Noida News: 2005 से 2012 तक ग्रुप हाउसिंग व नियोजन विभाग में तैनात अधिकारियों की खंगाली जा रही कुंडली

एमराल्ड कोर्ट मामले में प्राधिकरण की उच्च स्तरीय कमेटी ने जांच शुरू कर दी है। 2००5 से 2०12 तक ग्रुप हाउसिंग व नियोजन विभाग

Report :  Deepankar Jain
Published By :  Deepak Raj
Update:2021-09-01 20:25 IST

सांकेतिक तस्वीर, सोर्स-सोशल मीडिया

Noida News: एमराल्ड कोर्ट मामले में प्राधिकरण की उच्च स्तरीय कमेटी ने जांच शुरू कर दी है। 2००5 से 2०12 तक ग्रुप हाउसिंग व नियोजन विभाग में तैनात अधिकारियों की कुंडली खंगालने काम किया जा रहा है। 2००5 से 2०12 तक नियोजन विभाग द्बारा ग्रुप हाउसिंग पास किए गए नक्शों की एक सूची भी तैयार की जा रही है। साथ ही यह भी देखा जाएगा कि किस आधार पर बिल्डरों को नियमों में छूट व राहत दी गई। बता दें कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने भी 2००5 से लेकर 2०14 तक की ग्रुप हाउसिंग से संबंधित करीब 2० बिल्डरों के कागजी दस्तावेजों में अनियमितता के खिलाफ आपत्ति दायर की थी।


सांकेतिक तस्वीर , सोर्स-सोशल मीडिया


उक्त प्रकरण की गहन जांच कराकर दोषी अधिकारी के खिलाफ भी कार्रवाई कर आपराधिक केस दर्ज किया जाएगा। बिल्डर को जमीन का आवंटन करने से लेकर उसके नक्शे पास कराने तक का काम नोएडा प्राधिकरण के ग्रुप हाउसिंग व नियोजन विभाग करता है। इस मामले में भी नियोजन विभाग में रिवाइज्ड नक्शे को अनुमति देने से लेकर कई बिदुओं पर बिल्डर का साथ दिया। आरडब्ल्यूए वालों की नोएडा प्राधिकरण ने सुनवाई नहीं की। अब सुपरटेक एमरॉल्ड के संबंधित दोनों टावर गिराने का आदेश मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने सुना दिया।

इन दोनों टावर के बनने के लिए बिल्डर के साथ-साथ नोएडा प्राधिकरण के अधिकारी भी जिम्मेदार हैं, जिन्होंने इनको बनाने की अनुमति दी। ऐसे में इनके खिलाफ भी कार्रवाई होना तय माना जा रहा है। अधिकारिक सूत्रों की मानें तो मंगलवार को कोर्ट का आदेश आते ही उस समय तैनात रहे संबंधित अधिकारियों की सूची नोएडा प्राधिकरण में बननी शुरू कर दी थी। इनकी विभागीय जांच के लिए आदेश जारी कर दिए गए हैं। प्रदेश सरकार को संबंधित की सूची भी भेजी जा रही है।

2००5 से 2०12 तक की फाइलों की हो रही जांच

नियोजन विभाग में 2००4-०6 तक त्रिभुवन सिंह व 2००6 से 2०12 तक राजपाल कौशिक व मुकेश गोयल वास्तुविद थे। उस दौरान की अधिकांश फाइलों पर इन्हीं अधिकारियों के हस्ताक्षर है। इसके अलावा आला अधिकारियों की भी एक सूची तैयार की जा रही है। जिनकी शह पर इस तरह का भ्रष्टाचार को अंजाम दिया गया।

2००5 से 2०15 तक ग्रुप हाउसिंग नीतियों पर लगाई आपत्ती

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने प्राधिकरण की ग्रुप हाउसिग आवंटन नीतियों को कटघरे में खड़ा कर दिया था। करीब 2० बिल्डर परियोजनाओं में प्रत्येक पर पांच से छह पेज की आपत्ति लगाई गई थी। प्राधिकरण ने वर्ष 2००5 से 2०15 के बीच तमाम ग्रुप हाउसिग भूखंडों का आवंटन किया था। बिल्डरों को विशेष छूट दी गई। नियमों में बदलाव किया गया। मात्र दस फीसद धनराशि पर भूखंडों का आवंटन कर दिया गया। बिल्डरों ने बकाया धनराशि का भुगतान अब तक नहीं किया। इस बिंदु पर सीएजी ने आपत्ति दर्ज की है। नियम बदलने के कारण बिल्डरों को तो फायदा हुआ, लेकिन प्राधिकरण को करोड़ों रुपये की राजस्व हानि उठानी पड़ी है।

