मल्टी सुपर स्पेशियलिटी से बना संयुक्त चिकित्सालय, लेकिन नहीं कोई खास सुविधा

सेक्टर-3० मल्टी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल का नाम बदलकर संयुक्त चिकित्सालय कर दिया गया। लेकिन वहां सुविधाओं को नहीं बढ़ाया गया।

Newstrack Network :  Network
Published By :  Monika
Update: 2021-04-25 16:39 GMT

अस्पताल में इलाज कराते मरीज़ (फोटो : सोशल मीडिया )

नोएडा: सेक्टर-3० मल्टी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल (Multi Super Specialty Hospital) का नाम बदलकर संयुक्त चिकित्सालय कर दिया गया। लेकिन वहां सुविधाओं को नहीं बढ़ाया गया। अस्पताल को सिटी स्कैन (City scan) , डायलिसिस (Dialysis) , एमआरआई (MRI), आईसीयू (ICU), एनआईसीयू (NICU) जैसी सुविधाओं से लबरेज किया जाना था। ऐसा हो नहीं सका। मेडिकल हब में संयुक्त चिकित्सालय को अनदेखा करना कोरोना की सुनामी में मरीजों पर भारी पड़ रही है। अब आक्सीजन के लिए त्राहीमाम मचा हुआ है। अधिकारियों को खुद पीपीई किट पहनकर अस्पतालों में बेड खाली करवाने पड़ रहे हैं।

65० करोड़ की लागत से सेक्टर-3० में 3०० बेड के अस्पताल का निर्माण किया गया। इसमे 8० बेड जिला अस्पताल और 22० बेड चाइल्ड पीजीआई को दिए गया। पूर्व के शासन काल में 8० बेड के इस अस्पताल का नाम मल्टी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल रखा गया। दावा किया गया कि यहा निजी अस्पतालों की तर्ज पर वह सभी सुविधाएं होंगी जो अन्य बड़े अस्पतालों में मरीजों को मिल रही थी और जिनके लिए उन्हें ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ रहा था। अस्पताल में सुविधाओं को नहीं बढ़ाया जा सका लेकिन प्राधिकरण का पास इसका अनुरक्षण कार्य रहने से इसका रखरखाव बेहतर रहा।

2०18 से 2०2० वित्तीय वर्ष में दिए करीब 7 करोड़

यूपी सरकार के हैंडओवर होने के बाद भी प्राधिकरण ने विभिन्न मदों में अस्पताल प्रबंधन को प्रत्येक वित्तीय वर्ष जरूरत के हिसाब से फंड जारी किया। आकड़ों को देखे तो 2०19-2० में प्राधिकरण 91 लाख 29 हजार 568 रुपए , 2०18-19 में 1 करोड़ 32 लाख व 2०17-18 में 5 करोड़ रुपए का फंड जारी किया गया। पैसा दिया गया लेकिन सुविधाएं दिन प्रतिदिन गिरती चली गई।

2०18 में बदल दिया गया नाम

सीमित संसाधनों के बीच प्राधिकरण ने अस्पताल को शासन के हवाले कर दिया। शासन के अधीन होते ही अस्पताल का नाम बदल दिया गया। इसे संयुक्त चिकित्सालय बना दिया गया। फिर वहीं हुआ जो प्रदेश के सरकारी अस्पतालों का हाल है। यहा मरीजों की सुबह से लंबी कतार लगती थी। इमरजेंसी विााग में आने वाले अधिकांश मरीजों को जिले के बाहर रेफर किया जाने लगा। इसी का खामियाजा कोरोना काल में मरीजों को उठाना पड़ रहा है।

क्यो नहीं चलाया जा सका प्लांट

2००8 में अस्पताल की इमारत का निर्माण शुरू किया। 2०15-16 में इमारत का संचालन किया गया। 3०० बेड के लिए आक्सीजन प्लांट 17 लाख में तैयार किया गया। इसे अब तक क्यो नहीं चलाया गया। महज एनओसी न मिलने की वजह से आज हजारों कोरोना संक्रमितों को लाभंवित कर सकने वाला यह अस्पताल सिर्फ अपनी इमारत की चमक ही दिखा रहा है।

रिपोर्ट : दीपांकर जैन

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