कमांडों की तरह होती है नागा साधुओं की ट्रेनिंग, जानिए इनके सारे रहस्य

Update: 2016-04-11 12:02 GMT

लखनऊ: हर 12 साल बाद महाकुंभ का आयोजन भारत के चार शहरों में होता है। इस साल 22 अप्रैल से उज्जैन में लगने वाले सिंहस्थ कुंभ में भी शाही स्नान में लाखों की संख्या में श्रद्धालु क्षिप्रा नदी में डुबकी लगाएंगे। उज्जैन में 12 साल बाद यह मौका आ रहा है, जब एक बार फिर श्रद्धालु नागा साधुओं के दर्शन करेंगे।

ये नागा साधु सिर्फ कुंभ के दौरान नजर आते हैं फिर इनका कोई पता नहीं चलता। यह एक रहस्य ही है कि यह नागा साधु आखिर कहां से आते हैं, कहां अदृश्य हो जाते हैं, क्या खाते हैं और कहां सोते हैं।

इलाहाबाद और बनारस से भी पहुंचे हैं नागा सन्यासी

तन पर कपड़े का कोई नामो-निशान नहीं, शरीर पर भभूत लपेटे, नाचते-गाते, उछलते-कूदते, डमरू-ढफली बजाते नागा साधुओं का जीवन आम इंसान के लिए एक अनसुलझा रहस्य रहा है।

जूना अखाड़े के प्रवक्ता महंत हरी गिरि ने कहा

वे कहां से आते हैं और महाकुंभ के बाद कहां चले जाते हैं, इस बारे में किसी को कोई ज्यादा जानकारी नहीं होती। जूना अखाड़े के प्रवक्ता महंत हरी गिरि बताते हैं कि अखाड़ों में आए यह नागा सन्यासी इलाहाबाद, काशी, उज्जैन, हिमालय की कंदराओं और हरिद्वार से महाकुंभ में पहुंचते हैं।

गुप्त स्थान पर रह करते हैं तपस्या

इनमें से बहुत से सन्यासी वस्त्र धारण कर और कुछ निर्वस्त्र भी गुप्त स्थान पर रहकर तपस्या करते हैं। अभी वे हरिद्वार में अर्धकुम्भ, सिंहस्थ के दौरान उजैन में नजर आएंगे और फिर अपनी रहस्यमयी दुनिया में लौट जाएंगे। इसके बाद वे 2019 में अर्धकुंभ के दौरान यूपी के इलाहाबाद शहर में में नजर आएंगे।

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कमांडो की तरह होती है ट्रेनिंग

आमतौर पर उनकी जीवनशैली और दिनचर्या देखकर यही लगता है कि नागा साधु बनना बड़ा आसान है। लेकिन नागा साधुओं की ट्रेनिंग एक कमांडो को मिलने वाली ट्रेनिंग से भी ज्यादा कठिन होती है। उन्हें दीक्षा लेने से पहले खुद को इसके काबिल साबित करना पड़ता है। एक नागा साधुको खुद का पिंड दान और श्राद्ध तर्पण करना पड़ता है।

मंदिरों और मठों की करते थे रक्षा

प्राचीन समय में अखाड़ों में नागा साधुओं को मठों की रक्षा के लिए एक योद्धा की तरह तैयार किया जाता था। इतिहास गवाह है कि मठों और मंदिरों की रक्षा करने वाले इन नागा साधुओं ने कई लड़ाइयां भी लड़ी हैं।

कठिन परीक्षा के बाद दीक्षा, तब होती है ट्रेनिंग

एक नागा साधु बनने के लिए बेहद कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। उनको आम दुनिया से अलग हटकर बनना होता है। इस प्रक्रिया में ही सालों लग जाते हैं। नागा साधु बनने की इच्छा जताने वाले व्यक्ति की कड़ी जांच-परख अखाड़ा अपने स्तर से करता है और ये तहकीकात करता है कि वह नागा साधु किस वजह से बनना चाहता है? एक कमांडो की ही तरह उस व्यक्ति और उसके परिवार का पूरा बैकग्राउंड चेक किया जाता है।

