UP By Election 2024: यूपी की इस विधानसभा का गजब संयोग, दो बार बदला नाम, नहीं जीता कोई भी लोकल नेता

UP By Election 2024: मुजफ्फरनगर जिले की मीरापुर विधानसभा सीट के इतिहास की बात करें तो पहले यह सीट सुरक्षित थी। उस समय इसका नाम भोकरहेड़ी विधानसभा था।

Update:2024-11-04 12:52 IST

मीरापुर विधानसभा सीट से नहीं जीता कोई भी लोकल नेता (सोशल मीडिया)

Meerapur Assembly Seat: उत्तर प्रदेश की नौ रिक्त चल रही विधानसभा सीटों पर 13 नवंबर को मतदान होना है। सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी के लिए जहां ये नौ सीटें प्रतिष्ठा से जुड़ी हुई हैं। वहीं समाजवादी पार्टी इस उपचुनाव के जरिए लोकसभा के दौरान मिली जीत से बढ़े मनोबल को बरकरार रखना चाह रही है। वहीं कभी भी उपचुनाव न लड़ने वाली बहुजन समाज पार्टी भी मैदान में उतर पड़ी है। वह नौ सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव के जरिए खाता खुलने की उम्मीद लगा रही है।

यूपी के राजनीतिक दलों के लिए नाक का सवाल बन चुके इस उपचुनाव में एक सीट ऐसी भी है। जिसका दो बार नाम बदला गया। यहीं नहीं इसने सुरक्षित से सामान्य तक का सफर भी किया। इस सीट का महज यही संयोग नहीं है बल्कि इससे एक और भी पहलू जुड़ा हुआ है। वह यह है कि इस सीट की जनता ने पिछले पांच दशक से किसी भी लोकल नेता को विधानसभा नहीं भेजा। यह सीट है मुजफ्फरनगर जनपद की मीरापुर विधानसभा सीट।

मुजफ्फरनगर जिले की मीरापुर विधानसभा सीट के इतिहास की बात करें तो पहले यह सीट सुरक्षित थी। उस समय इसका नाम भोकरहेड़ी विधानसभा था। बाद में यह सीट सामान्य घोषित कर दी गयी और नाम भी बदल दिया गया है। नाम बदलने के बाद यह सीट भोकरहेड़ी से मोरना हो गयी। साल 2012 में इस विधानसभा सीट का फिर से नाम बदल दिया गया और यह मीरापुर के नाम से जानी जाने लगी।

1985 से अब तक नहीं जीता कोई लोकल नेता

मीरापुर विधानसभा सीट से साल 1985 से अब तक कुल 11 विधायक चुने गये हैं। लेकिन इनमें ऐसा कोई भी नेता नहीं है जोकि मुजफ्फरनगर का रहने वाला हो। इस सीट से मुजफ्फरनगर से बाहर रहने वाले नेता ही चुनाव लड़े और विधानसभा पहुंचे। यहां भी जनता इन वर्षो में किसी भी लोकल नेता को नहीं चुना। साल 1985 में मीरापुर सीट से कांग्रेस के साईदुज्जमा विधायक बने। 1989 में जनता दल के अमीर आलम विधायक निर्वाचित हुए।

साल 1991 और 1993 में भाजपा के रामपाल सैनी जीत तो साल 1996 में सपा के संजय सिंह इस सीट से विधायक बने। वहीं साल 2002 में बसपा के राजपाल सैनी और 2007 में लोकदल से कादिर राणा इस सीट से विधानसभा पहुंचे। 2009 में लोकदल से मिथलेश पाल, 2012 में बसपा के मौलाना जमील विधायक चुने गये। वहीं साल 2017 में भाजपा के अवतार सिंह भड़ाना और 2022 में लोकदल के चंदन सिंह चौहान मीरापुर सीट से विधायक बने।

साल 2012 के विधानसभा चुनाव में यहां से बहुजन समाज पार्टी ने मौलाना जमील को मैदान में उतारा और उन्होंने जीत भी दर्ज की। मौलाना जमील मीरापुर विधानसभा क्षेत्र के ही टंडेढ़ा गांव निवासी हैं। लेकिन वह मूल रूप से यहां के रहने वाले नहीं हैं बल्कि वह देवबंद के जहीरपुर गांव के रहने वाले हैं। वहीं साल 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने अवतार भड़ाना को उम्मीदवार बनाया। अवतार भड़ाना भी इस जनपद के रहने वाली नहीं थे। इसी तरह साल 2009 के चुनाव में भाजपा की अगुवाई वाले एनडीए की ओर से राष्ट्रीय लोकदल की मिथिलेष पाल प्रत्याशी बनीं और जीतीं। साल 2007 में कादिर राणा लोकदल से मीरापुर विधानसभा सीट से विधायक निर्वाचित हुए थे।

वहीं साल 2024 में मीरापुर विधानसभा सीट के लिए होने वाले उपचुनाव में सपा और रालोद ने हमेषा की तरह बाहरी नेताओं को ही उम्मीदवार बनाया है। सपा ने पूर्व सांसद कादिर राणा की पुत्रवधू सुम्बुल राणा को प्रत्याशी बनाया है। वहीं रालोद ने मिथिलेष पाल को मैदान में उतारा है। वहीं बहुजन समाज पार्टी ने इस सीट से शाहनजर और आजाद समाज पार्टी ने जाहिद हुसैन के रूप में लोकल चेहरों को युद्धक्षेत्र में उतारा है। यूपी की इस सीट के उपचुनाव में अब यह देखना दिलचस्प होगा कि यहां की पुरानी परंपरा बरकरार रहती है या फिर कोई नया ट्रेंड आता है।

एक ही परिवार की तीन पीढ़ियां पहुंची विधानसभा

मीरापुर विधानसभा सीट एक संयोग यह भी है कि इस सीट से एक ही परिवार की तीन पीढ़ियां निर्वाचित होकर विधानसभा पहुंचीं। उत्तर प्रदेश के पहले उपमुख्यमंत्री बाबू नारायण सिंह इसी सीट से विधायक चुने गये थे। उनके बाद इस सीट से उनके पुत्र और पोते भी विधानसभा पहुंचे। बाद में दोनों ही सांसद भी बने। साल 1996 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर बाबू नारायण सिंह के पुत्र संजय चौहान मोरना (अब मीरापुर) विधानसभा सीट से विधायक बने थे। 2022 के चुनाव में सपा की अगुवाई वाले गठबंधन से राष्ट्रीय लोक दल ने संजय चौहान के पुत्र चंदन चौहान को मैदान में उतारा और वह निर्वाचित हुए। 2024 के लोकसभा चुनाव में चंदन चौहान के सांसद निर्वाचित होने के बाद ही यह सीट रिक्त हुई है। दोनों पिता-पुत्र बिजनौर सीट से लोकसभा चुनाव जीते।

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