Varanasi: काशी का सैकड़ों साल पुराना राज जानने के लिए नहीं मिल रहा बजट!

Varanasi: काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग की ओर से सर्वेक्षण करवाए जाने के दौरान शहर से दूर बभनियांव गांव में उस प्राचीन टीले का पता चला था जिसमें काशी के कई कालखंड का राज छिपा है।

Update: 2022-10-09 12:37 GMT

बभनियांव गांव के प्राचीन टीले पर मिलें अवशेष

Varanasi News: 2014 में देश की सत्ता बदलने के बाद काशी के दिन भी बहुरने लगे। नरेंद्र मोदी के यहां से सांसद बनने और देश की सबसे बड़ी कुर्सी पर विराजमान होने के बाद यहां हजारों करोड़ की योजनाएं शुरू हुई। काशी कॉरिडोर के रुप में कई योजनाएं धरातल पर उतर चुकी हैं तो तमाम उतरने को हैं। यहां सकरी गलियों को खत्म कर चौड़ी सड़कें और हाईवे से लेकर हवाई अड्डा तक बन चुका है। प्राचीन शहर में हाईटेक स्वास्थ्य सुविधा, आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर, उद्योगों को नया पंख देने के लिए 40 हजार करोड़ से ज्यादा खर्च हो चुका है। सैकड़ों करोड़ की अन्य योजनाओं के लिए भी कार्य जारी है।

काशी के बदलते स्वरूप और आध्यात्मिक चमक के दौर में इस शहर से जुड़े राज को जानने के लिए पुरातत्विदों ने भी एक अभियान भी शुरू किया। लेकिन धन के अभाव में यह चार महीने से ठप पड़ा है। पुरा विशेषज्ञों को जमीन के नीचे दबा राज सामने लाने के लिए महज 10 से 15 लाख रुपये की जरूरत है। भारत सरकार से लेकर पुरातत्व विभाग बाद भी आर्थिक सहयोग न मिलने से आगे उत्खनन तो दूर यहां मिल चुके करीब 4 हजार साल पुराने काशी के सबसे पुराने शिवमंदिर को संरक्षित करने के लिए शेड तक की व्यवस्था नहीं हो पा रही है।



काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग की ओर से सर्वेक्षण करवाए जाने के दौरान शहर से दूर बभनियांव गांव में उस प्राचीन टीले का पता चला था जिसमें काशी के कई कालखंड का राज छिपा। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग से अनुमति मिलने के बाद फरवरी 2020 में पंचक्रोशी परिक्रमा मार्ग में स्थित बभनियांव गांव की बस्ती के बीच 10 बीघे में फैले टीले के एक हिस्से में उत्खनन शुरू हुआ तो जमीन के नीचे दबे पुरावशेषों से काशी के इतिहास पाषाणकालीन सभ्यता के अवशेष मिलने से साफ हो गया कि जमीन के नीचे अभी कई और कालखंडों का राज दबा है।

इस बीच कोरोना संकट के चलते उत्खनन पर रोक लगी तो दो साल बाद फिर उत्खनन शुरू होने पर पूरा सच सामने लाने वाली बीएचयू के पुरातत्व विभाग की टीम के सामने बजट का संकट खड़ा हो गया। ऐसे में मई महीने से उत्खनन की कड़ियां जुड़ने लगीं। शुरुआती दौर में ऐसे अवशेष मिले जिससे पता चला कि बभनियांव गांव काशी की तरह धार्मिक व सांस्कृतिक रूप से समृद्ध रहा। करीब दो मीटर खोदाई में ही काशी के सबसे पुराने गुप्तकालीन शिव मंदिर समेत कुषाणकालीन एकमुखी शिवलिंग पाया गया था। शिवलिंग में जटा, आंख और नाक बना हुआ है। इसके अलावा शुंग, कुषाण और 3500 वर्ष पूर्व के ताम्र बंद है।

पहले भी मिल चुके बहुत अवशेष

काशी का लिखित उल्लेख अथर्ववेद में भी मिलता है। इसका समय 1300 से 1000 ईसा पूर्व का माना जाता है। बभनियांव से पहले वाराणसी शहर के राजघाट इलाके में हुए पुरातत्व विभाग द्वारा किए गए उत्खनन में कुषाण, शुंग, मौर्य और पूर्व जनपदीय काल के पुरातात्विक अवशेष मिल चुके हैं। इसके साथ ही वैदिक काल में देवताओं को भोग लगाने वाले पात्र, पाटरी डिस्क, कृषि काल के मृदभांड, मनके, गुरिया, गेंहू के दाने, चूल्हा आदि मिले थे।

पुरावशेषों की सुरक्षा सबसे जरूरी

बभनियांव में काशी के सबसे प्राचीन शिव मंदिर का जितना स्वरूप मिला है, वह भूतल से दो मीटर से ज्यादा नीचे है। वह मिट्टी-पानी से न पटे, यह सबसे बड़ी आवश्यकता है। बीएचयू की उत्खनन टीम के पास इतने पैसे भी नहीं है कि खोदाई वाले ऐतिहासिक स्थल को सुरक्षित करने के लिए पिलर पर शेड लगवा सके। हाल ही में बीएचयू के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग की ओर से 'काशी अतीत और वर्तमान' विषय पर आयोजित संगोष्ठी के जरिए भी स्थानीय जनप्रतिनिधियों का ध्यान उत्खनन में रोड़ा बने आर्थिक संकट की ओर आकृष्ट कराया गया। इसके बावजूद उम्मीद की किरण दिख नहीं रही है।

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