Etawah News: ऐतिहासिक भारेश्वर शिव मंदिर पर बिजली गिरी, ऊपरी हिस्से को भारी नुकसान आई दरारें
इटावा में चंबल के बीहड़ों में स्थापित ऐतिहासिक भारेश्वर मंदिर पर आकाशीय बिजली गिरने से मंदिर को बड़ा नुकसान हुआ है।
Etawah News: इटावा में चंबल के बीहड़ों में स्थापित ऐतिहासिक भारेश्वर मंदिर पर आकाशीय बिजली गिरने से मंदिर को बड़ा नुकसान हुआ है। मंदिर के पुजारी चंबल गिरी ने बताया कि रात 2 बजे के आसपास यह आकाशीय बिजली गिरी है। इस आकाशीय बिजली के गिरने से अफरा तफरी मच गयी। मंदिर का ऊपरी हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया है वहीं दूसरी ओर निचले हिस्से में भी बिजली के बोर्ड आदि का नुकसान हुआ है।
भरेह गांव के प्रधान राघवेंद्र प्रताप सिंह बताते हैं कि आकाशीय बिजली गिरने से भारेश्वर मंदिर को काफी नुकसान हो गया है, जिसका आकलन करने के लिए राजस्व विभाग के अफसरों से सर्वे कराने का अनुरोध किया गया है। जो भी नुकसान हुआ है उसको बहुत ही जल्द दुरुस्त कराया जायेगा।
आकाशीय बिजली गिरने से मंदिर का बुर्ज कई जगह न केवल जल गया बल्कि पत्थर के टुकड़े भी टूट कर जमीन पर आ गिरे। बेशक आकाशीय बिजली गिरने से कोई जनहानि नहीं हुई हो, लेकिन मंदिर के पुजारी समेत अन्य लोगों में हड़कंप मच गया है।
इटावा जिले के भरेह थाना क्षेत्र के अंतर्गत भरेह गांव में चम्बल ओर यमुना नदी के संगम स्थल पर यह ऐतिहासिक भारेश्वर मंदिर स्थापित है। आकाशीय बिजली गिरने का असर यह होता हुआ दिखाई दिया है कि मंदिर के बुर्ज पर कई जगह आग जैसे जलने के निशानों के साथ बुर्ज के क्षतिग्रस्त हिस्से साफ साफ दिखाई दे रहे हैं। जिस मंदिर पर आकाशीय बिजली गिरी है वह चंबल नदी के किनारे स्थापित भारेश्वर महादेव का हजारों साल पुराना मंदिर है जो महाभारत के मुख्य पात्र पांडवों की भी आस्था का केंद्र रहा है।
मंदिर के पुजारी चंबल गिरी बताते हैं कि 444 फीट ऊंचाई पर बने मंदिर तक पहुंचने के लिए 108 सीढ़ियां हैं। सीढ़ियों की बनावट व मंदिर का शिखर यह बताता है कि यह द्वापर युगीन है। इस तथ्य पर कई विद्वान भी एक मत हैं।
भरेह के राजा रूप सिंह ने अंग्रेजी साम्राज्य के खिलाफ इस स्थल पर सेना की प्रशिक्षण कार्यशाला बनाई थी। ऐसा कहा जाता है कि एक बार जब अंग्रेजों ने मंदिर को घेर लिया तो मंदिर से निकले बर्राे ने उन्हें पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था। बनारस के विद्वान नीलकंठ भट्ट ने भगवन्त भास्कर नामक ग्रंथ में मंदिर की महिमा का वर्णन करते हुए लिखा है- कृत शालिनी मध्य देशे ख्याता भरेह नगरी, किल तत्र राजा राजीव लोचन रतो भगवन्त देवा।
यमुना चंबल संगम पर स्थित भारेश्वर महादेव मंदिर प्राचीन काल से आध्यात्मिक ज्ञान एवं तपस्या का केंद्र रहा है। मान्यता है कि विद्वान नीलकंठ ने कर्मकांड एवं दंड के 12 मयूक (ग्रंथ) एवं आयुर्वेदिक ग्रंथ इसी मंदिर में रहकर लिखे थे। आगरा जाते समय महात्मा तुलसीदास भी इस मंदिर में कुछ समय रहे। परमहंस गुंधारी लाल ने भारेश्वर महाराज की तपस्या कर अपना कर्मक्षेत्र ग्राम बडेरा को बनाया। परमहंस पुरुषेात्तम दास महाराज ने बिना भोजन व जल के भोलेनाथ की तपस्या की।
पांडवों ने अज्ञातवास के समय भगवान श्रीकृष्ण के निर्देश पर शंकर भगवान की आराधना हेतु भीमसेन द्वार व शंकर की विशाल पिंडी की स्थापना की थी, जिसकी द्रोपदी सहित पांचों पांडवों ने पूजा अर्चना की।
मान्यता के अनुसार भक्त भगवान भोले नाथ की पूजा करके बाहर नंदी के कान में जो भी मनोकामना मांगता है। वह शीघ्र ही पूरी हो जाती है।
पंचनद के साथ भरेह भी पर्यटक स्थल घोषित कर दिया गया है, लेकिन अभी इस क्षेत्र का विकास संभव नहीं हो सका है। जबकि भरेह के जर्जर हो चुके किले का भी जीर्णोद्धार होना जरूरी है, क्योंकि सैलानियों के लिए किला भी आकर्षण का केंद्र है।