New Education Policy: नई शिक्षा पॉलिसी के तहत पढ़ाना हुआ मुश्किल, 48 फीसदी तक बढ़े किताबों के दाम

New Education Policy: एनईपी (नेशनल एजुकेशन पॉलिसी) का स्टीकर लगाकर किताबों के दामों में बेतहाशा बढ़ोतरी कर दी गई। ये वृद्धि एक-दो नहीं, बल्कि 16 से 48 फीसदी तक की गई है।

Report :  Network
Update:2023-01-22 08:41 IST
सांकेतिक तस्वीर (Pic: Social Media)

New National Education Policy: बढ़ती मंहगाई के दौर में विद्यालयों में बच्चों को पढ़ाना अब आसान नहीं रह गया है। एक ओर जहां महंगी फीस परेशान कर रही है वहीं किताबों की आसमान छूती कीमतें अभिभावकों के लिए परेशानी खड़ी कर रही है। एनईपी (नेशनल एजुकेशन पॉलिसी) का स्टीकर लगाकर किताबों के दामों में बेतहाशा बढ़ोतरी कर दी गई। ये वृद्धि एक-दो नहीं, बल्कि 16 से 48 फीसदी तक की गई है। फिलहाल इसका दायरा कक्षा एक से आठवीं तक है। इसका कारण कागज की कीमतों में वृद्धि बताया जा रहा है। यही नहीं, सत्र 2023-24 में पब्लिक स्कूलों के बच्चों को जो किताबें दी जाएंगी उसका कंटेंट भी बदला होगा। स्कूलों के पास नमूने के रूप में किताबें पहुंचने भी लगी हैं। जहां नहीं पहुंचीं वहां प्रकाशकों से स्कूल संपर्क कर रहे हैं। कमोबेश सभी प्रकाशक नई शिक्षा नीति के तहत कंटेंट में बदलाव कर रहे हैं। इसका सीधा असर हो रहा है कि जो स्कूल किताबें नहीं बदलना चाहते थे, उन्हें भी मजबूरी में बदलनी पड़ रही हैं।

किताबों के दाम बढ़ाने में सभी प्रकाशक शामिल

कोलकाता, बेंगलुरु समेत स्थानीय प्रकाशकों तक ने प्री से लेकर कक्षा आठ तक की किताबों के दाम बढ़ा दिए हैं। उदाहरण के लिए सोशल साइंस की कक्षा एक की पुस्तक 229 रुपये की थी जो नए सत्र में 339 की होगी। आठवीं की 499 रुपये की जो किताब थी वह बढ़कर 579 रुपये की हो जाएगी। इसी तरह गणित में कक्षा एक की पुस्तक 339 रुपये की थी जो 439 की हो जाएगी। कक्षा आठ की गणित की पुस्तक 479 की थी जो बढ़कर 679 रुपये की हो जाएगी। दाम बढ़ने से अभिभावकों की जेब पर बोझ बढ़ना तय है। पुस्तकों की दरों में वृद्धि की वजह नई एजुकेशन पॉलिसी के कारण किताबों में किया गया बदलाव और दूसरे कागजों की दर में हो रही लगातार वृद्धि को बताया जा रहा है। अभिभावकों के साथ सत्र में संकट यह भी है कि बच्चों के लिए पुरानी किताबों का उपयोग नहीं कर सकते। 

कानपुर स्कूल्स वेलफेयर एसोसिएशन कोऑर्डिनेटर प्रतीक श्रीवास्तव ने बताया कि नई शिक्षा नीति लागू होनी है। इस कारण कंटेंट में बदलाव भी दिख रहा है। प्रकाशकों से बात की गई तो वह बताते हैं कि कागज का संकट और इसकी दरों में वृद्धि अत्यधिक है। इस कारण किताबें महंगी होना तय है। अभिभावकों के लिए यह मुश्किल भरा होगा।

ऑल कानपुर पैरेंट्स एसोसिएशन अभिमन्यु गुप्ता ने बताया कि किताबों को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर कोई ऐसी नीति बनाई जानी चाहिए जिससे महंगी पुस्तकों पर नियंत्रण हो सके। पुरानी पुस्तकें बच्चों को पढ़ने का अधिकार मिलना चाहिए। प्रकाशकों व स्कूलों पर नियंत्रण बनाने की जरूरत है जिससे समाधान निकल सके।

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