मेरठ के इस गांव में हुआ था लघु जलियांवाला कांड, अंग्रेजों ने ग्रामीणों पर बोला था हमला

मेरठ की पृष्ठभूमि में अंग्रेजों के जुल्म की दास्तान छुपी हुई है। दिल्ली से लगभग 100 किलोमीटर दूर मेरठ का भमौरी गांव तो आजादी की लड़ाई में बलिदान हुए क्रांतिकारियों की शहादत का गवाह है।

Update:2021-03-12 21:36 IST
मेरठ का भमौरी गांव जो आज भी लघु जलियांवाला बाग कांड के लिए जाना जाता है

मेरठ: मेरठ की पृष्ठभूमि में अंग्रेजों के जुल्म की दास्तान छुपी हुई है। दिल्ली से लगभग 100 किलोमीटर दूर मेरठ का भमौरी गांव तो आजादी की लड़ाई में बलिदान हुए क्रांतिकारियों की शहादत का गवाह है। इस गांव को आज भी लघु जलियांवाला बाग कांड के लिए जाना जाता है। अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 18 अगस्त 1942 को भमौरी गांव में मोटो की चौपाल पर क्रांतिकारियों की सभा हो रही थी, तभी अंग्रेजी फौज ने अचानक हमला कर दिया। अंग्रेजी सिपाहियों ने उन पर अंधाधुंध गोलियां बरसा दीं, जिसमें कई क्रांतिकारी मौके पर ही शहीद हो गए।

गोलीबारी में 28 से अधिक ग्रामीण हुए थे शहीद

जिला मुख्यालय से 38 किमी दूर सरधना तहसील इस गांव के लोग बताते हैं कि 18 अगस्त 1942 को इस गांव में फिरंगियों के खिलाफ रणनीति बनाने के लिए ग्रामीण चौपाल पर एकत्र हुए थे। अचानक अंग्रेजी फौज ने ग्रामीणों पर हमला कर दिया था। ग्रामीणों पर घात लगाकर वार किया और अंधाधुंध गोलियां बरसाईं। इस गोलीबारी में 28 से अधिक ग्रामीण शहीद हो गए थे। शहीद होने वालों में प्रहलाद सिंह, फतह सिंह, लटूर सिंह, बोबल सिंह, रणधीर सिंह, कश्मीर सिंह, महावीर सिंह, बनी सिंह, प्रेम सिंह, मलखान सिंह, शिवचरण सिंह, नत्थूराम शर्मा, अमी सिंह, केन सिंह, देवी सिंह, पृथ्वी सिंह, जम्मू उर्फ जुगमंदर दास, मधू शर्मा, दाती सिंह, देवदत्त शर्मा, जीत सिंह व करम सिंह आदि के नाम शामिल हैं। बड़ी संख्या में लोग घायल भी हुए थे।

ठाकुर देवी सिंह, चेतनलाल, रणधीर सिंह, फकीरा, छुट्टन, बलजीत, शिवचरण, रघुवीर, ताराचंद, बाबूराम शर्मा, मुख्तियार, जमादार सिंह को जेल में डाल दिया गया था। इसमें से 18 लोगों को 12-12 वर्ष की कैद की सजा दी गई थी। इन सभी के नाम गांव में बने शहीद स्तंभ पर अंकित हैं।

अंग्रेजों ने ग्रामीणों को घेरकर गोलियां बरसाईं थी

जब यह घटना हुई तो उसी समय बारिश हो गई, जिस कारण मृतक और घायल क्रांतिकारियों का खून बारिश के पानी के साथ गांव की नालियों में बह निकला। जिसे देख गांव के लोगों का खून खौल उठा था। ग्रामीणों ने इकट्ठा होकर अंग्रेजों पर हमला बोल दिया था। इसके बाद अंग्रेजों ने ग्रामीणों को घेरकर जमकर गोलियां बरसाईं थी। मोटो की चौपाल पर होने वाली इस सभा का नेतृत्व बलिया के रामस्वरूप शर्मा कर रहे थे। अंग्रेज सिपाहियों ने पंडित रामस्वरूप के सीने में तीन गोलियां मारीं। इसके बाद पंडित रामस्वरूप शर्मा को मरणासन्न अवस्था में बंदी बनाकर यातनाएं दी गईं। उनके जख्मों को संगीनों से कुरेदा। वांछित जानकारी नहीं मिलने पर अंग्रेजों ने संगीन से उनकी गर्दन पर वार किए और उन्हें अमर बलिदानी बना दिया।

यही नहीं अंग्रेजों ने पंडित रामस्वरूप के शव को ही गायब कर दिया। हालांकि बाल जासूस राजनीत रुहेला ने क्रांतिकारियों को इसकी जानकारी दी। क्रांतिकारियों ने शव की मांग को लेकर थाना घेर लिया। गांधी आश्रम के सचिव लज्जाराम और ग्रामीणों के तीखे विरोध पर उनके शव को गड्ढे से निकाला गया। इसके बाद थाने में ही शव का अंतिम संस्कार किया गया। इन शहीदों की याद में गांव में स्मारक बना हुआ है।

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इस गांव को शहीदों का गांव घोषित किया गया

शहीदों की भूमि भामौरी गांव में 15 अगस्त सन 1947 की सुबह का सूरज अपने साथ कभी नहीं भूलने वाला उत्सव लेकर आया था। स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या को हर घर, गली, नुक्कड़ और पेड़ को तिरंगों से ढक दिया गया था। जबकि 15 अगस्त को दिनभर लोग तिरंगा हाथ में लेकर ढोल, नगाड़े के साथ गांव में जुलूस निकालते रहे। अंग्रेजों के जाने की जितनी खुशी भामौरी के बाशिंदों को हुई उसका अंदाजा लगाना नामुमकिन था। आजादी के बाद इस गांव को शहीदों का गांव घोषित किया गया। इतना ही नहीं गांव में शहीद स्थल का निर्माण कराकर वहां स्तंभ लगवाया गया, इस स्तंभ पर शहीदों के नाम आज भी अंकित हैं। इन शहीदों को नमन करने देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू स्वयं भामौरी आए थे।

रिपोर्ट- सुशील कुमार

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