बनारस में स्ट्राबेरी की आधुनिक फसल, दो दोस्तों ने मिलकर किया कमाल
एक तरफ किसानों की आय दोगुनी करने के लिए केंद्र सरकार लगातार कोशिश कर रही है तो दूसरी ओर खुद किसान भी लीक से हटकर नए रास्ते चुन रहे हैं. धान, गेंहू और बाजरा जैसी परम्परागत खेती छोड़कर अब गंगा के मैदानी इलाकों में आधुनिकता की फसल लहलहा रही है.
वाराणसी: एक तरफ किसानों की आय दोगुनी करने के लिए केंद्र सरकार लगातार कोशिश कर रही है तो दूसरी ओर खुद किसान भी लीक से हटकर नए रास्ते चुन रहे हैं. धान, गेंहू और बाजरा जैसी परम्परागत खेती छोड़कर अब गंगा के मैदानी इलाकों में आधुनिकता की फसल लहलहा रही है. किसान स्ट्राबेरी जैसी आधुनिक फसल उगा रहे हैं, जिससे उनकी आय में बढ़ोत्तरी भी हो रही है.
किसान ने आपदा को बनाया अवसर
किसानों को आधुनिकता की ओर ले जाने वाले है कंदवा के रहने वाले दो दोस्त. नाम है रमेश मिश्रा और मदन मोहन तिवारी. लॉकडाउन के पहले दोनों प्राइवेट जॉब करते थे, लेकिन ज़ब कोरोना के चलते नौकरी छोड़नी पड़ी तो दोनों ने खेती की राह चुनी. लेकिन चुनौती ये थी कि कौन सी फसल उगाई जाए. आपदा को अवसर बनाते हुए दोनों ने स्ट्राबेरी की खेती करने का फैसला किया. स्ट्राबेरी की खेती का आइडिया दोनों को पुणे से मिला. इसके बाद गंगा के मैदानी खेत में स्ट्राबेरी की खेती शुरु कर दी.
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एक एकड़ में लगाई स्ट्राबेरी की फसल
रमेश बताते हैं कि स्ट्राबेरी की खेती का आइडिया पुणे से मिला. उनका मानना है कि जब स्ट्रॉबेरी की खेती पुणे में हो सकती है, तो यह वाराणसी में क्यों नहीं? इनके द्वारा शुरू की गई आधुनिक खेती वाराणसी के साथ ही आसपास के जिलों के लिए नजीर बन गई है. यही वजह है कि लोग यहां आते हैं, इनकी खेती को देखते हैं और इनसे जानकारियां प्राप्त करते हैं.गौरतलब है कि स्ट्राबेरी की खेती आम तौर पर पहाड़ी क्षेत्र में होती है पर अब गंगा के किनारे भी स्ट्राबेरी की फसल लहलहाती हुई देखने को मिल रही है. दोनों दोस्त ना सिर्फ फ़सल उगा रहे हैं बल्कि उसे लोकर मार्केट में बेच भी रहे हैं.
आशुतोष सिंह
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