Meerut News: कलयुग के आगाज का गवाह है परीक्षितगढ़, लेकिन यहां नहीं है कोई किला, जानें रोचक कहानी

Meerut News:जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर महाभारत काल का परीक्षितगढ़ आज भी कलयुग के आगाज का गवाह है। किला परीक्षितगढ़ राजा परीक्षित के नाम पर पड़ा है।

Report :  Sushil Kumar
Update:2023-10-31 12:13 IST

मेरठ के परीक्षितगढ़ किले की कहानी (न्यूजट्रैक)

Meerut News: जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर महाभारत काल का परीक्षितगढ़ आज भी कलयुग के आगाज का गवाह है। किला परीक्षितगढ़ राजा परीक्षित के नाम पर पड़ा है। विभिन्न ऐतिहासिक तथ्यों में उल्लेख है कि इसी स्थान से कलियुग का प्रारंभ हुआ था। इस जगह की खास बात यह भी है कि नाम तो इसका किला परीक्षितगढ़ है। लेकिन,किला कोई नहीं है। स्थानीय निवासी पकंज कहते है कि यहां पर्यटक आते हैं और पूछते हैं कि राजा परीक्षित का किला कहां है। उनको समझाना पड़ता है कि किला पहले हुआ करता था, लेकिन अब वहां गांधार दरवाजा, राजा गेट, पटवारियान व बजरी महल आदि मोहल्ले बस गए हैं।

पर्यटकों को किले का आभास कस्बे की सड़क पर उतार-चढ़ाव से ही होता है। उनका कहना है कि म्यूजियम बना दिया जाए तो कम से कम पर्यटकों के सवालों के कुछ उत्तर तो मिल ही जाएंगे। प्रमुख पर्यटन स्थल की बात की जाए तो श्रृंगी ऋषि आश्रम, गांधारी सरोवर, गोपेश्वर मंदिर, ,कात्यायिनी देवी मंदिर आदि हैं।

कलयुग के आगाज का गवाह क्यों है परीक्षितगढ़

किला परीक्षितगढ़ को कलयुग के आगाज का गवाह क्यों कहा जाता है। इसकी भी एक कहानी है। कहा जाता है कि सरस्वती के तट पर शिकार खेलते समय राजा परीक्षित को कलयुग मिला। उसने छलपूर्वक राजा परीक्षित से स्वर्ण में स्थान मांगा। वह उनके मुकुट में बैठ गया। जिसके कारण उनकी बुद्धि तामसिक हो गई। राजा परीक्षित उत्तरा और अभिमन्यु के पुत्र थे। जिनको कृष्ण ने अश्वत्थामा द्वारा चलाये गए ब्रम्हास्त्र से बचाया था। परीक्षित का पालन-पोषण विष्णु और कृष्ण द्वारा किया गया था। परीक्षित का नाम परीक्षित इसीलिए पड़ा क्योंकि वह सभी के बारे में यह परीक्षण करते थे कि वह कहीं उस आदमी से अपनी मां के गर्भ में ही तो नहीं मिला था।


किला परीक्षितगढ़ के पास है श्रृंगी ऋषि का आश्रम

किला परीक्षितगढ़ से एक किमी दूर है श्रृंगी ऋषि का आश्रम। श्रृंगी आश्रम के अंदर एक मंदिर भी है। मान्यता है कि अगर परीक्षितगढ़ में या फिर यहां मौजूद श्रृंगी ऋषि आश्रम में आसपास भी कहीं सांप होता है तो इसका अहसास इंसान को खुद ही हो जाता है। मान्यता ये भी है कि यहां राजा परीक्षित के पुत्र जान्मेजय का नाम लेने भर से ही सांप कई मीटर पीछे लौट जाता है। मंदिर के नीचे से एक सुरंग बनी है, जिसका कभी महाभारत के समय प्रयोग हुआ करता था।

वृक्षों से आच्छादित इस स्थल का नैसर्गिक सौंदर्य निरखते बनता है। इनमें एक संबल का प्राचीन वृक्ष भी है जिसके बारे में लोग कहते हैं, इसके नीचे शमीक ऋषि तपस्या में लीन थे। जब राजा परीक्षित ने उनके गले में सर्प डाला। श्रृंगी ऋषि आश्रम में आज भी जो मूर्ति श्रृंगी ऋषि की है उसमें सांप लटका हुआ नजर आता है। यहां आज भी हवन कुंड मौजूद है जहां वो तपस्या किया करते थे और यहां आज भी वो कुआं मौजूद हैं जिसका जल ऋषि पिया करते थे।

श्रृंगी ऋषि ने राजा परीक्षित को दिया था श्राप

दरअसल,जब राजा परीक्षित जंगल का भ्रमण करते हुए ऋषि शमीक की कुटिया में पहुंचे थे। परीक्षित बहुत प्यासे थे और उन्होंने ध्यान लगाये हुए ऋषि शमीक को कई बार बड़े आदर और भाव से जगाना चाहा, पर ऋषि का ध्यान ना टूटा। अंत में परेशान होकर उन्होंने एक मरे हुए सांप को ऋषि के ऊपर डाल दिया था। इस वाकये के बाद ऋषि के पुत्र श्रृंगी ने परीक्षित को श्राप दिया कि वह 7वें दिन ही एक सांप द्वारा दंश किये जायेंगे और उनकी मृत्यु हो जायेगी।

इसी श्राप को सुन कर राजा परीक्षित ने अपने पुत्र को राजा बना दिया और अगले सात दिन तक ऋषि शुकदेव जो कि ऋषि वेद व्यास के पुत्र थे उनसे भागवत पुराण सुनी। भागवत कथा सुनने के बाद परीक्षित ने ऋषि की पूजा करने के बाद कहा कि उनको अब सर्पदंश से कोई डर नहीं है क्योंकि उन्होंने आत्म मन और ब्रम्ह को जान लिया है, लेकिन ठीक 7वें दिन तक्षक सांप ऋषि का वेश बना कर राजा से मिलने आया और उनको डस लिया जिससे उनकी मृत्यु हो गयी। इस कथा को यहां मूर्तवान भी किया गया है।

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