Noida News: हुआ करोड़ों का घोटाला, बेचे गए एफएआर की जानकारी नहीं दी निबंधन को
Noida News: विगत कई सालों में नोएडा में एफएआर में 2.75 से बढ़ाकर 3.25 कर दिया गया। इससे बिल्डरों ने 20 फीसद ज्यादा फ्लैट बनाए।
Noida News: 2007 से 2012 के बीच बड़ी संख्या में बिल्डरों को भूमि आवंटित की गई। उस दौरान जमीन अधिग्रहण का मामला कोर्ट में फंसा होने से लंबे समय तक बिल्डरों का काम बंद रहा। उस समय कोर्ट ने अतिरिक्त मुआवजा भी देने का आदेश दिया। तब से राहत के तौर पर बिल्डरों को अतिरिक्त एफएआर खरीदने की छूट दी जा रही है।
बिल्डरों ने निर्माण कराया और बायर्स से उसकी कीमत भी वसूल की। लेकिन निबंधन विभाग में स्टांप ड्यूटी नहीं चुकाई। ऐसे मामलों में बिल्डरों पर करोड़ो रुपए की स्टांप चोरी का शक है। जिससे सीधे तौर पर सरकार को करोड़ों रुपए के राजस्व का नुकसान हुआ है। इसका आकलन किया जा रहा है।
एफएआर बढ़ाने का निर्णय प्राधिकरण का
बताया गया कि विगत कई सालों में नोएडा में एफएआर में 2.75 से बढ़ाकर 3.25 कर दिया गया। इससे बिल्डरों ने 20 फीसद ज्यादा फ्लैट बनाए। दरअसल, बिल्डर और प्राधिकरण के बीच शुरूआत में जमीन की खरीद फरोख्त होती है। उसकी लीज डीड पंजीकृत होती है।
एफएआर बढ़ाने का निर्णय प्राधिकरण का होता है। उसकी कोई रजिस्ट्री नहीं होती। एफएआर बढ़ने से अतिरिक्त फ्लैट बनते हैं। उन फ्लैटों की बिक्री से रजिस्ट्री विभाग को राजस्व मिलता है।
बताया गया कि 2007 से 2012 तक प्राधिकरण की और से कई बार एफएआर बढ़ाया गया। लेकिन रजिस्ट्री नहीं कराई गई। ऐसे में निबंधन विभाग को करोड़ों रुपए के राजस्व का नुकसान हुआ है।
यह भी बता दे कि 2015 में जारी शासनदेश में प्राधिकरण को आदेश थे कि स्टांप विभाग को इस बात की जानकारी दे कि किस बिल्डर को कितना एफएआर बेचा गया। यह जानकारी प्राधिकरण के नियोजन विभाग को देनी होती है।
बिल्डरों ने खरीदारों से पैसा कमाया
नोएडा प्राधिकरण ने महज 12 करोड़ की स्टांप की जानकारी साझा की। हालांकि प्राधिकरण का मत है कि स्टांप विभाग को एफएआर से संबंधित सभी जानकारी दी जा रही है। सवाल यह है कि जब प्राधिकरण ने पूरी जानकारी निबंधन विभाग को दी ही नहीं तो यह कैसे पता चल सकेगा कि प्राधिकरण ने कितना एफएआर बिल्डर को बेचा।
यही नहीं नोएडा में करीब 50 प्रतिशत से ज्यादा बिल्डर डिफाल्टर है। जिन्होंने भूखंड का पैसा तक प्राधिकरण में जमा नहीं कराया। ऐसे में सब लीज डीड भी नहीं की जा सकती है। बेचे गए एफएआर पर बने फ्लैटों से बिल्डरों ने खरीदारों से तो पैसा कमा लिया।
प्राधिकरण ने इस बेचे गए एफएआर की जानकारी निबंधन विभाग को नहीं दी। पैसे जमा नहीं होने से रजिस्ट्री नहीं हुई। साफ है कि 2007 से 2012 तक रजिस्ट्री विभाग को कई करोड़ का नुकसान हुआ।