ठंड से कंपेगा UP: कानपुर के सीएसए मौसम वैज्ञानिकों का दावा, "ला नीना इफेक्ट" बनेगा कारण

Kanpur News: हाल ही में भारत से मानूसन (Indian Monsoon) की विदाई की बाद लोगों को बहुत जल्द काफी ज्यादा ठंड झेलनी पड़ सकती है। उसी तरह से इस बार पिछले कुछ सालों की तुलना में ठंड का प्रकोप ज्यादा भीषण होने वाला है।

Report :  Avanish Kumar
Published By :  Shweta
Update:2021-10-30 17:25 IST

कॉन्सेप्ट फोटो 

Kanpur News: चंद्रशेखर कृषि विश्वविद्यालय के मौसम वैज्ञानिक डॉक्टर एसएन सुनील पांडे ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए "ला नीना इफेक्ट" के बारे में कहा कि इस बार पूरे भारत में भीषण ठंड पड़ने की संभावना है।इसके पीछे की मुख्य वजह "ला नीना इफेक्ट"है। उन्होंने "ला नीना इफेक्ट" के बारे में बताया कि जलवायु (Climate change) के बड़े लेकिन दिखाई देने वाले दुष्प्रभावों में से "ला नीना" (la Nina) प्रभाव एक है। प्रशांत महासागर में "ला नीना" की वजह से बदलाव की शुरुआत होती है।

इसका असर दुनिया के कई हिस्सों में देखने को मिलता है जो असामान्य से लेकर चरम मौसम के रूप में दिखाई देता है। हाल ही में भारत से मानूसन (Indian Monsoon) की विदाई की बाद लोगों को बहुत जल्द काफी ज्यादा ठंड झेलनी पड़ सकती है। उसी तरह से इस बार पिछले कुछ सालों की तुलना में ठंड का प्रकोप ज्यादा भीषण होने वाला है.

यह है ला नीना शब्द का मतलब


"ला नीना" स्पेनी भाषा का शब्द है जिसका मतबल छोटी बच्ची होता है। यह एक जटिल प्रक्रिया एल नीनो साउदर्न ऑसिलेशन चक्र का हिस्सा होता है जो प्रशांत महासागर में घटित होती है । जिसका पूरी दुनिया के मौसमों पर असर होता है। इस प्रक्रिया के दूसरे को अल नीनो कहते हैं (स्पेनिश भाषा में छोटा बच्चा) जिसका ला नीना के मुकाबले बिलकुल विपरीत असर होता है।

प्रशांत महासागर का भूगोल

इस पूरे चक्र में प्रशांत महासागर के भूगोल में अहम भूमिका होती है जो अमेरिका से लेकर एशिया और ऑस्ट्रेलिया तक फैला है। ईएनएसओ प्रशांत महासागर की सतह पर पानी और हवा में असामान्य बदालव लाता है। इसका असर पूरी दुनिया के वर्षण, तापमान और वायु संचार के स्वरूपों पर पड़ता है। जहां "ला नीना" ईएनएसओ के ठंडे प्रभाव के रूप में देखा जाता है, वहीं "अल नीना" गर्मी लाने वाले प्रभाव के रूप में देखा जाता है।

ये होते हैं प्रभाव


"ला नीना" प्रभाव वाले साल में हवा सर्दियों में ज्यादा तेज बहती है जिससे भूमध्य रेखा और उसके पास का पानी सामान्य से ठंडा हो जाता है। इसी वजह से महासागर का तापमान पूरी दुनिया के मौसम को प्रभावित कर बदल देता है। भारत में भारी बारिश वाला मानूसन, पेरु और इक्वाडोर में सूखे, ऑस्ट्रेलिया में भारी बाढ़ और हिंद एवं पश्चिम प्रशांत महासागर उच्च तापमान की वजह "ला नीना" ही है।

