नागपंचमी आजः ऐसे हुई इस त्योहार की शुरुआत, राजा परीक्षित से है लिंक
वैसे तो औरैया जिला एक छोटी सी जगह में बसा हुआ है मगर यहाँ पर इतिहास की कई कहानियां देखने को मिलती है।
औरैया: वैसे तो औरैया जिला एक छोटी सी जगह में बसा हुआ है मगर यहाँ पर इतिहास की कई कहानियां देखने को मिलती है। एक ऐसी ही कहानी है जो सदियों पुरानी है। जिसमे अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए पुत्र ने सारे संसार के सापो को संकट में डाल दिया था। राजा के पुत्र ने सर्प मेघ यज्ञ करते हुए सभी सापों पर संकट मडराने लगा था तब स्वयं भगवान इंद्र देव को औरैया कई धरती पर अवतरित होना पड़ा। तब राजा के प्रकोप से सापों को बचाया जा सका।
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जनपद औरैया में पंच पोखर आश्रम के नाम से एक स्थान मशहूर है। जहां सर्प जाति को समाप्त करने के लिए सर्प मेध यज्ञ किया गया था। इसे राजा जनमेजय की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। यह स्थान राजा परीक्षित की सर्प दंश से हुई मौत के बाद में चर्चा में आया। इनके पुत्र राजा जनमेजय ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए सर्प मेघ यज्ञ कराया था। महाभारत काल में पांडवों के अंतिम राजा जनमेजय के पिता राजा परीक्षित की मृत्यु के बाद हुए यज्ञ से यहां की पूरी कहानी का तानाबाना है। लोगों का कहना कि इस क्षेत्र में आज भी सांप काटने से किसी की मौत नहीं होती है।
ऋषि के ऊपर साँप डालने पर मिला था श्राप
कहानियों में दर्ज है कि एक बार जंगल में राजा परीक्षित शिकार करने हेतु वन्य पशुओं का पीछा कर रहे थे। पीछा करते हुए वह प्यास से व्याकुल हो उठे और जलाशय की खोज करने लगे। खोज करते हुए वह शमीक ऋषि के आश्रम पहुंच गए। ऋषि उस वक्त ध्यान में लीन थे। राजा परीक्षित ने उनसे जल मांगा लेकिन उन्होंने कोई उत्तर दिया। राजा परीक्षित को लगा कि ऋषि उनका अपमान कर रहे हैं। इस पर नाराज होकर राजा ने पास में ही पड़े हुए सर्प को उनके गले में डाल दिया। साँप के काटने से शमीक ऋषि की मौत हो गई थी।
ऋषि के पुत्र श्रृंगी ने राजा को दिया था साँप से कट कर मरने का श्राप
जब ऋषि के पुत्र श्रृंगी को इसकी जानकारी हुई तो शमीक ऋषि के पुत्र श्रृंगी ऋषि ने अपने पिता के अपमान का बदला लेने के लिए राजा परीक्षित को सर्प से काटने का श्राप दिया। उन्होंने कहा कि आज के सातवें दिन सर्प के काटने से उसकी मृत्यु होगी। राजा परीक्षित ने अपनी मृत्यु को टालने के लिए सभी प्रकार के प्रयास किये लेकिन सातवें दिन सर्प के काटने से उनकी मृत्यु हो गई।
पिता की मौत का बदला लेने के लिए हुआ था यज्ञ
जब शमीक ऋषि के पुत्र श्रृंगी ऋषि ने अपने पिता की मौत का बदला ले लिया तो राजा के पुत्र ने भी बदला लेने कई ठान ली। पिता की मौत का बदला लेने के लिए राजा परीक्षित के पुत्र राजा जनमेजय ने सर्पो के समूल नाश के लिए सर्प मेध यज्ञ कराने का निर्णय लिया। इस दौरान उन्होंने यज्ञ कराया लेकिन कहीं सफल नहीं हुए। आखिरकार उन्होंने यज्ञ के लिये सबसे उपयुक्त स्थान औरैया के दलेल नगर से सटे कस्बे के पास पंच पोखर स्थान को चुना जो सूर्य उदय अस्त पृथ्वी का बिंदु है।
यज्ञ होने के दौरान हवन कुंड में गिरने लगे हजारों की संख्या में सांप
पंच पोखर आश्रम की देखरेख कर रहे श्री श्री 108 महंत दयालु दास जी महाराज, मनोहर दास जी महाराज ने बताया कि यहां पर सर्प मेघ यज्ञ का आयोजन किया गया था। जहां पर बड़े-बड़े प्रकांड विद्वानों ने यज्ञ कराया था। इस यज्ञ के प्रभाव से सभी सर्प हवन कुंड में आकर गिर रहे थे। लेकिन सांपो का राजा तक्षक जिसके काटने से राजा परीक्षित की मौत हुई थी। खुद को बचाने के लिए सूर्य देव के रथ से लिपट गया। उसका हवन कुंड में गिरने का अर्थ था प्रकृति की गतिविधियों में रुकावट आ जायेगी। उन्होंने बताया कि सूर्यदेव और ब्रह्मांड की रक्षा के लिए सभी देवता राजा जनमेजय से यज्ञ को रोकने का आग्रह करने लगे लेकिन राजा अपने पिता की मृत्यु का बदला लेना चाहते थे। अंत में यज्ञ रोकने के लिए अस्तिका मुनि को हस्तक्षेप करना पड़ा था। इस पर भगवान इंद्र ने आकर स्वयं राजा के पुत्र से हवन रोकने की अपील की तब यज्ञ को रोका गया।
कहानियां कुछ और भी कहती हैं
श्री श्री 108 महंत दयालु दास जी महाराज ने बताया कि इस स्थान पर आज भी कालसर्प योग होने पर दूर-दूर से लोग आते हैं और यज्ञ के दौरान सर्प आज भी सीधे यज्ञ कुंड में अपनी जान देते हैं। यहां की जमीन इतनी पवित्र है कि आसपास के क्षेत्र में सर्प के काटने से भी कोई मौत नहीं होती है। बताया जाता है कि इस आसपास के क्षेत्र में सर्प दंश का कोई भी प्रभाव व्यक्ति के ऊपर नहीं पड़ता है।
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जिला प्रशासन इस ओर नहीं दे रहा कोई भी ध्यान
जनपद में विभिन्न प्रकार के मंदिर और इतिहास की धरोहर आज भी स्थित है। मगर जनपद के अधिकारी व जनप्रतिनिधि इस ओर कोई भी ध्यान देना मुनासिब नहीं समझ रहे हैं और यह पुरानी धरोहर है सिर्फ अब इतिहास के पन्नों में ही दर्ज होती हुई दिखाई दे रही हैं। यदि जिला प्रशासन इस ओर थोड़ा सा भी ध्यान दे दे तो जनपद में पर्यटन के कई द्वार खुल जाएंगे। पंच पोखर मंदिर का थान तो ध्वस्त होने लगा है और कुंड के आस पास पानी भी भरा रहता है।
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