Meerut Clock Tower: मेरठ से बीजेपी सांसद राजेंद्र अग्रवाल की मांग, मेरठ के ऐतिहासिक घंटाघर को संरक्षित स्मारक घोषित किया जाए
Meerut Clock Tower: मेरठ के इस घंटाघर की खासियत यह थी कि हर घंटे बाद इसके पेंडुलम की आवाज दस किमी. की परिधि तक पहुंचती थी, सांसद राजेंद्र अग्रवाल ने इसे ऐतिहासिक संरक्षित स्मारक घोषित करने की मांग की है।
Meerut News: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के मेरठ-हापुड़ लोकसभा सीट (Meerut-Hapur Lok Sabha seat) के सांसद राजेंद्र अग्रवाल (MP Rajendra Agarwal) ने आज लोकसभा में नियम-377 के अंतर्गत मेरठ के ऐतिहासिक घंटाघर ( Meerut historic clock tower) को संरक्षित स्मारक घोषित करने की मांग की।
सांसद राजेंद्र अग्रवाल (MP Rajendra Agarwal) ने कहा कि मेरठ का ऐतिहासिक घंटाघर मेरठ की प्रमुख पहचानों में से एक है। लगभग 250 वर्ष पुराने तथा जर्जर हो गए कम्बो दरवाजे के स्थान पर सन 1900 में इसे बनाने का निर्णय लिया गया था। विशाल घंटाघर के ले-आउट प्लान पर मेरठ में कार्यरत अंग्रेज अधिकारी (British officer) एकमत नहीं थे ।
यह भव्य घंटाघर नेताजी सुभाष चंद बोस द्वार के नाम से प्रसिद्ध है
परन्तु गवर्नमेंट स्कूल के पूर्व अध्यापक तथा तत्कालीन टाउन एरिया के अधिकारी गजराज सिंह (Officer Gajraj Singh) ने इस कार्य को सफलतापूर्वक सम्पादित किया तथा सन 1914 में घंटाघर सम्पूर्ण रूप से बनकर तैयार हो गया। देश की आजादी के पश्चात से यह भव्य घंटाघर नेताजी सुभाष चंद बोस (Netaji Subhash Chand Bose) द्वार के नाम से प्रसिद्ध है। उन्होंने कहा कि 100 वर्ष से भी अधिक पुराने मेरठ के इस घंटाघर की भव्य इमारत उचित रखरखाव के अभाव में कमजोर होने लगी है तथा इसकी घडी अनेक वर्षों से बंद है।
सांसद राजेंद्र अग्रवाल जी ने सभापति के माध्यम से सरकार से अनुरोध किया कि मेरठ के इस ऐतिहासिक घंटाघर को संरक्षित स्मारक घोषित करते हुए इसकी घडी को ठीक कराया जाए तथा इसके रखरखाव की समुचित व्यवस्था की जाए।
जानें इससे जुड़ी कुछ खास बातें
ब्रिटिश राज (British Raj) में इस भीड़भाड़ वाले इलाके में 1913 में घंटाघर का निर्माण हुआ और इंग्लैंड से वेस्टन एंड वाच कंपनी (Weston & Watch Company) की यह घड़ी 1914 में लगाई गई। इसके बराबर में ही टाउन हॉल है। शहर के बीचोंबीच होने के कारण घंटाघर क्षेत्र में आजादी की लड़ाई के लिए सभाएं होती थी।
पेंडुलम की आवाज से लोग टाइम जानते थे
इस घंटाघर की खासियत यह थी कि हर घंटे बाद इसके पेंडुलम की आवाज दस किमी. की परिधि तक पहुंचती थी, उस समय आज की तरह का शोरगुल नहीं था। इसलिए इस घड़ी के पेंडुलम की आवाज को ही लोगों ने टाइम जानने का आधार बनाया हुआ था। लोग इस घड़ी की आवाज से अपना काम करते
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