अगर अखाड़े को जांच के दौरान ये लगता है कि वह साधु बनने के लिए सही व्यक्ति है, तभी उसे अखाड़े में प्रवेश की इजाजत मिलती है। अखाड़े में प्रवेश के बाद नागा साधुओं के ब्रहम्चर्य की परीक्षा ली जाती है। इस परीक्षा में 6 महीने से लेकर 12 साल तक लग जाते हैं। इसके बाद अगर अखाड़े का प्रबंधन और उस व्यक्ति का गुरू यह मान लेते हैं कि वह व्यक्ति दीक्षा देने लायक हो चुका है फिर उसे अगले चरण की परीक्षा के लिए भेज दिया जाता है।

नागा बनने के ये हैं स्टेप्स

जैसे मार्शल आर्ट की पूरी ट्रेनिंग मिलने के बाद ब्लैक बेल्ट मिलता है, उसी तरह नागाओं में भी ट्रेनिंग के कई चरण होते हैं। इन्हें पूरा करने के बाद ही वे नागा साधु के रूप में अपने आपको स्थापित करते हैं और उन्हें मान्यता मिलती है।

महापुरुष- नागा साधु बनने वाला व्यक्ति अगर ब्रह्मचर्य का पालन करने की परीक्षा सफल हो जाता है, तो उसे ब्रह्मचारी से महापुरुष घोषित जाता है। साथ ही उसके पांच गुरू बनाए जाते हैं। ये पांच गुरू पंच देव या पंच परमेश्वर (शिव, विष्णु, शक्ति, सूर्य और गणेश) होते हैं। इस प्रक्रिया में उन्हें भस्म, भगवा, रूद्राक्ष जैसी चीजें दी जाती हैं। यह सभी नागाओं के प्रतीक और आभूषण माने जाते हैं।

अवधूत- महापुरुष के बाद नागाओं को अवधूत बनने की प्रक्रिया से गुजरना होता है। इसके लिए उन्हें अपने बाल कटवाने होते हैं। इसके लिए अखाड़ा परिषद की रसीद भी कटती है। अवधूत रूप में दीक्षा लेने वाले को खुद का ही तर्पण और पिंडदान करना होता है। ये पिंडदान अखाड़े के पुरोहित करवाते हैं। इस प्रक्रिया के बाद नागा साधु संसार और परिवार के लिए मृत मान लिए जाते हैं। अब इनके जीवन का एक ही उद्देश्य होता है सनातन और वैदिक धर्म की रक्षा।

लिंग भंग- मोहमाया के चलते नागा साधुअपने लक्ष्य से विचलित न हो, इसके लिए उसका लिंग भंग कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया के लिए उन्हें 24 घंटे नागा रूप में अखाड़े के ध्वज के नीचे बिना कुछ खाए-पिए खड़ा होना पड़ता है। इस दौरान उनके कंधे पर एक दंड और हाथों में मिट्टी का बर्तन होता है। इस दौरान अखाड़े के पहरेदार उन पर नजर रखे होते हैं। इसके बाद अखाड़े के साधु द्वारा उनके लिंग को वैदिक मंत्रों के साथ झटके देकर निष्क्रिय किया जाता है। इस प्रक्रिया के बाद वह व्यक्ति नागा साधु बन जाता है।

नागाओं के पद और अधिकार- नागा साधुओं के कई पद होते हैं। एक बार नागा साधु बनने के बाद उसके पद और अधिकार भी बढ़ते जाते हैं। नागा साधु के बाद महंत, श्रीमहंत, जमातिया महंत, थानापति महंत, पीर महंत, दिगंबरश्री, महामंडलेश्वर और आचार्य महामंडलेश्वर जैसे पदों तक जा सकता है।

महिलाएं भी बनती है नागा साधु- वर्तमान में कई अखाड़ों मे महिलाओं को भी नागा साधु की दीक्षा दी जाती है। इनमे विदेशी महिलाओं की संख्या भी काफी है। वैसे तो महिला नागा साधु और पुरुष नागा साधु के नियम कायदे समान ही है। फर्क केवल इतना ही है की महिला नागा साधु को एक पीला वस्त्र लपेट कर रखना पड़ता है और यही वस्त्र पहन कर स्नान करना पड़ता है। नग्न स्नान की अनुमति नहीं है, यहां तक की कुंभ मेले में भी नहीं।

