UP News: सीएजी का खुलासा, यूपी के पांच विभागों के 18 हजार करोड़ के खर्च का कोई हिसाब नहीं, धन के गलत इस्तेमाल की आशंका
UP News: सीएजी ने इन विभागों द्वारा उपभोग प्रमाणपत्र (यूसी) न जारी करने पर आपत्ति जताई है। यह प्रमाणपत्र विभागों को विभिन्न मदों में जारी अनुदान के खर्च के बदले में देना होता है कि वास्तव में जिस काम के लिए उन्हें धन दिया गया था, क्या उसे उसी मद में खर्च किया गया है।
UP News: उत्तर प्रदेश के पांच विभागों के 18 हजार करोड़ के खर्च का कोई हिसाब नहीं है। इसका खुलासा नियंत्रक एवं लेखा महापरीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट में हुआ है। सीएजी ने इस पर गबन और धन के गलत इस्तेमाल की आशंका जताई है। सीएजी ने इन विभागों द्वारा उपभोग प्रमाणपत्र (यूसी) न जारी करने पर आपत्ति जताई है। यह प्रमाणपत्र विभागों को विभिन्न मदों में जारी अनुदान के खर्च के बदले में देना होता है कि वास्तव में जिस काम के लिए उन्हें धन दिया गया था, क्या उसे उसी मद में खर्च किया गया है।
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सही खर्च के सत्यापन का एकमात्र जरिया है-
उपभोग प्रमाणपत्र धन के सही खर्च के एकमात्र सत्यापन का जरिया है, लेकिन उत्तर प्रदेश के पांच विभागों ने करीब 18 हजार करोड़ रुपये खर्च का न तो ब्योरा दिया और न ही उपभोग प्रमाण पत्र ही दिया है। सीएजी ने कहा है कि बड़ी संख्या में प्रमाणपत्रों के लंबित होने से धन के गबन और गलत इस्तेमाल की आशंका है।
राज्य सरकार विभिन्न विभागों को अनुदान देती है। इसका इस्तेमाल जरूरतमंदों की मदद और उत्थान में किया जाता है। इस अनुदान राशि को खर्च करने के एवज में संबंधित विभाग के अधिकारी उपभोग प्रमाणपत्र देते हैं। ये प्रमाणपत्र एक प्रकार का शपथपत्र होते हैं, जिसमें विभाग गारंटी लेता है कि सरकार से मिले अनुदान को, उसी मद में ईमानदारी से खर्च किया गया है, जिसके लिए धन विभाग को मिला था।
एक साल के अंदर जारी करना होता है प्रमाणपत्र-
अनुदान का इस्तेमाल करने के एक साल के अंदर अधिकारियों के लिए प्रमाणपत्र जारी करना अनिवार्य है। फिर इन्हें साल के अंदर विभागीय अधिकारियों के लिए प्रमाणपत्र जारी करना अनिवार्य है। फिर इन्हें सीएजी को भेजा जाता है। 30 सितंबर 2020 तक अनुदान राशि को खर्च करने के बाद विभागों को अधिकतम 31 मार्च 2022 तक प्रमाणपत्र जमा करना चाहिए था लेकिन 40,823 उपभोग प्रमाणपत्र जमा नहीं किए गए। इनमें 18,362 करोड़ रुपये का हिसाब-किताब ही नहीं दिया गया है।
हिसाब-किताब न देने में सबसे आगे समाज कल्याण-
अनुदान का हिसाब न देने की फेहरिस्त में टाॅप पांच विभागों में सबसे ऊपर समाज कल्याण विभाग है। समाज कल्याण विभाग ने 6,211 करोड़ रुपये का अनुदान खर्च का उपभोग प्रमाणपत्र सीएजी को नहीं दिया। वहीं दूसरे नंबर पर 2,921 करोड़ खर्च का हिसाब न देने के साथ शिक्षा विभाग है। कृषि और ग्राम्य विकास ने 2,813 करोड़ रुपये खर्च किए और इस सूची में तीसरे स्थान पर है। पंचायती राज ने 989 करोड़ खर्च कर उसके प्रमाणपत्र नहीं दिए और चैथे स्थान पर है। 905 करोड़ के प्रमाणपत्र न देकर नगर विकास विभाग पांचवें स्थान पर है। इस पर सीएजी ने सख्त आपत्ति जताते हुए कहा है कि यूसी न होने की वजह से इस बात का कोई आश्वासन नहीं है कि अनुदान कहां खर्च किया गया। यूसी न होने की वजह से सीएजी ने अरबों रुपये के गबन और गलत इस्तेमाल की आशंका जताई है।
11 योजनाएं ठंडे बस्ते में, एक पैसा भी नहीं किया खर्च-
उत्तर प्रदेश सरकार विभिन्न योजनाओं के लिए एकमुश्त बजट जारी करती है। इसमें से 11 योजनाओं के मद में दिए गए बजट का एक पैसा भी संबंधित विभागों ने खर्च नहीं किया है। इसका परिणाम यह हुआ कि ये सभी योजनाएं ठंडे बस्ते में चली गईं। नियंत्रक एवं लेखा महापरीक्षक (सीएजी) की वित्त वर्ष 2021-22 की रिपोर्ट में ये खुलासा हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार राज्य सरकार ने कुल 50 योजनाओं के लिए 7,696 करोड़ रुपये का एकमुश्त बजट प्रावधान किया था। इनमें से लगभग 4,261 करोड़ रुपये विभिन्न योजनाओं पर खर्च हुए और शेष धनराशि बिना इस्तेमाल के ही रह गई।
इन योजनाओं पर कुछ नहीं किया खर्च-
-एनपीएस वाले कर्मचारियों के 31 मार्च 2019 तक बचे नियोक्ता अंशदान का एकमुश्त भुगतान
-अनावासीय भवनों का जीर्णोद्धार
-होम्योपैथी चिकित्सालयों का भवन विस्तार
-ग्रामीण विद्युतीकरण के लिए एकमुश्त प्रावधान
-सहायता प्राप्त अरबी-फारसी स्कूलों के एनपीएस वाले कर्मचारियों के बचे नियोक्ता अंशदान का एकमुश्त भुगतान
-समीक्षा, प्रशिक्षण व मूल्यांकन के लिए एकमुश्त प्रावधान
-विरासत से जुड़े कार्यों के लिए जारी बजट
-फल-सब्जी व मसालों के संवर्धन का एकमुश्त विकास
-उपकरणों व मशीनों की समितियों का गठन
-एसटी आश्रम पद्धति स्कूलों में चारदीवारी और सड़क
-नवनिर्मित जिलों में जेलों के निर्माण के लिए जमीन क्रय