Mafia Mukhtar Ansari: माफिया मुख्तार... चमकदार खानदान का दागदार वारिस
Mafia Mukhtar Ansari: माफिया मुख्तार की मौत के बाद अंसारी परिवार का राजनीतिक भविष्य क्या होगा? यह तो समय ही बताएगा लेकिन यह तय है कि मुख्तार ने अपनी आपराधिक छवि की छाया में जो राजनीतिक रसूख बनाया था, उसकी चमक फीकी जरूर पड़ेगी।
Mafia Mukhtar Ansari: चार वेद छह शास्त्र में लिखी हैं बातें दोय, दुख दीन्हें दुख होत है सुख दीन्हें सुख होय... माफिया मुख्तार (Mukhtar Ansari ) हो, अतीक हो या फिर विकास दुबे, सभी को उनके कर्मों के हिसाब से ही सजा मिली है। मतलब जीवन भर उन्होंने जो बोया था अंतिम समय में वही काटा है। यह सीख है उन लोगों के लिए भी है जो आम लोगों रौंदते हुए आगे बढ़ना चाहते हैं और उन्हें लगता है कि उनका रुतबा हमेशा यूं ही कायम रहेगा। इतिहास गवाह है कि समय ने किसी को भी नहीं बख्शा, चाहे वह दुर्योधन, कंस व रावण जैसे महा शक्तिशाली लोग ही क्यों न हों... हिटलर व मुसोलिन जैसों की भी कुछ ऐसी ही दुर्गति हुई है...
माफिया का खौफ इतना था कि पूर्वोत्तर और उत्तर रेलवे के टेंडर मुख्तार के कहने पर ही निकलते व रद्द होते थे। तय था कि मुख्तार जिसे चाहेगा वही काम करेगा। चंदासी कोल मंडी से धनबाद तक मुख्तार के इशारे पर रैक-के-रैक उतरते थे। पूर्वांचल में पीडब्ल्यूडी और शराब के ठेकों पर उसका ही एकाधिकार हुआ करता था। क्रिकेट के शौकीन माफिया मुख्तार ने जरायम पिच पर ताबड़तोड़ बैटिंग शुरू कर दी थी। उसके एक इशारे पर किसी का भी कत्ल हो जाया करता था, फिर चाहे वह जनप्रतिनिधि ही क्यों न हो। नई दिल्ली, पंजाब, मऊ, वाराणसी, लखनऊ, आजमगढ़, बाराबंकी, चंदौली, सोनभद्र और गाजीपुर जिले में उसके खिलाफ संगीन धारारों में 65 से अधिक मुकदमे दर्ज हैं। वह भी यह हाल तब है जब मुश्किल से 10 फीसदी लोग ही उसके खिलाफ शिकायत करने की हिम्मत जुटा पाते थे। 2017 से पहले कार्रवाई करना तो दूर बड़े अफसर उसका नाम तक लेने से कतराते थे।
शौक ऐसे कि जेल में खुदवा लिया तालाब और बनवाया बैडमिंटन कोर्ट
आतंक के इंतेहा के चलते भले ही उसे सलाखों के पीछे भेजा गया, लेकिन जेल उसके लिए दूसरा घर ही साबित हुआ। वहीं से वह काला साम्राज्य चलाता रहा। एक इशारे भर से ही उसके गुर्गे किसी का भी अपहरण, फिरौती और मर्डर कर देते थे। 2005 में मऊ में हिंसा भड़कने के बाद मुख्तार ने सरेंडर कर दिया था, तब उसे गाजीपुर जेल में रखा गया था। उस दौरान वह विधायक था। खाने में उसे ताजी मिछलियां मिलती रहें, इसके लिए उसने जेल में ही तालाब खुदवा कर मछलियां पलवाई थीं। उन दिनों यह बात भी खूब चर्चा में रही थी कि गाजीपुर जेल में उसने बैडमिंटन कोर्ट भी बनवा लिया था, जहां उसके साथ खेलने के लिए जिला प्रशासन और पुलिस के बड़े अफसर आते थे।
जेल से ही चलाता था काला साम्राज्य
माफिया मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) का सिक्का यूपी ही नहीं देश के कई हिस्सों में चलता था। आमजन की तो बात छोड़िये, बड़े-बड़े अफसर भी उसके नाम से थर-थर कांपते थे। प्रदेश की प्रमुख राजनीतिक पार्टियों ने उसको हाथों-हाथ लिया था। राजनीतिक संरक्षण और आतंक के चलते वह किसी को भी कुछ नहीं समझता था। खुली जीप पर वह असलहा व नंगी तलवार लेकर सड़क पर बेखौफ घूमता था, मजाल कोई नजर उठाकर देख ले। जेल में रहने के बावजूद डीजीपी मुख्यालय में उसकी सीधी एंट्री होती थी। मतलब उसकी सौंपी लिस्ट के मुताबिक ही पुलिसवालों का तबादला होता था। मुख्तार यूपी का पहला माफिया था, जिसके पास बुलेट प्रूफ जैकेट और बुलेट प्रूफ कार थी।
