Lucknow: नदवा कॉलेज के छात्र अब कुरान की आयतों के साथ संस्कृत श्लोक भी बोलेंगे, दिया जाएगा हिंदू धर्मग्रंथों का ज्ञान

Lucknow News: संस्थान यहां पढ़ने वाले छात्रों के लिए संस्कृत में डिप्लोमा कोर्स की शुरूआत करने जा रहा है। नदवा के सचिव व प्रबंधक मौलाना जाफर हसन नदवी का कहना है कि तमाम छात्र संस्कृति पढ़ने की इच्छा रखते हैं।

Update:2023-05-30 13:46 IST
Nadwa College (photo: social media )

Lucknow News: राजधान लखनऊ स्थित इस्लामिक शिक्षण केंद्र दारूल उलूम नदवातुल उलेमा (नदवा कॉलेज) के तुलबा यानी छात्र अब कुरान की आयतों के अलावा संस्कृत में श्लोक भी बोलेंगे। संस्थान यहां पढ़ने वाले छात्रों के लिए संस्कृत में डिप्लोमा कोर्स की शुरुआत करने जा रहा है। नदवा के सचिव व प्रबंधक मौलाना जाफर हसन नदवी का कहना है कि तमाम छात्र संस्कृति पढ़ने की इच्छा रखते हैं। जिसे देखते हुए ये निर्णय लिया गया है। इससे उन्हें हिंदू धर्मग्रंथों को समझने में भी मदद मिलेगी।

नदवी ने बताया कि नदवा में अरबी के विद्वान दिंवगत मौलाना हिफजुर्रहमान को संस्कृति और फ्रेंच भाषा में महारत हासिल थी। वे छात्रों को रात 8 बजे संस्कृति पढ़ाते थे। वे ऐसा महज शौक के लिए किया करते थे। बीते साल उनका निधन हो जाने के कारण अब संस्थान में संस्कृत पढ़ाने वाला कोई नहीं बचा है। ऐसे में नदवा में संस्कृत में डिप्लोमा कोर्स शुरू करने की तैयारी चल रही है।

मुस्लिम छात्र संस्कृत सीखकर हिंदू धर्म के मूल ग्रंथों को आसानी से समझ सकेंगे। संस्थान शुरू में इस कोर्स के लिए संस्कृत का एक शिक्षक नियुक्त करेगा। जैसे-जैसे कोर्स को लेकर छात्रों में दिलचस्पी बढ़ती जाएगी, अतिरिक्त शिक्षकों की नियुक्ति की जाती रहेगी।

120 साल बाद शुरू हुआ था अंग्रेजी डिपार्टमेंट

दारूल उलूम नदवातुल उलेमा की स्थापना साल 1898 में की गई थी। शुरूआत में यहां मुख्त तौर पर इस्लामिक स्टडीज की पढ़ाई होती थी। सितंबर 2018 में स्थापना के 120 साल बाद संस्थान में अंग्रेजी विभाग की शुरूआत की गई थी। इससे पहले यहां अंग्रेजी की पढ़ाई तो होती थी मगर अलग से विभाग और कोर्स नहीं था। नदवा कॉलेज में हुए इस बदलाव की देशभर में चर्चा हुई थी।

बता दें कि लखनऊ स्थित नदवा कोई आम मदरसा नहीं है। भारतीय सुन्नी मुसलमानों में इसकी मान्यता देवबंद के दारूल उलूम के बराबर ही है। नदवा के स्थापना का मकसद देश में धार्मिक विशेषज्ञ तैयार करना है, जिससे कि देश का सांस्कृतिक विकास हो सके।

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