UP Election 2022: इस मंडल में बसपा ही अब हाशिये पर, भाजपा-सपा में सीधी लड़ाई की उम्मीद

UP Election 2022: कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने दो-दो सीटें जीती थीं तो वहीं कभी इस इलाके में बड़ा प्रभाव रखने वाली बहुजन समाज पार्टी अपना खाता भी नहीं खोल सकी थी।

Report :  Rakesh Mishra
Published By :  Ragini Sinha
Update:2022-02-12 15:39 IST

Up Election 2022

UP Election 2022 : पश्चिमी उत्तर प्रदेश (Western Uttar Pradesh) का यह मंडल एक तरफ उत्तराखंड (Uttarakhand) तो दूसरी तरफ हरियाणा (Haryana) से जुड़ा हुआ है। इस मंडल के अंतर्गत तीन जिले मुजफ्फरनगर (Muzaffarnagar) , शामली (Shamli) और सहारनपुर (Saharanpur) आते हैं। शिवालिक श्रेणी की तलहटी के करीब, यह मंडल दोआब क्षेत्र के उत्तरी भाग में स्थित है। बात करें राजनीतिक आंकड़ों की तो 16 विधानसभा सीटों वाले इस मंडल में भाजपा ने 2017 में 12 सीटें जीती थीं।

कांग्रेस और समाजवादी पार्टी (samajwadi party) ने दो-दो सीटें जीती थीं तो वहीँ कभी इस इलाके में बड़ा प्रभाव रखने वाली बहुजन समाज पार्टी (bahujan samaj party) अपना खाता भी नहीं खोल सकी थी। इस बार इस मंडल के दो जिलों मुजफ्फरनगर और शामली में पहले ही चरण में मतदान हो गया है। इस मंडल के केवल सहारनपुर जिले में दूसरे चरण यानि 14 फरवरी को मतदान होगा।   

सात विधान सभा है सहारनपुर में 

सहारनपुर जिले में सात विधान सभा क्षेत्र आते हैं। इनमे बेहट, गंगोह, नकुड़, रामपुर मनिहारान, सहारनपुर नगर, सहारनपुर देहात और देवबंद शामिल है। इन सात सीटों में से चार पर भाजपा काबिज है तो वहीँ दो सीट पर कांग्रेस ने 2017 में जीत दर्ज की थी। एक सीट सपा के खाते में गयी थी। 

इस बार है यह जिला दलबदल का केंद्र 

इस बार इस जिले में कई प्रत्याशी हैं जो पिछली बार किसी और पार्टी के टिकट पर चुनाव जीते थे तो वहीं इस बार किसी और पार्टी के टिकट पर मैदान में हैं। इनमे प्रमुख हैं योगी सरकार में आयुष राजयमंत्री रहे डॉ. धर्म सिंह सैनी, बेहट से कांग्रेस विधायक रहे नकुल सैनी और इस इलाके में अच्छा प्रभाव रखने वाले और कभी कांग्रेस के कद्दावर नेता और प्रियंका गांधी की सलाहकार समिति के सदस्य रहे इमरान मसूद हैं। गौरतलब है कि नकुड़ विधानसभा सीट सालों से धर्म सिंह सैनी और इमरान मसूद में वर्चस्‍व की लड़ाई चलती रही है। अब दोनों समाजवादी पार्टी के साथ हैं।

इमरान के जुड़वा भाई नोमान मसूद ने भी कांग्रेस छोड़कर बसपा का दामन थाम लिया है। पार्टी ने उन्हें टिकट भी दे दिया है। कांग्रेस के ही विधायक मसूद अख्तर ने पार्टी छोड़ सपा ज्वाइन कर लिया है। वहीँ बेहट विधायक नकुल सैनी ने हाथ का साथ छोड़ कर भाजपा ज्वाइन कर लिया है। बसपा के मुकेश चौधरी और जगपाल भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं। 

दलित और मुस्लिम राजनीति का रहा है केंद्र 

यह जिला दलित और मुस्लिम राजनीति का केंद्र रहा है। यहाँ पर 51 फीसद हिंदू और 46 फीसद मुस्लिम आबादी है। हिंदुओं में भी करीब 23 फीसद दलित हैं। दलितों की ज्यादा आब्दी के कारण ही यह जिला कभी बसपा का गढ़ था। 1996 में मुख्यमंत्री बनने के बाद बसपा प्रमुख मायावती इसी जिले की हरोड़ा (सुरक्षित) विधानसभा सीट से पहली बार चुनाव जीत कर उत्तर प्रदेश की विधानसभा में पहुंचीं थी। यहाँ पर 2012 के विधानसभा चुनाव तक मायावती की पार्टी का दबदबा था।

