UP Election 2022: दूसरे चरण के मतदान के लिए पार्टियों ने कसी कमर, BJP के लिए आसान नहीं होगी डगर

UP Election 2022 : दूसरे चरण में राज्य के नौ जिलों के 55 विधानसभा सीटों पर चुनाव होने हैं। इस चरण में पश्चिम उत्तर प्रदेश और रूहेलखंड की सीटों पर चुनाव होंगे।

Report :  Rakesh Mishra
Published By :  Ragini Sinha
Update:2022-02-11 12:48 IST

दूसरे चरण के मतदान के लिए पार्टियों ने कसी कमर (Social Media)

UP Election 2022 : प्रदेश में पहले चरण का मतदान (First phase election complete) संपन्न हो गया है। अब पार्टियों का पूरा फोकस दूसरे चरण (Second phase Election date) के लिए 14 फरवरी को होने वाले मतदान पर शिफ्ट हो चुका है। दूसरे चरण में राज्य के नौ जिलों के 55 विधानसभा सीटों (Up Election 2022) पर चुनाव होने हैं। इस चरण में पश्चिम उत्तर प्रदेश (West Uttar Pradesh) और रूहेलखंड की सीटों (Rohilkhand assembly seats) पर चुनाव होंगे। दूसरे चरण के लिए कुल 586 प्रत्याशी मैदान में हैं। 

इन सीटों पर होगा मतदान 

दूसरे चरण में बेहट, नकुड़, सहारनपुर नगर, सहारनपुर, देवबंद, रामपुर, मनिहारान (सुरक्षित), गंगोह, नजीबाबाद, नगीना (सुरक्षित), बिजनौर, चांदपुर, नूरपुर, कांठ, ठाकुरद्वारा, मुरादाबाद ग्रामीण, मुरादाबादनगर, कुंदरकी, बिलारी, चंदौली (सुरक्षित), आंवला, कटरा, जलालाबाद, तिलहर, पुवाया (सुरक्षित) एस, शाहजहांपुर, असमौली, सम्भल, स्वार, चमरउवा, बिलासपुर, रामपुर, मिलक सु., नौगवां सादात, अमरोहा, हसनपुर, गुन्नौर, बिसौली सु., सहसवान, बिल्सी सु., बदायूं, शेखपुर, दातागंज, बहेड़ी, मीरगंज, भोजीपुरा, नवाबगंज, फतेहपुर सु., बिठारी चैनपुर, बरेली, बरेली कैण्ट, और ददरौल शामिल हैं। 

क्या थे 2017 में हालात 

मुस्लिम और दलित बाहुल्य इन इलाकों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 2017 में इस क्षेत्र की 55 सीटों में से 38 पर जीत हासिल की थी। वहीँ समाजवादी पार्टी (सपा) के खाते में 15 सीट गयी थी तो कांग्रेस ने भी इस क्षेत्र की दो सीटों पर कब्ज़ा जमाया था। पिछली बार के विधान सभा चुनाव में सपा और कांग्रेस का गठबंधन था। सपा द्वारा जीती गई 15 सीटों में से 10 पर मुस्लिम उम्मीदवार विजयी हुए थे। जबकि 2019 के चुनाव में इस क्षेत्र के 11 लोक सभा सीटों में से 7 पर सपा-बसपा गठबंधन ने जीत दर्ज की थी। बसपा ने सहारनपुर, नगीना, बिजनौर और अमरोहा सीटें जीते थी तो वहीँ सपा ने मुरादाबाद, संभल और रामपुर सीटों पर जीत दर्ज की थी।   

क्या है इस बार का माहौल 

सत्तारूढ़ भाजपा को उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में होने वाले मतदान की 55 सीटों पर पहले दौर की तुलना में कड़ी टक्कर का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि इस क्षेत्र में मुसलमानों की अधिक संख्या है। एक तो किसान आंदोलन के नाते इस क्षेत्र के किसान पहले से ही भाजपा से नाराज चल रहे हैं वहीँ मुस्लिमों के दो बड़े संप्रदाय बरेलवी और देवबन्दी के प्रभाव वाले दो बड़े जिले-बरेली और सहारनपुर इसी क्षेत्र में आते हैं।

इस क्षेत्र में मुस्लिम, जाट और दलित मतदाताओं के गठबंधन का फार्मूला सफल रहा है। इस बार समाजवादी पार्टी ने इस क्षेत्र की जातीय संरचना को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के साथ महान दल से भी गठबंधन किया है। आरएलडी की जहाँ जाट वोटों पर पकड़ मानी जा सकती है तो वहीँ केशव देव मौर्य के महान दल का प्रभाव रोहिलखण्ड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मौर्या, शाक्य, कोइरी, और सैनी के बीच माना जा सकता है।