2००7 में बदल दिए गए नियम

2००5 में निकाली गई ग्रुप हाउसिंग परियोजनाओं में कुल भूखंड की लागत का 3० फीसद पैसा लेकर आवंटन किया जाता था। लेकिन 2००7 में बिल्डर को लाभ पहुंचाते हुए नियमों में बदलाव किया गया और 3० फीसद के स्थान पर कुल लागत का 1० फीसद कर दिया गया। इसका फायदा बिल्डरों ने उठाया। बिल्डरों ने खरीदारों से जमकर वसूली रकम कुल लागत का 10 प्रतिशत जमा करने पर आवंटन मिलने का फायदा बिल्डरों ने जमकर उठाया।


पांच साल में 97 भूखंडों के रूप में आवंटित की गर्इ 44 लाख 72 हजार वर्गमीटर जमीन

Noida: 2००7 से 2०12 तक बसपा शासन काल में नोएडा प्राधिकरण ने बिल्डरों को थोक के भाव जमीन आवंटित की थी। मात्र पांच वर्ष में नोएडा प्राधिकरण की तरफ से 44 लाख 72 हजार 271 वर्गमीटर जमीन बिल्डरों को ग्रुप हाउसिंग के लिए दी गई। मात्र 97 भूखंडों के रूप में आवंटित इस जमीन के लिए करोड़ों रुपए के हरफेर की बात भी सुर्खियों में थी। प्राधिकरण के सूत्रों के मुताबिक बसपा शासन में नोएडा प्राधिकरण में आला अधिकारियों को ग्रुप हाउसिग के भूखंडों के आवंटन की जिम्मेदारी दी गई थी। बिल्डरों को जमीन पसंद कराने से लेकर उन्हें आवंटन कराने और आवंटन दर तय करने की जिम्मेदारी भी इन्ही अधिकारियों की होती थी।

बिल्डर से मिलकर तय की जाती थी आवंटन दर

ग्रुप हाउसिग के भूखंड के आवंटन के लिए जो आवंटन दर तय की जाती थी, वह बिल्डर से मिलकर तय होती थी। शीर्ष अदालत ने भी प्राधिकरण के पक्ष मे यही कहा था कि ऐसा लगता है कि आप बिल्डर के प्रमोटर है। सूत्रों की माने तो इस आवंटन दर के अलावा 1500 रुपये प्रति वर्ग मीटर रिश्वत ली जाती थी। ऐसे में करीब 97 भूखंडों का आवंटन किया गया, उनके लिए करीब 67० करोड़ रुपये की हेरफेर की गई। यह पैसा नोएडा के अधिकारियों से लेकर शासन तक पहुंचाया जाता था। आवंटन कराने के एवज में लिया जाने वाला पैसा नकदी के रूप में दिया जाता था। इसमें से 50 प्रतिशत पैसा आवंटन दर तय करने के समय और बाकी पैसा आवंटन पत्र जारी करने के समय लिया जाता था।

नियमों को ताक पर रख पास किए जाते थें नक्शे

सूत्रों ने बताया कि आवंटन दर तय करने के लिए जो भी बैठक बिल्डर के साथ होती थी, वह कभी भी प्राधिकरण कार्यालय में नहीं की गई। हर बार बैठक अलग से होटलों में होती थी। इस बैठक में बिल्डर, प्राधिकरण के चुनिदा अधिकारी और एक बड़े राजनीतिक चेहरे के कुछ खास लोग होते थे। इस बैठक में बिल्डर को स्पष्ट तौर पर बताया जाता था कि उसे ग्रुप हाउसिग के भूखंड के लिए बिड में कितने पैसे भरने हैं।

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