VIDEO: जय प्रताप सिंह बोले- पिछली सरकारों ने आबकारी विभाग को सिंडिकेट के हाथों सौंप दिया
लखनऊ: यूपी की आबकारी नीति इस साल नहीं आएगी। यूपी के आबकारी मंत्री जय प्रताप सिंह ने newstrack.com और 'अपना भारत' को एक्सक्लूसिव बातचीत में बताया, कि उत्तर प्रदेश में कानूनी बाध्यता के चलते एक अप्रैल से पहले आबकारी नीति लागू ही नहीं की जा सकती।
दरअसल, अखिलेश सरकार ने इस साल की नीति को लागू कर फीस भी जमा करा ली है। ऐसे में नई नीति कानूनन नहीं लाई जा सकती। इसके अलावा आबकारी नीति, विभाग समस्याओं और नए लक्ष्य पर यूपी के आबकारी मंत्री ने विस्तार से बात की। पेश है बातचीत के मुख्य अंश:-
सवाल:- इन दिनों शराब की दुकानों को लेकर हो रहे प्रदर्शन को कैसे देखते हैं? क्या शराबबंदी की कोई योजना है।
जवाब: देखिए दुकानों का विरोध तो इसलिए हो रहा है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2016 में राजमार्गों से शराब की दुकानें हटाने का आदेश दिया था। उसी के तहत प्रदेश में साढे आठ हजार दुकानें विस्थापित होनी थी। 500 मीटर के अंदर यह दुकान विस्थापित होकर आबादी के क्षेत्रों में पहुंच गई। यूपी घनी आबादी वाला सूबा है। इस वजह से दुकानें जब आबादी के इलाकों में गई, तो वहां विरोध शुरू हो गए।
विरोध को देखते हुए बहुत से लोगों ने अपनी जनता की भावनाओं के अनुरूप अपने लाइसेंस सरेंडर कर लिए और बहुत सी दुकानें नहीं खोली गईं। हालात ये है कि 3,000 दुकानें ही विस्थापित हो पाईं। शेष 5,000 दुकानें बंद हो गई हैं। यानी जनता की भावनाओं का आदर करते हुए सरकार ने हर कदम उठाने की कोशिश की है। 5,000 दुकानें बंद हो गए, लेकिन प्रदेश में पूर्ण शराबबंदी की कोई योजना फिलहाल नहीं है।
आगे की स्लाइड्स में पढ़ें अनुराग शुक्ला के सवालों पर यूपी के आबकारी मंत्री जय प्रताप सिंह के जवाब...
सवाल:- आपके विभाग में सिंडिकेट शराब माफिया का बोलबाला है। इसे कितनी बड़ी समस्या मानते हैं?
जवाब: साल 2001 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के मुख्यमंत्री के तौर पर राजनाथ सिंह ने पुरानी नीति को बदलते हुए एक पारदर्शी नीति बनाई थी। उस व्यवस्था के तहत ना सिर्फ पारदर्शिता थी बल्कि सारी व्यवस्था बहुत कायदे से चलती थी। राजस्व भी बढ़ा था और पारदर्शिता के साथ सभी पक्षों ने इसमें अपनी भागीदारी भी दी थी। यह व्यवस्था तब तक बहुत ठीक तरह से चलती रही, जब इसके बाद की सरकारें आईं। चाहे बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की सरकार हो या फिर समाजवादी पार्टी (सपा) की सरकार। सबने इस व्यवस्था को परिवर्तित कर किया और विशेष जोन बनाकर आबकारी विभाग को एक तरह से सिंडिकेट के हाथों सौंप दिया।
सिंडिकेट हम इसलिए कहते हैं क्योंकि अलग-अलग क्षेत्रों में उन्होंने अलग-अलग नाम से कंपनी बनाई लेकिन सारी कंपनियां मूलतः एक ही व्यक्ति या समूह की थीं। फैक्ट्री से लेकर डिस्ट्रीब्यूशन और रिटेलर तक उस समूह ने पूर्ण रूप से कब्जा जमा लिया है। आज हम सिंडिकेट का नाम ले रहे हैं। विभाग में सिंडिकेट का ही बोलबाला है। उत्तर प्रदेश के व्यापार में इन सिंडिकेटस ने 80 फीसदी व्यापार पर कब्जा जमा रखा है।
सवाल:- मुख्यमंत्री के सामने प्रजेंटेशन में क्या रहा?
जवाब: देखिए प्रजेंटेशन को लेकर यह साफ कर दूं, कि इस विभाग में बतौर मंत्री हम नए हैं। हमारे मुख्यमंत्री जी भी विभाग के बारे में बहुत सी जानकारियां चाह रहे थे। तो प्रजेंटेशन में यह बताई गई कि आबकारी विभाग क्या है, उसकी नीति क्या है, उसकी मशीनरी क्या है, उसकी मेरिट क्या है, कितना राजस्व है, कितनी प्राप्तियां हैं? इन सारी बातों को प्रजेंटेशन में रखा गया। प्रेजेंटेशन में यह भी बताया गया कि विभाग का ढांचा क्या है, विभाग में कितने कर्मचारी हैं। उनकी समस्याएं क्या हैं, उनकी अपेक्षाएं क्या है? जो समस्याएं हैं उन पर विस्तार से बात हुई। इसके अलावा हमारे लक्ष्य क्या हैं, भविष्य की योजनाएं क्या हैं? यह सारी बातें प्रजेंटेशन में दी गई।
सवाल:- आप विभाग से जुड़ी किस समस्या को बड़ी मानते हैं?
