Sonbhadra News: कोयले के खेल में बड़ा खुलासा: पर्यावरण मानकों की उड़ती रही धज्जियां, दावेदारों को देनी होगी क्षतिपूर्ति

Sonbhadra News: मुख्य पर्यावरण अधिकारी सर्किल-दो राजेंद्र कुमार की तरफ से दाखिल की गई रिपोर्ट में बताया गया है कि दिसंबर 2022 में मुख्य वन संरक्षक यूपी की तरफ से नामित सहायक निदेशक डा. एके गुप्ता, डीएम की तरफ से नामित एडीएम सहदेव मिश्रा और राज्य प्रदूषण नियंत्रण के सदस्य सचिव की तरफ से नामित तत्कालीन क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी टीएन सिंह ने मौके की जांच की।

Update:2023-04-29 02:04 IST
NGT formed committee big disclosure that environmental standards are being ignored in the storage of coal

Sonbhadra News: पूर्व मध्य रेलवे के कृष्णशिला रेल साइडिंग के पास पिछले साल पकड़े गए कोयले के कथित अवैध भंडारण को लेकर बड़ा खुलासा सामने आया है। एनजीटी के निर्देश पर गठित संयुक्त समिति की जांच में, जहां कोयले के भंडारण में पर्यावरण मानकों की धज्जियां उड़ाए जाने का मामला सामने आया है। वहीं यह भी खुलासा सामने आया है कि यहां एक दो एकड़ नहीं बल्कि 45 एकड़ एरिया में लगभग तीन मिलियन टन कोयले का भंडारण किया गया था। वर्ष 2018 से मनमाने तरीके से कोयला भंडारण पर नजर तब पड़ी, जब इसको लेकर एक शिकायत जिला प्रशासन के पास पहुंची। उसके बाद भी इसको लेकर एक के बाद एक परतें घड़नी तब शुरू हुई, जब एनजीटी की तरफ से इस पर एक्शन लिया गया। संयुक्त समिति की जांच में अब तक जो चीजें सामने आई हैं, उसमें जहां बीना कोल प्रोजेक्ट पर 4.43 करोड़ की पेनाल्टी लगाई गई है। वहीं, अब कोयला रिलीजिंग को लेकर सामने आए दावेदारों से भी क्षतिपूर्ति की संस्तुति की गई है। साथ ही, इलाके में मनमाने कोल भंडारण और इसको लेकर उत्पन्न हो रही प्रदूषण की समस्या पर रोक लगाने के लिए कई सिफारिशें की गई हैं। इन सिफारिशों पर अमल होगा? या क्रिटिकल पोल्यूटेड एरिया घोषित होने के बावजूद, पूर्व में दिए गए निर्देशों की तरह, इस मामले को भी कागजी कार्रवाई के जाल में उलझा कर रख दिया जाएगा, इसको लेकर चर्चाएं बनी हुई हैं।

मुख्य पर्यावरण अधिकारी सर्किल-दो राजेंद्र कुमार की तरफ से दाखिल की गई रिपोर्ट में बताया गया है कि दिसंबर 2022 में मुख्य वन संरक्षक यूपी की तरफ से नामित सहायक निदेशक डा. एके गुप्ता, डीएम की तरफ से नामित एडीएम सहदेव मिश्रा और राज्य प्रदूषण नियंत्रण के सदस्य सचिव की तरफ से नामित तत्कालीन क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी टीएन सिंह ने मौके की जांच की। वहीं ज्येष्ठ खान अधिकारी आशीष कुमार की तरफ से गत तीन मार्च और 15 मार्च को पत्र के जरिए, मौके पर भंडारित मिले कोयले की मात्रा और सामने आए दावेदारी से जुड़ी मात्रा को लेकर जानकारी दी। पाया गया कि भंडारण स्थल पर कोयला एक दो एकड़ नहीं बल्कि 45 एकड़ में भंडारित किया गया था। मनमाने तरीके से भंडारण पर ध्यान नहीं देने का परिणाम था कि यहां लगभग तीन मिलियन टन कोयले का भंडार खड़ा कर लिया गया। दिलचस्प मसला यह है कि प्रशासन की तरफ से पहली नोटिस में तो कोई दावेदार सामने नहीं आया लेकिन दूसरी बार की नोटिस में विभिन्न राज्यों से जुड़े 2.63 मिलियन कोयले के दावेदार भी सामने आ गए।

