आल इंडिया इन्स्टीट्यूट आफ़ आयुर्वेद से प्रकाशित होने वाले अन्तर्राष्ट्रीय आयुर्वेद शोध जर्नल आई जे ए आर ने प्रकाशित किया है।
Chikungunya Effect: हर साल सितम्बर से जनवरी के बीच देश में लाखों लोग वाइरल बुखार से पीड़ित होते हैं। यदि यह वाइरल बुखार चिकनगुनिया अथवा डेन्गू के कारण हुये हैं तो बुखार के साथ-साथ जोडों का दर्द होना एक प्रमुख लक्षण है। देखा जाता है कि बुखार उतर जाने के बाद भी ऐसे रोगियों में जोडों के दर्द की समस्या लम्बे समय तक बनी रहती है। इनमें से 30 से 40 प्रतिशत तक रोगियों को यह स्थायी गठिया के रूप में लम्बे समय तक पीड़ित कर सकती है। अंग्रेजी उपचार से इस प्रकार के जोड़ के दर्द में तात्कालिक राहत तो मिलती है । परन्तु यह राहत थोड़े समय तक ही रहती है और दवायें बन्द होने के बाद पुन: हो जाती है। ऐसे में परेशान रोगी कई बार आयुर्वेद चिकित्सा का सहारा लेते हैं।
लखनऊ स्थित राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय एवम चिकित्सालय के गठिया शोध केन्द्र के पूर्व निदेशक एवं आयुर्वेद के वरिष्ठ गठिया रोग विशेषज्ञ डा संजीव रस्तोगी के निर्देशन में हाल ही में हुये एक शोध में आयुर्वेद उपचार का वाइरल बुखार के बाद होने वाले गठिया में अच्छा परिणाम देखने को मिला है। वाइरल बुखार के बाद जोड़ों के दर्द वाले 80 रोगियों को शोध में शामिल किया गया और उन्हें आयुर्वेद के सिद्ध्धान्तों के अनुरूप समग्र आयुर्वेद चिकित्सा दी गयी। रोगियों में 8 सप्ताह की चिकित्सा के बाद 60 प्रतिशत तक आराम देखने को मिला । सबसे महत्वपूर्ण बात यह देखने को मिली की अधिसंख्य रोगियों को आयुर्वेदिक उपचार के बाद दर्द निवारक औषधियां लेने की आवश्यकता नहीं पड़ी। एक अन्य महत्वपूर्ण बात यह देखने को मिली कि आयुर्वेदिक उपचार से होने वाले लाभ अधिसंख्य रोगियों में स्थायी रहे और आयुर्वेदिक औषधियां बंद किये जाने के बाद भी उनमें जोड के दर्द के लक्षण वापस नहीं आये। डा संजीव रस्तोगी और उनकी टीम द्वारा किये गये इस शोध को हाल ही में नई दिल्ली स्थित आल इंडिया इन्स्टीट्यूट आफ़ आयुर्वेद से प्रकाशित होने वाले अन्तर्राष्ट्रीय आयुर्वेद शोध जर्नल आई जे ए आर ने प्रकाशित किया है।
आयुर्वेद के प्रति विश्वसनीयता एवम स्वीकार्यता बढ़ी
डा रस्तोगी ने इस शोध के बारे में विस्तार से बताते हुये कहा कि गठिया के रोगियों में आयुर्वेद के प्रति विश्वसनीयता एवम स्वीकार्यता बढ़ी है।अब बहुत सारे रोगी गठिया की शुरुआती अवस्था में ही आयुर्वेद उपचार के लिये आने लगे हैं । ऐसा देखा गया है कि जल्दी उपचार शुरू कर दिये जाने से रोग के पूर्ण रूपेण ठीक होने अथवा उसके जल्दी नियन्त्रित होने की सम्भावना बढ जाती है।