जवाब: बड़ी समस्याएं हैं, जैसे स्मगलिंग, कच्ची शराब और भ्रष्टाचार आदि। भ्रष्टाचार की समस्या को प्राथमिकता पर रखा गया है। उसे कम करना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है।
सवाल:- इन समस्याओं से कैसे निपटेंगे, कोई खास कार्ययोजना?
जवाब: सारी समस्याओं से निपटने के लिए पहले से ही विभाग में सारी कार्य योजनाएं और जरूरी नियम मौजूद हैं। बस इतना है कि पिछली सरकारों में इन योजनाओं को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। इन योजनाओं पर काम ही नहीं किया गया। अब, हम इन योजनाओं और नियमों का सख्ती से पालन करेंगे।
सवाल:- कच्ची शराब औऱ तस्करी को लेकर क्या करने वाले हैं?
जवाब: कच्ची शराब की जहां तक बात है, तो इसे लेकर सभी पुलिस अधीक्षकों और विभागीय अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि वह पुलिस बल के साथ इन कच्ची शराब के व्यापार को पूरी तरह से नष्ट कर दें। जहां तक तस्करी की बात है, हमारे यहां हरियाणा से तस्करी होती है। इसकी सबसे बड़ी वजह है हमारी नीति में कमियां हैं। इसकी वजह से बड़े पैमाने पर पश्चिम उत्तर प्रदेश में शराब की तस्करी हो रही है। पश्चिम उत्तर प्रदेश की इस समस्या पर तभी काबू पाया जा सकता है जब हम नीति को बदलेंगे।
सवाल:- क्या नई आबकारी नीति को लेकर भी कोई बैठक हो रही है? नई आबकारी नीति कब तक आ सकती है?
जवाब: हम नई पॉलिसी तो बनाएंगे पर क़ानूनी बाध्यता के चलते इसे आज परिवर्तित नहीं कर सकते। पिछली सरकार ने बहुत चालाकी से वित्तीय वर्ष 2017-18 के लाइसेंस का रिनीवल करके उसकी लाइसेंस की फीस जमा कर ली है। ऐसे में इस नीति को परिवर्तित करना संभव फिलहाल नहीं है। अगर हम इसे परिवर्तित भी करते हैं तो जो अनुज्ञापी हैं उन्हें कोर्ट से स्टे मिल जाएगा। ऐसी स्थिति में हम अगर आज कोई परिवर्तन करते हैं तो उसका कोई लाभ नहीं होगा। लेकिन हम आबकारी नीति को बदलेंगे। इसके लिए आबकारी आयुक्त की अध्यक्षता में एक समिति बना दी गई है। वह सभी प्रदेशों की अच्छी आबकारी नीति का अध्ययन कर नई नीति लाएंगे। इसकी खास बात होगी, कि अभी जिस तरह से सिंडिकेट का कब्जा है, वह पूरी तरह से हटाया जाए और भ्रष्टाचार को खत्म किया जाए। लेकिन नई आबकारी नीति 31 मार्च 2018 के बाद ही लागू हो सकती है।
सवाल:- बिहार की शराबबंदी को आप किस तरह देखते हैं?
जवाब: बिहार में तो नीतीश कुमार जी ने पहले ही प्लानिंग कर ली थी। घोषणापत्र में ही इसकी तैयारी कर ली थी। सारी योजनाएं बन चुकी थी और यही वजह थी कि वह जल्दी से जल्दी शराबबंदी लागू कर सके। किसी भी प्रदेश में शराबबंदी होती है, तो उसके आसपास के प्रदेश में ही उसकी बिक्री बढ़ जाती है। अभी तो उसका इंपैक्ट सिर्फ इतना है कि जो हमारे बॉर्डर एरिया हैं, वहां सेल बढ़ गई है। वहां दुकानों की संख्या बढ़ा दी गई है।
सवाल:- बहुत सारी ऐसी दुकाने हैं, जो राजमार्गों के किनारे हैं लेकिन वहां आबादी भी है। ऐसे में क्या करेंगे?
जवाब: नोटिस सबको दे दिया गया है। चुनाव के नाते इसमें देरी जरूर हुई है। लेकिन नोटिस देने में अब युद्धस्तर पर काम हो रहा है। किसी तरह की कोई देरी नहीं की गई है। बस थोड़ा सा रिलेक्सेशन हमने दिया है। 20,000 की आबादी वाला कस्बे या कोई ऐसी आबादी वाला क्षेत्र हो, वहां पर 500 मीटर की जगह 220 मीटर का रिलेक्सेशन हमने दिया है। इसकी मॉनिटरिंग भी हो रही है और पालन भी हो रहा है।
सवाल:- मंत्री अपनी संपत्ति का ब्यौरा क्यों नहीं दे रहे?
जवाब: औरों का तो मैं नहीं जानता, मैंने 31 मार्च को ही अपनी संपत्ति का ब्यौरा दे दिया था। ऐसी कोई बात नहीं है कि ब्यौरा नहीं दिया जा रहा। संपत्ति का ब्यौरा देना कोई नई बात नहीं है। पहले से भी इसका प्रचलन है सिर्फ मंत्रियों नहीं, सभी विधायकों को भी अपनी संपत्ति का ब्यौरा देना होता है। सभी लोग अपना ब्यौरा दे रहे हैं। मुझे औरों का तो पता नहीं लेकिन इतना मुझे जरूर भरोसा है कि हमारी सरकार का हर मंत्री अपनी संपत्ति का ब्यौरा देने में किसी तरह की कोई कोताही नहीं बरतेगा।