भारत में पड़ेगी घनघोर ठंड

जलवायु परिवर्तन में दिखाई देने वाले दुष्प्रभावों में से एक "ला नीना" प्रभाव है। प्रशांत महासागर में "अल नीना" की वजह से बदलाव की शुरुआत होती है और इसका असर दुनिया के कई हिस्सों में देखने को मिलता है जो असामान्य से लेकर चरम मौसम के रूप में दिखाई देता है। हाल ही में भारत से मानूसन की विदाई की बाद लोगों को बहुत जल्द काफी ज्यादा ठंड झेलनी पड़ सकती है। मौसम विभाग का कहना है कि इस बार पिछले कुछ सालों की तुलना में ठंड का प्रकोप ज्यादा भीषण होने वाला है। जबकि आमतौर पर 15 अक्टूबर तक पूरे भारत से मानसून लौट जाता है, लेकिन इस बार देर हो गई। इतना ही नहीं अब अनुमान लगाया जा रहा है कि इस साल भारत में ठंड भी लोगों में ज्यादा ठिठुरन पैदा करने वाली होगी। भारतीय मौसम विभाग का भी यही कहना है कि इस बार की ठंड पिछले कुछ सालों की तुलना मे ज्यादा तीखी होने वाली है। यह अनुमान सुदूर प्रशांत महासागर में हुए मौसम के बदलावों की वजह से लगाया जा रहा है। जिसका पूरी दुनिया पर असर होगा, ये बदालव ला नीना प्रभाव की वजह से आ रहे हैं।

इस साल यह हो सकता है असर

इस बार "ला नीना" सक्रिय है। चंद्रशेखर आजाद कृषि प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) के मौसम वैज्ञानिक डॉ एसएन सुनील पाण्डेय ने बताया कि इसका असर भारत में लागातार कम तापमान के रूप में नहीं होगा, बल्कि बीच बीच में आने वाली शीत लहर के रूप में होगा। "ला नीना" और "अल नीना" का असर 09 से 12 महीनों के बीच में होता है। ये हर दो से सात साल में अनियमित रूप से दोबारा आते है। अल नीनो "ला नीना" से ज्यादा बार आता देखा गया है।

सर्दी के मौसम में होता है ला नीना का असर

सीएसए मौसम विज्ञानी के अनुसार भारत में ला नीना का असर देश के सर्दी के मौसम पर होता है। इस मौसम में हवाएं उत्तर पूर्व के भू भाग की ओर से बहती है, जिन्हें उच्च वायुमंडल में दक्षिण पश्चिमी जेट का साथ मिलता है। लेकिन अल नीना के दौरान यह जेट दक्षिण की ओर धकेल दी जाती है। इससे ज्यादा पश्चिमी विक्षोभ होते हैं जिससे उत्तर पश्चिम भारत में बारिश और बर्फबारी होती है। लेकिन ला नीना उत्तर और दक्षिण में निम्न दबाव का तंत्र बनाता है जिससे साइबेरिया की हवा आती है और शीतलहर और दक्षिण की ओर जाती है।

पिछले वर्ष अप्रैल तक बनी थी ला नीना की स्थिति

भारतीय मौसम विभाग ने भी इस साल कड़ाके की सर्दी पड़ने की संभावना जताई है और इसके लिए ला नीना को जिम्मेदार बताया है। विभाग ने पहले ही कहा था कि भारत में सामान्य से ज्यादा मौसमी बारिश और कड़ाके की सर्दी पड़ सकती है। विभाग ने कहा कि अगस्त और सितंबर में सामान्य से ज्यादा बारिश हो सकती है और तभी ला नीना की स्थिति बनेगी। बता दें कि पिछली बार ला नीना की स्थिति अगस्त-सितंबर 2020 से अप्रैल 2021 तक बनी थी और सामान्य से ज्यादा बारिश हुई थी और सर्दियां भी जल्दी शुरू हो गई थीं, साथ ही साथ कड़ाके की सर्दी भी पड़ी थी। मौसम विभाग के अनुसार ला नीना की स्थिति इस साल सितंबर से नवंबर के बीच रहेगी, इससे इस साल की सर्दियों के दौरान ठिठुरने वाले ठंड पड़ेगी।

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