'चमकदार खानदान का दागदार वारिस'
मुख्तार का जन्म ऐसे परिवार में हुआ था जिसका खुद का अपना रसूख था। दादा डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। आजादी से पहले वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस व मुस्लिम लीग के अध्यक्ष रहे। मुख्तार के पिता सुबहानउल्लाह अंसारी वामपंथी नेता थे। मुख्तार के नाना बिग्रेडियर (Mukhtar's maternal grandfather Brigadier Usman) उस्मान को 'नौशेर का शेर' का शेर कहा जाता था। वीरता के लिए उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था। चाचा हामिद अंसारी को भारत के उपराष्ट्रपति होने का गौरव प्राप्त है। उसी परिवार का एक लड़का इस कदर राह भटक जाता है कि वह एक दिन दुर्दांत अपराधी बन जाता है। अब जब भी कोई मुख्तार का नाम लेगा तो उसे 'चमकदार खानदान का दागदार वारिस' के तौर पर याद किया जाएगा।
1988 में दर्ज हुआ था पहला मुकदमा
1985 में अफजाल अंसारी के विधायक बनने के बाद मुख्तार अंसारी ने पढ़ाई छोड़कर स्थानीय स्तर पर ठेकेदारी का काम किया। बड़े भाई के विधायक बनने के बाद उसकी दबंगई चरम पर पहुंच गई। गलत संगत ने उसे जरायम की दुनिया में धकेल दिया। 1988 में ठेकेदार सच्चिदानंद राय की हत्या के मामले में मुख्तार पर पहला मुकदमा दर्ज हुआ। इसके बाद मुख्तार की केस हिस्ट्री एक के बाद एक बढ़ती ही गई। 2023 तक मुख्तार अंसारी पर पूरे यूपी समेत 7 राज्यों में कुल 65 मुकदमे दर्ज हो चुके थे।
यहीं से शुरू हुआ था मुख्तार का बुरा वक्त
राजनीतिक जानकारों की मानें तो कृष्णानंद राय की हत्या के बाद से ही मुख्तार का बुरा वक्त शुरू हो गया था। वह साल 2005 था जब शूटर्स ने भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की उस वक्त हत्या कर दी, जब वह एक क्रिकेट टूर्नामेंट का उद्घाटन करने आये थे। उस वक्त मुख्तार जेल में था, बावजूद हत्याकांड में उसे नामजद किया गया था। दरअसल तीन साल पहले यानी साल 2002 में भाजपा नेता कृष्णानंद राय ने गाजीपुर की मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट से लगातार 5 बार विधायक रहे मुख्तार के बड़े भाई अफजाल अंसारी को हरा दिया था। यहीं से कृष्णानंद राय मुख्तार के आंखों की किरकिरी बन गये थे।
अब क्या होगा अंसारी परिवार का राजनीतिक भविष्य?
पूर्वांचल में जरायम की दुनिया का बेताज बादशाह रहे मुख्तार का सियासत में भी खूब दखल रहा। पूर्वी उत्तर प्रदेश की कई सीटों पर न केवल वह प्रत्याशी तय करता था बल्कि उनकी हार-जीत भी सुनिश्चित करता था। हत्या, दंगा व गैंगवार सहित हर तरह के आपराधिक रिकॉर्ड कायम करने के बाद 1995 में उसने सियासी मैदान का रुख किया। पांच बार विधायक रहा, खुद की पार्टी बनाई। मुख्तार के बड़े भाई अफजाल अंसारी भी 5 बार विधायकी जीते, सांसद भी बने। 2022 के विधानसभा चुनाव में बेटा अब्बास अंसारी विधायक बना। पत्नी आफसा पार्षद रही। अब माफिया मुख्तार की मौत के बाद अंसारी परिवार का राजनीतिक भविष्य क्या होगा? यह तो समय ही बताएगा लेकिन यह तय है कि मुख्तार ने अपनी आपराधिक छवि की छाया में जो राजनीतिक रसूख बनाया था, उसकी चमक फीकी जरूर पड़ेगी।