स्वामी प्रसाद मौर्या की बेटी संघमित्रा मौर्या बदाऊं से बीजेपी सांसद

इसी इलाके में बदाऊं और संभल जैसे क्षेत्र भी आते हैं जहाँ एक और मुलायम सिंह यादव परिवार का बहुत प्रभाव है तो वहीँ दूसरी तरफ भाजपा से बागी होकर सपा में गए स्वामी प्रसाद मौर्या के प्रभाव को भी नहीं नाकारा जा सकता है। बता दें कि स्वामी प्रसाद मौर्या की बेटी संघमित्रा मौर्या बदाऊं से ही भाजपा सांसद हैं। कभी कांग्रेस में रहे और सपा में शामिल हो चुके इमरान मसूद का प्रभाव भी सहारनपुर क्षेत्र में अच्छा खासा है। बेहट सीट इमरान मसूद के प्रभाव वाली मानी जाती है।

नए परिसीमन से पहले 2007 में जब यह मुजफ्फराबाद सीट थी तब इमरान मसूद इस सीट से निर्दलीय विधायक चुने गए थे। 2017 के चुनाव में नरेश सैनी कांग्रेस से विधायक निर्वाचित हुए थे। नरेश सैनी को इमरान मसूद ने ही चुनाव लड़ाया था। इस बार मसूद भी सपा के उम्मीदवार के पक्ष में माहौल बनाते दिखेंगे। नवाबों के गढ़ रामपुर में हमेशा से ही आजम खान और उनके परिवार का दबदबा रहा है। समाजवादी पार्टी के नेता आज़म खान वर्तमान में तो सांसद हैं लेकिन 2022 विधान सभा चुनाव में वो रामपुर सीट से मैदान में उतर रहे हैं।

इस सीट पर आजम खान का दबदबा

इस सीट पर आज़म खान के दबदबे का इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वो रामपुर सीट से नौ बार विधायक चुने गए हैं। रामपुर सीट पर मौजूदा विधायक तंजीम फात्मा आजम खान की पत्नी हैं। आजम खान फिलहाल सीतापुर जेल में बंद हैं। समाजवादी पार्टी ने उन्हें अपना प्रत्याशी बनाया है। योगी सरकार ने आजम खान पर शिकंजा कसने के साथ ही बड़े पैमाने पर मुकदमे दर्ज कराए।

आजम के खिलाफ 102 मुकदमे दर्ज हुए और 26 फरवरी 2020 को उन्हें उनके परिवार के साथ जेल में डाल दिया गया। आजम खान के जेल जाने के बाद से बीजेपी उनके क्षेत्र में लगातार सक्रिय है और इस बार उनके मजबूत किले में सेंधमारी की भरसक कोशिश कर रही है। वहीँ आजम खान की गिरफ्तारी के मुद्दे को भी सपा भुनाने की कोशिश कर मुस्लिमों को एक मुस्त अपने पाले में करने की कोशिश कर रही है। 

बसपा, एआईएमआईएम भी बनाएंगे लड़ाई को दिलचस्प 

बड़ी मुस्लिम आबादी को ध्यान में रखते हुए, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी इस क्षेत्र की कुछ सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं। बहुजन समाज पार्टी ने भी इस क्षेत्र में लगभग 23 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। ऐसे में मुस्लिम वोटों के बॅटवारे से भाजपा को होने वाले फायदे से इंकार नहीं किया जा सकता है। इस क्षेत्र की 25 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका अदा करते हैं। वहीँ 55 विधान सभा में से 20 सीटों पर दलित मतदाताओं की संख्या लगभग 20 प्रतिशत से ज्यादा है। 

भाजपा को हो सकता है नुकसान 

भाजपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव में पहले और दूसरे चरण में विरोधियों का लगभग सफाया ही कर दिया था। मोदी लहर पर सवार होकर भाजपा ने पहले चरण की 58 में से 53 तो वहीँ दूसरे चरण की 55 में से 38 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वैसे मोदी लहर में भी यह क्षेत्र भाजपा के लिए बहुत मुफीद नहीं रहा। तो इस बार मोदी लहर भी नहीं दिख रही है। बीते चुनाव में जहाँ सपा, आरएलडी और महान दल अलग-अलग लडे थे तो वहीँ इस बार तीनों एक साथ हैं।

2017 में भाजपा कैराना और मुज्जफरनगर दंगे के मुद्दे पर साप्रदायिक ध्रुवीकरण से हिन्दू वोट अपने पाले में करने में सफल रही थी। इस बार स्थितियां वैसी नहीं हैं। गन्ना भुगतान पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हमेशा एक बड़ा मुद्दा रहा है। गन्ना भुगतान को लेकर लोग भाजपा से जहाँ नाराज चल ही रहे थे कि रही सही कसर किसान आंदोलन ने पूरी कर दी। बेरोजगारी भी यहां बड़ा मुद्दा है।

2017 के विधानसभा चुनाव में गैर मुस्लिम सीटों पर भाजपा को बड़ा फायदा मिला था। लेकिन इस बार हालत बदले हुए हैं। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि भाजपा के लिए दूसरे चरण का मतदान पहले चरण से भी ज्यादा कठिन साबित होने वाला है।

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