2012 के विधानसभा चुनाव में जिले की सात सीटों में से चार बसपा के पास थीं तो वहीँ भाजपा, कांग्रेस एवं सपा को एक-एक सीट पर जीत मिली थी। 2007 में जिले की सात में से पांच सीटें बसपा ने जीती थी। कांशीराम ने भी 1999 में सहारनपुर लोकसभा से चुनाव लड़ा था। दलित राजनीति के उभरते हुए नेता भीम आर्मी के चंद्रशेखर आजाद 'रावण' भी इसी क्षेत्र से आते हैं। 

आइये नजर डालते हैं की क्षेत्र की सातों सीटों पर 

बेहट विधान सभा

मां शाकुम्भरी देवी और दारुल उलूम देवबंद के लिए प्रसिद्द सहारनपुर के सात विधान सभा क्षेत्रों में से एक है बेहट विधान सभा। 2017 में यहाँ से कांग्रेस के नरेश सैनी विधायक बने थे। सैनी कभी इमरान मसूद के बहुत करीबी थे और उन्ही की कृपा से विधायक भी बने थे। सैनी ने इस बार पाला बदल कर भाजपा ज्वाइन कर लिया है। भाजपा ने सैनी को ही यहाँ से मैदान में उतारा है। सपा ने यहां से उमर अली खान को प्रत्याशी बनाया है। उमर अली जामा मस्‍ज‍िद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी के दामाद हैं और सपा की तरफ से एमएलसी रह चुके हैं।

कांग्रेस ने पूनम कम्बोज तो बसपा ने यहां से रईस मलिक को टिकट दिया है। यहाँ सबसे ज्यादा मुस्लिमों की आबादी लगभग 1.50 लाख है। दलितों की संख्या 65 हजार है तो 35 हजार सैनी, 15 हजार ठाकुर और 10 हजार कश्यप मतदाता हैं। अब जबकि सपा और बसपा दो पार्टियों ने यहाँ से मुस्लिम उम्मीदवार उतार दिए हैं ऐसे में मुस्लिम मतों का बॅटवारा तय माना जा रहा है। दलितों का रुख यहाँ से निर्णायक साबित हो सकता है।    

देवबंद विधान सभा 

सूबे में सत्ता किसी की रही हो इस विधान सभा की चर्चा हमेशा रही है। इस बार तो यह नाम पुरे देश में चर्चा का विषय हो गया था क्यूंकि कुछ हलकों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के यहाँ से चुनाव लड़ने की सम्भावना जतायी जा रही थी। देवबंद ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण नगर है। यहाँ के मदरसा दारुल उलूम देवबंद की ख्याति देश और दुनिया भर में है। देवबंद सीट सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए चर्चा में रहती है।

2017 में यहाँ से भाजपा के बृजेश सिंह रावत चुनाव जीते। भाजपा से बृजेश सिंह फिर मैदान में हैं तो वहीँ सपा ने कार्तिकेय राणा को टिकट दिया है। हाथी की सवारी चौधरी राजेंद्र सिंह करेंगे तो कांग्रेस ने भी एक मुस्लिम प्रत्याशी राहत खलील को मैदान में उतारा है। यहां मुस्लिम आबादी करीब 1 लाख है। अनुसूचित जाति के 75 हजार मतदाता है तो वहीँ गुर्जर और राजपूतों की संख्या 35-35 हजार हैं। 

नकुड़ विधान सभा 

इस सीट से योगी सरकार में आयुष मंत्री रहे धर्म सिंह सैनी का कब्ज़ा है। सैनी अब भाजपा छोड़ चुके हैं और सपा ज्वाइन कर लिया है। सैनी भाजपा में आने से पहले बसपा में थे। सैनी इस बार सपा के टिकट पर यहाँ से मैदान में हैं। भाजपा ने यहाँ से मुकेश चौधरी को अपना उम्मीदवार बनाया है। साहिल खान बीएसपी से तो रिज़वाना  एआईएमआईएमइस के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं। सीट पर मुस्‍लिम, दलित, गुर्जर और सैनी वोटर निर्णायक स्‍थिति में हैं। यहाँ से धर्म सिंह सैनी अब तक चार बार विधायक रह चुके हैं।

धर्म सिंह पिछड़ों के साथ ही किसान आंदोलन के कारण भाजपा से नाराज चल रहे जाट और मुस्लिमों वोटों का समीकरण बनाने की कोशिश में हैं। इस सीट पर इमरान मसूद का भी अच्छा खासा प्रभाव है। मसूद पिछले चुनाव धर्म सिंह सैनी से ही हारे थे। इस बार दोनों एक पार्टी में हैं और मसूद सैनी के लिए मैदान में उतर भी चुके हैं। ऐसे में भाजपा के लिए इस सीट निकालनी आसान नहीं होगी। 

रामपुर मनिहारान विधान सभा 

यहाँ से वर्तमान में भाजपा के देवेंद्र निम विधायक हैं। उन्होंने 2017 के चुनाव में अपने निकटतम प्रतिद्वंदी बसपा के रविंद्र मोल्‍हू से मात्र 595 मतों से जीते थे। भाजपा के टिकट पर एक बार फिर देवेंद्र निम ही मैदान में हैं। सपा गठबंधन में यह सीट राष्ट्रीय लोक दल के खाते में गयी है और यहाँ से विवेक कांत मैदान में हैं। कभी यह सीट बसपा का गढ़ हुआ करती थी।