वायु गुणवत्ता की हुई जांच तो हेल्थ इमरजेंसी जैसी मिली स्थिति

दिसंबर में जांच करने पहुंची टीम के सामने जो परिस्थितियां आई, उससे भंडारण करने वालों की तरफ से पर्यावरण मानकों की धज्जियां उड़ाए जाने की बात तो सामने आई ही, वायु प्रदूषण सूचकांक अत्यधिक खतरनाक स्तर पर यानी, हेल्थ इमरजेंसी जैसी स्थिति में पहुंचा पाया गया। महज पीएम 10 यानी सूक्ष्म कण की मात्रा 460 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर पाई गई। उल्लेखनीय है कि जहां यह मात्रा 400 के उपर पाई जाती है, वहां पर्यावरण मानकों को दृष्टिगत रखते हुए यह माना जाता है कि, हेल्थ इमरजेंसी जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई है। बारिश की पानी के साथ रिहंद बांध में भी कोयले की बड़ी मात्रा पहुंचने की जानकारी मिली। बता दें कि रिहंद बांध से सिर्फ बिजली परियेाजनाओं को ही पानी नहीं दिया जाता बल्कि यहां उत्पादित होने वाली मछलियां कोलकाता के साथ ही विदेशों तक पहुंचाई जाती हैं। साथ ही नमामि गंगे योजना के तहत इस बांध पर तीन बड़ी पेयजल परियोजनाएं भी स्थापित की गई हैं। यहां यह जानना महत्वपूर्ण है कि कोयले में मरकरी की एक बड़ी मात्रा होती है। वर्ष 2012 में सीएसई जैसी संस्था, रिहंद जलाशय के साथ सोनभद्र के रग-रग में मरकरी पैबस्त करने का खुलासा कर चुकी है। ऐसे समय में लगातार चार साल तक भंडारण होना और इस इलाके की निगरानी के लिए, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का एक मजबूत तंत्र मजबूत होने के बावजूद, भंडारण और पर्यावरण मानकों की उड़ती धज्जी पर किसी की नजर न पड़ पाना, एक बड़ा सवाल बन गया है। जांच समिति ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि क्रिटिकली पोल्यूटेड एरिया के बावजूद इस पर नियंत्रण का कोई उपाय अमल नहीं लाया गया। न एनसीएल, न रेलवे, न दावेदार, न ही कोल हैंडलिंग एजेंट यानी टासंपोर्टरों की तरफ से ही कोई संजीदगी दिखाई गई।

नियंत्रण के लिए इन-इन चीजों की जताई गई है जरूरत

राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के जरिए दाखिल रिपोर्ट में संस्तुति की गई है कि रेलवे साइडिंग पर कोयला डंपिंग से पहले प्रदूषण नियंत्रण के सारे मानक अपनाए जाएं। दावेदारों से पर्यावरण क्षतिपूर्ति वसूलते हुए, लोकल एरिया, सड़क, प्लेटफार्म साइड में पौधरोपण, वाटर स्पिं्रकलर जैसे उपाय अमल में लाए जाएं। ड्रोन कैमरा निगरानी, खदान से रेलवे साइडिंग तक सिर्फ कोयला ढुलाई के लिए सीमेंटेड रोड के साथ ऐसी व्यवस्थाएं सुनिश्चित कराई जाएं ताकि भविष्य में इस तरह से कोल डंपिंग और पर्यावरण के लिए खतरे की स्थिति न बनने पाए।

इन-इनसे वसूली जा सकती है पर्यावरण की क्षतिपूर्ति

ज्येष्ठ खान अधिकारी की तरफ से जांच कमेटी को उपलब्ध कराई गई जानकारी के मुताबिक भंडारित कोयले को लेकर जिनकी तरफ से दावेदारी सामने आई थी, उसमें एमबी पावर लिमिटेड न्यू देलही, तलवांडी साबो पावर लिमिटेड पंजाब, जय प्रकाश पावर वेंचर्स लिमिटेड निगरी, मध्यप्रदेश, आनंद ट्रिªप्लेक्स बोर्ड लिमिटेड न्यू देलही, आरती स्टील्स लिमिटेड उड़ीसा, वर्टिगो इंपेक्स प्राइवेट लिमिटेड न्यू देलही, काई इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड उड़ीसा, श्याम मेटेलिक्स एंड इनर्जी लिमिटेड उड़ीसा, स्टार पेपर्स मिल लिमिटेड सहारनपुर यूपी, महावीर कोल रिसोर्स प्राइवेट लिमिटेड कटनी, मध्यप्रदेश, बिरला कारपोरेशन राजस्थान, आरजी ट्रेडलिंग प्राइवेट लिमिटेड चंदासी, चंदौली का नाम शामिल है। वहीं जिन ट्रांसपोर्टरों को लेकर कांग्रेस नेता अंकुश देवी और बांसी गांव की प्रधान आदि की तरफ से शिकायत भेजी गई थी, उसमें मेसर्स गोदावरी, मेसर्स महाकाल, मेसर्स श्री महाकाल, मेसर्स महावीर, मेसर्स आरके ट्रेडर्स, मेसर्स बालाजी आदि पर आरोप लगाए गए हैं।

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