माया से मिले सियासी धोखे की स्क्रिप्ट तैयार अब एक्शन की बारी...
लोकसभा चुनाव में मिली हार का ठीकरा बसपा सुप्रीमो मायावती द्वारा समाजवादी पार्टी पर फोड़े जाने से नाराज सपाई उन्ही के घर में मात देने की तैयारी में लग गए है। सपा इस मुद्दे पर बहुत फूंक-फूंक कर कदम आगे बढ़ाने जा रही है।
लखनऊ: लोकसभा चुनाव में मिली हार का ठीकरा बसपा सुप्रीमो मायावती द्वारा समाजवादी पार्टी पर फोड़े जाने से नाराज सपाई उन्ही के घर में मात देने की तैयारी में लग गए है। सपा इस मुद्दे पर बहुत फूंक-फूंक कर कदम आगे बढ़ाने जा रही है। इसके लिए सबसे पहले माया को उपचुनाव में ही घेरने की रणनीति पर सपा लग गयी है। जिससे भविष्य माया को उन्ही की भाषा में जवाब दे सके। फ़िलहाल अखिलेश खुद और पार्टी नेताओं को किसी भी तरह की बयानबाजी से रोक रखा है, जिसके चलते सपा नेता बसपा और मायावती के खिलाफ अपनी भड़ास को दबाए रखने पर मजबूर हैं।
सपा की नजर अपने खिसके जनाधार को वापस लाने के साथ-साथ मायावती के दलित वोटबैंक पर भी है। सपा ने दलितों में पासी समुदाय को अपने साथ जोडऩे की रणनीति बनाई है। इसके लिए पार्टी बसपा से आए इंद्रजीत सरोज समेत तमाम दलित नेताओं को आगे बढ़ाएगी और अपने जनाधार को मजबूत करेगी।
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अखिलेश यादव ने आखिरी बार 2012 के विधानसभा चुनाव में यूपी के सभी जिलों का दौरा किया था। लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद ये सिलसिला खत्म हो गया था। सपा नेता ने बताया कि संसद सत्र खत्म होने के बाद अखिलेश यादव फिर उत्तर प्रदेश के सभी जिलों का दौरा करेंगे। इस दौरे के जरिए अखिलेश लोगों से संपर्क और संवाद स्थापित करेंगे। वो जनता को पार्टी की नीतियों से अवगत कराएंगे और उनकी समस्याओं को लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं संग सड़क पर संघर्ष करने के लिए उतरेंगे।
सपा ने अपने नेता, पदाधिकारी, जिला, बूथ और गांव स्तर के कार्यकर्ताओं को निर्देश दिया है कि वो जनता के बीच जाएं। पार्टी कार्यकर्ताओं को समाज के सभी वर्गों, खासकर कमजोर वर्ग तक पहुंचने के लिए कहा गया है। कुल मिलाकर मायावती से मिले सियासी धोखे के बदले की स्क्रिप्ट तैयार है और अब सिर्फ एक्शन का इंतजार है।
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उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा के गठबंधन कर चुनावी मैदान में उतरने से सबसे ज्यादा फायदे में मायावती रहीं। बसपा प्रदेश में जीरो से 10 सीटों पर पहुंच गई और उसका वोटबैंक भी पिछले चुनाव की तरह जस का तस बना रहा। वहीं, अखिलेश यादव गठबंधन में अपनी सियासी जमापूंजी लुटा बैठे। उनके वोट तीन फीसदी तक घट गए। पार्टी पिछले चुनाव की तरह पांच सीटें तो जीत गई, लेकिन उसके अपने ही मजबूत गढ़ कन्नौज में डिम्पल यादव, बदायूं में धर्मेंद्र यादव और फिरोजाबाद में अक्षय यादव हार गए।
मायावती के लगातार हमलों पर अखिलेश यादव खामोशी अख्तियार किए हुए हैं। सपा नेताओं को इस खामोशी में ही फायदा दिख रहा है। क्योंकि सपा-बसपा का गठबंधन सिर्फ दो दलों का गठबंधन नहीं था बल्कि जनता का खासकर दलित-यादव समुदाय का जमीनी स्तर पर बना गठबंधन था।
सपा को लगता है कि मायावती द्वारा गठबंधन तोड़े जाने से दलितों और पिछड़ों को तकलीफ हुई है। इसके अलावा गठबंधन टूटने से सामाजिक न्याय की लड़ाई भी कमजोर हुई है। ऐसे में दलितों के पढ़े लिखे तबके में अखिलेश यादव को लेकर सहानुभूति है। इसके अलावा मायावती ने अपनी राजनीतिक विरासत जिस तरह से भाई आनंद कुमार और भतीजे आकाश को सौंपी है, उससे भी दलितों का एक तबका बसपा से रूठा होगा।
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सपा की नजर इन्हीं तबकों पर है। यही नहीं, लोकसभा चुनाव के बाद यूपी में दलित उत्पीडऩ के कई मामले सामने आए हैं। प्रतापगढ़ में दबंगों ने एक दलित की झोपड़ी में आग लगाकर उसे मार दिया तो उन्नाव में एक दलित लड़की के साथ बलात्कार की घटना हुई। इन दोनों मामलों पर मायावती खामोशी अख्तियार किए रहीं, वहीं अखिलेश यादव ने सपा नेताओं की एक टीम बनाकर रिपोर्ट तैयार करने को कहा है।
अगले छह माह के अंदर में लखनऊ कैंट, गोविंदनगर, प्रतापगढ़, जलालपुर, हमीरपुर, रामपुर, टूंडला, मानिकपुर, जैदपुर, इगलास, बलहा और गंगोह विधानसभा सीट पर उपचुनाव होने है। इन सीटों पर सपा का फार्मूला है कि बसपा के प्रत्याशी को हराकर उनको एहसास कराया जायेगा कि हम दोनों यानि यादव व दलित एक दूसरे के पूरक है। इसके लिए सपा ने पूरी टीम को लगा दिया है।