Teachers Day : 'गीता कोर्ट में नहीं, कोर्स में होनी चाहिए', शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर बोले पूर्व डिप्टी सीएम डॉ. दिनेश शर्मा
Teachers Day : शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सांसद डॉ. दिनेश शर्मा ने कहा कि शिक्षक की भी प्रमुख विशेषता यह है कि वह अनवरत विद्यार्थी रहे तथा अपने आपको विद्यार्थी की हर जिज्ञासा पूरी करने के लिए समर्थ बनाए।
Lucknow News : शिक्षक बनना एक बहुत बड़ा सम्मान होता है। शिक्षक में सीखने की जितनी लगन होगी, उतना ही सफल शिक्षक बनता है तथा आदर्श शिक्षक अपने विद्यार्थियों में जिन सदगुणों का विकास करता है, वह उन्हें सबसे पहले अपने जीवन में उतारता है। उक्त बातें उत्तर प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सांसद दिनेश शर्मा ने बुधवार को सिटी मांटेसरी स्कूल, गोमती नगर, लखनऊ की विशाल सभागार में शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित शिक्षकों के विशाल सम्मान समारोह को संबोधित करते हुए कहीं।
पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सांसद दिनेश शर्मा ने तीन हजार से अधिक शिक्षकों को संबोधित कर उन्हें बधाई दी। उन्होंने इस दौरान महात्मा गांधी से जुड़ी एक घटना का जिक्र किया, जिसमें एक महिला अपने बेटे को लेकर गांधी (बापू) के पास पहुंची और कहा कि इसके दांत खराब हैं, कैसे ठीक होंगे। गांधी ने उस महिला को पहली बार 15 दिन बाद और बाद में एक महीने बाद बुलाया और फिर उस बच्चे से डेढ़ महीने बाद कहा कि गुड़ मत खाया करो। इस पर महिला ने गांधी से कहा कि इतनी सी बात के लिए उन्हें उन्होंने दो बार क्यों दौड़ाया तो गांधी ने कहा कि पहले वे भी स्वयं अधिक गुड़ खाते थे और अब उन्होंने छोड़ दिया है, इसलिए वे बच्चे से भी ऐसा करने के लिए हकदार हुए।
'गीता कोर्ट में नहीं, कोर्स में होनी चाहिए'
उन्होंने कहा कि सामान्यतया अदालतों में बयान देने के पहले गीता पर हाथ रखकर शपथ लेने की परंपरा है। मेरा मानना है कि गीता की सबसे अधिक उपयोगिता उसका पाठ्यक्रम का अंग बनाने से होगी, क्योंकि गीता जीवन जीने का प्रवाह है। गीता कोर्ट में नहीं, कोर्स में होनी चाहिए। गीता हमें एक श्रेष्ठ मानव बनने का और संस्कारयुक्त बनने का एक साधन है। इसी साधन का उपयोग कर शिक्षक को देवतुल्य बनाना है। मैं धार्मिकता के आधार पर गीता की उपयोगिता का उलझ नहीं कर रहा हूं बल्कि वास्तव में गीता में देवतुल्य शक्ति है तथा इसमें देवतुल्य गुणों का आदर्श छिपा हुआ है। गीता कोर्ट में न होकर यदि कोर्स में हो तो समाज में आ रही विकृतियों से छुटकारा पाया जा सकता है।
माता-पिता प्रथम शिक्षक
सांसद डॉ. दिनेश शर्मा ने कहा कि शिक्षक की भी प्रमुख विशेषता यह है कि वह अनवरत विद्यार्थी रहे तथा अपने आपको विद्यार्थी की हर जिज्ञासा पूरी करने के लिए समर्थ बनाए। अच्छे विद्यार्थी में सीखने की भूख होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हम अपने आप में परिपक्व नहीं हैं। सीखना हमारी भूख है। सीखना हमारी आदत है, ऐसा जो करता है, वह श्रेष्ठ शिक्षक होता है। जन्म और मृत्यु के बीच के समय का सदुपयोग करना शिक्षक सिखाता है तथा हम एक दूसरे के काम किस प्रकार आ सकें, यह पाठ शिक्षक ही सिखाता है। माता-पिता प्रथम शिक्षक होते हैं। आईएएस , इंजीनियर अथवा डाक्टर बनाने वाला शिक्षक ही होता है।
उन्होंने कहा कि राजनीति में आने के बाद मेरे अन्दर शुचिता और पवित्रता का के भाव का डर बना रहा उसकी मूल में मेरा शिक्षक होना रहा है। उन्होंने कहा कि टीचर की सीख, टीचर की सजा वास्तव में जीवन की राह सिखाती है। शिक्षा माता और पिता दोनो हैं शिक्षा शासन और सत्ता दोनो है। शिक्षा देश के सर्वांगीण विकास की एक कुंजी है। शिक्षा 2047 के भारत की कल्पना करने वाली एक धुरी है।
शिक्षक के चयन में सिफारिश स्वीकार नहीं की जानी चाहिए
सांसद डॉ. दिनेश शर्मा ने कहा कि शिक्षक के चयन में सिफारिश स्वीकार नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि यदि एक शिक्षक गलत आ गया तो 35 से 40 साल तक उसका खामियाजा विद्यार्थी को भुगतना होता है। उनका कहना था कि शिक्षक में नैतिकता होती है और वह अपना सारा ज्ञान विद्यार्थी को देना चाहता है। आज शिक्षा का व्यवसाईकरण हो रहा है, जबकि शिक्षक पूरे समाज का निर्माता है। शिक्षक से सीखने की जो प्रवृत्ति है, वही विद्यार्थी को महान बनाती है। शिक्षक के आचरण का विद्यार्थी के जीवन में बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। उसकी नैतिकता विद्यार्थी के जीवन की दिशा बनाती है। नई शिक्षा नीति में शिक्षक के प्रशिक्षण की बहुत अच्छी व्यवस्था की गई है। अगर शिक्षक अच्छा प्रशिक्षण नहीं दे सकता तो विद्यार्थी का परेशानी में पड़ना निश्चित है।
इस अवसर पर शिक्षको को सम्मानित किया गया। इस अवसर पर न्यायमूर्ति विष्णु सहाय, क्षेत्रीय उपाध्यक्ष भाजपा अवध क्षेत्र राजीव मिश्रा, प्रसिद्ध समाज सेवी आरसी गुप्ता, भारती गांधी एवं प्रबंधक गीता किंगडम जी आदि उपस्थित रहे।