नागा साधुओं के नियम :-

वैसे तो हर अखाड़े में दीक्षा के कुछ अपने नियम होते हैं, लेकिन कुछ कायदे ऐसे भी होते हैं, जो सभी दशनामी अखाड़ों में एक जैसे होते हैं।

1- ब्रह्मचर्य का पालन- सिर्फ दैहिक ब्रह्मचर्य ही नहीं, मानसिक नियंत्रण को भी परखा जाता है।

2- सेवा कार्य- जो भी साधु बन रहा है, वह धर्म, राष्ट्र और मानव समाज की सेवा और रक्षा के लिए बन रहा है। ऐसे में कई बार दीक्षा लेने वाले साधु को अपने गुरू और वरिष्ठ साधुओं की सेवा भी करनी पड़ती है।

3- खुद का पिंडदान और श्राद्ध- साधक स्वयं को अपने परिवार और समाज के लिए मृत मानकर अपने हाथों से अपना श्राद्ध कर्म करता है। इसके बाद ही उसे गुरु द्वारा नया नाम और नई पहचान दी जाती है।

4- वस्त्रों का त्याग- नागा साधुओं को वस्त्र धारण करने की भी अनुमति नहीं होती। अगर वस्त्र धारण करने हों, तो सिर्फ गेरुए रंग के वस्त्र ही नागा साधु पहन सकते हैं। वह भी सिर्फ एक वस्त्र, इससे अधिक गेरुए वस्त्र नागा साधु धारण नहीं कर सकते। नागा साधुओं को शरीर पर सिर्फ भस्म लगाने की अनुमति होती है। भस्म का ही श्रृंगार किया जाता है।

5- भस्म और रुद्राक्ष- नागा साधुओं को विभूति एवं रुद्राक्ष धारण करना पड़ता है, शिखा सूत्र (चोटी) का परित्याग करना होता है। नागा साधु को अपने सारे बालों का त्याग करना होता है। वह सिर पर शिखा भी नहीं रख सकता या फिर पूरी तरह जटा ही रख सकता है।

6- एक समय भोजन- नागा साधुओं को रात और दिन मिलाकर केवल एक ही समय भोजन करना होता है। वो भोजन भी भिक्षा मांग कर लिया गया होता है। एक नागा साधु को अधिक से अधिक सात घरों से भिक्षा लेने का अधिकार है।

7- केवल जमीन पर ही सोना- नागा साधु सोने के लिए पलंग, खाट या अन्य किसी साधन का उपयोग नहीं कर सकता। यहां तक कि नागा साधुओं को गद्दे पर सोने की भी मनाही होती है।

8- मंत्र में आस्था- दीक्षा के बाद गुरू से मिले गुरुमंत्र में ही उसे संपूर्ण आस्था रखनी होती है। उसकी भविष्य की सारी तपस्या इसी गुरुमंत्र पर आधारित होती है।

9- अन्य नियम- बस्ती से बाहर निवास करना, किसी को प्रणाम न करना और न किसी की निंदा करना। केवल सन्यासी को ही प्रणाम करना आदि कुछ और नियम हैं, जो दीक्षा लेने वाले हर नागा साधु को पालन करने पड़ते हैं।

2016 में 50 हजार से ज्यादा बनेंगे नागा सन्यासी

नागा बनने के लिए नए संन्यासियों को हरिद्वार, इलाहाबाद कुंभ और उज्जैन सिंहस्थ मेले में ही दीक्षा देने की परंपरा है। जहां सिंहस्थ 2004 में करीब 29 हजार नए नागा बने थे। उस समय उन्हें दत्त अखाड़ा घाट पर आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरि ने मंत्र दीक्षा दी थी। इस बार अनुमान है कि पिछले सिंहस्थ के मुकाबले नागा बनने वाले सन्यासियों का आंकड़ा 50 हजार के पार हो सकता है।

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