मायावती-भाजपा प्रेम: फैसला हो सकता है आत्मघाती, साथ चुनाव लड़ने का संकेत

मायावती को लेकर कोई दल कभी आश्वस्त नही रहता है। यूपी में बसपा कांग्रेस के साथ एक बार, सपा से दो बार और भाजपा से तीन बार गठबंधन कर उससे अलग हो चुकी हैं। गत लोकसभा चुनाव में सपा से गठबन्धन कर चुनाव लड़ने का बसपा को भरपूर फायदा भी मिला।

Update:2020-10-30 13:15 IST
मायावती-भाजपा प्रेम: फैसला हो सकता है आत्मघाती, साथ चुनाव लड़ने का संकेत

श्रीधर अग्निहोत्री

लखनऊ। राज्यसभा चुनाव में एक निर्दलीय प्रत्याशी को लेकर जिस तरह से बसपा सुप्रीमों मायावती ने सपा को हराने के लिए भाजपा से मिलकर चुनाव लड़ने के संकेत दिए है उससे संभावना इस बात की है कि प्रदेश का मुस्लिम वोट बसपा से छिटक सकता है। उनके इस बयान के बाद से प्रदेश की मुस्लिम राजनीति एक बार फिर गरमा रही है। कहा जा रहा है कि अगले विधानसभा चुनाव में यह उनके लिए 'आत्मघाती कदम' हो सकता है।

लोकसभा चुनाव में सपा के साथ गठबंधन का भरपूर लाभ मिला

दरअसल, मायावती को लेकर कोई दल कभी आश्वस्त नही रहता है। यूपी में बसपा कांग्रेस के साथ एक बार, सपा से दो बार और भाजपा से तीन बार गठबंधन कर उससे अलग हो चुकी हैं। गत लोकसभा चुनाव में सपा से गठबन्धन कर चुनाव लड़ने का बसपा को भरपूर फायदा भी मिला। लेकिन कुछ दिनों बाद ही मायावती और अखिलेश यादव का ब्रेक-अप हो गया। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण मुस्लिम वोट बैंक को अपने पाले में करने का ही था।

सपा-बसपा गठबंधन में 6 मुस्लिम सांसद बने

2019 के लोकसभा चुनाव के पहले मुस्लिम यह समझने में नाकाम था कि किस पार्टी का दामन पकड़ा जाए जो भाजपा को कमजोर कर सके। लेकिन इस चुनाव में सपा- बसपा गठबन्धन हुआ तो 6 मुस्लिम सांसद बने। जबकि इसके पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में एक भी मुस्लिम सांसद नहीं बन सका था । लेकिन 2019 के चुनाव में विपक्षी पार्टियों के 6 मुस्लिम सांसद बने जिसमें 3 सपा औए 3 बसपा के हैं। खास बात ये है इनमे 5 सांसद पश्चिमी यूपी के हैं और 4 सांसद केवल मुरादाबाद मंडल के हैं ।

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मायावती ने गठबंधन में ऐसी सीट हथियाई जहाँ बसपा दूर नंबर पर थी

बसपा ने लोकसभा चुनाव 2014 मे सभी 80 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे । तब ब्राह्मण मुस्लिम और अनुशुचित जाति को केंद्र में रखकर 21 सीटे ब्राह्मण प्रत्याशियों को, 19 सीटे मुस्लिम प्रत्याशियों को दी गई थी। अन्य पिछड़ा वर्ग को 15 तथा क्षत्रियों को को सिर्फ 8 सीटे दी थी। लेकिन मोदी लहर के चलते उसे एक भी सीट नही मिल पासी। यह बात अलग है कि उसका वोट प्रतिशत 19,78 रहा। जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में मायावती ने बड़े ही चतुराई से सीटों का बंटवारा किया और सपा से ऐसी सीटे ले ली जिन पर वह दूसरे स्थान पर थी।

2012 की विधानसभा में 64 मुसलमान विधायक जीत कर आए

जहां तक विधानसभा चुनाव की बात है तो 2012 में जब प्रदेश में अखिलेश यादव के नेतृत्व में सपा की सरकार का गठन हुआ तो सब से ज्यादा 64 मुसलमान विधायक चुनाव जीत कर आए थे। इनमें से 41 समाजवादी पार्टी, 15 बसपा, दो कांग्रेस और छह विधायक अन्य दलों से विधानसभा में थे। इससे पहले 2007 के विधानसभा चुनाव में 56 मुसलमान विधायक बने थे जिनमें से 29 बसपा, 21 सपा व छह अन्य दलों के थे।

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2017 में बसपा ने उतारे 102 मुस्लिम प्रत्याशी

पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा ने सबसे ज्यादा 102 मुस्लिम प्रत्याशी उतारे लेेकिन सिर्फ 5 मुस्लिम प्रत्याशी ही चुनाव जीत पाए। वहीं, समाजवादी पार्टी - कांग्रेस गठबंधन ने 89 मुसलमानों को टिकट दिए थे, जिसमें सपा के 23 में से 17 प्रत्याशी चुनाव जीते। जबकि कांग्रेस के सात में से दो मुस्लिम विधायक विधानसभा पहुंचे। भाजपा ने एक भी मुस्लिम प्रत्याशी नहीं उतारा फिर भी उसके सबसे ज्यादा 312 प्रत्याशी चुनाव जीते। लेकिन अब डेढ साल बाद एक बार फिर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं उसमें मुस्लिम वोट किधर जाएगा यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।

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