भीम आर्मी के चंद्रशेखर रावण का भी यहाँ अच्छा खासा प्रभाव है। जातिगत समीकरण पर यदि नजर डालें तो यहाँ अनुसूचित जातियां करीब 80 हजार, मुस्लिम 70 हजार, गुर्जर 55 हजार, सैनी 20 हजार, कश्यप 18 हजार, जाट 12 हजार हैं। इस सीट पर भी मुस्‍लिम, दलित, सैनी और गुर्जर विरादरी का वोटर जीत हार में अहम भूमिका निभाता है। 

गंगोह विधानसभा सीट 

गंगोह को सहारनपुर जिले की राजनीति की राजधानी कहा जाता है। सहारनपुर जिले की राजनीति में अच्छा खासा प्रभाव रखने वाला इमरान मसूद परिवार गंगोह का ही रहने वाला है। यहाँ से 2012 में कांग्रेस से विधायक रहे प्रदीप चौधरी ने 2017 में पाला बदल कर भाजपा का दामन थाम लिया और चुनाव जीत गए। प्रदीप चौधरी ने कांग्रेस प्रत्याशी नौमान मसूद को 38028 मतों से हराया था।

2019 में प्रदीप चौधरी कैराना से जीतकर लोकसभा पहुंच गए। इसके बाद हुए उपचुनाव में यहाँ से भाजपा के कीरत सिंह ने एक बार कांग्रेस के नोमान मसूद पटखनी दे दी। नोमान मसूद इस बार बसपा के टिकट पर अपना भाग्य आजमाएंगे। सपा गठबंधन ने यहाँ से इन्द्रसेन को मैदान में उतारा है। इस सीट पर यदि जातिगत समीकरण की बात करें तो यहाँ मुस्लिम करीब एक लाख, गुर्जर व अनुसूचित जातियां 45-45 हजार, सैनी 25 हजार, ब्राह्मण व जाट 15-15 हजार, कश्यप 12 हजार हैं। 

सहारनपुर नगर विधान सभा: 

वर्तमान में इस सीट पर सपा का कब्ज़ा है। यहाँ से संजय गर्ग मौजूदा विधायक हैं। संजय गर्ग व्यापारी समुदाय से आते हैं और उनकी इस क्षेत्र के व्यापारियों में बहुत अच्छी पकड़ है। गर्ग पहले भाजपा में ही थे। उसके बाद वो बसपा में गए। अब सपा में हैं। 2017 में उन्होंने भाजपा के राजीव गुम्बर को चुनाव हराया था। यह सीट कभी भाजपा नेता राघव लखनपाल शर्मा के भी जानती थी। राघव के पिता निर्भयपाल शर्मा जिले में भाजपा के कद्दावर नेता थे। उनकी हत्या के बाद राघव राजनीति में आये। राघव सहारनपुर शहर सीट से दो बार विधायक रहे।

राघव 2014 में यहाँ से सांसद चुने गए थे। सहारनपुर नगर विधानसभा सीट सहारनपुर के अंतर्गत आती है। इस संसदीय क्षेत्र से बसपा हाजी फज़लुर रहमान सांसद हैं जिन्होंने 2019 में राघव लखनपाल को 22417 से हराया था। वर्तमान विधायक गर्ग एक बार सपा के टिकट पर मैदान में हैं तो भाजपा ने राजीव गुंबर को ही मैदान में उतारा है। कांग्रेस से सुखविंदर कौर और बसपा से मनीष अरोड़ा चुनाव लड़ेंगे। इस सीट पर पंजाबी और व्‍यापारी वर्ग निर्णायक भूमिका निभाता है। यहाँ 

जातिगत समीकरण के हिसाब से देखें तो मुस्लिम करीब 1.70 लाख, वैश्य 50 हजार, अनुसूचित जातियां 30 हजार। वहीं, पंजाबी 1.10 लाख हैं।

सहारनपुर देहात विधान सभा: 

सहरानपुर देहात व‍िधानसभा सीट को पहले हरोड़ा व‍िधानसभा के नाम से जाना जाता था। 2012 में इस सीट को सहारनपुर देहात नाम म‍िला। यह सीट पहले आरक्षित थी। मायावती इसी सीट से 1996 और 2002 में जीतकर व‍िधानसभा पहुंंची थीं। वर्तमान में यहाँ से कांग्रेस के मसूद अख्तर विधायक हैं। मसूद अख्तर इमरान मसूद के करीबी माने जाते हैं। अख्‍तर ने भी मसूद के साथ कांग्रेस छोड़कर समाजवादी पार्टी ज्‍वाइन कर ली थी। हालांकि मसूद अख्तर को सपा ज्वाइन करने का कोई फ़ायदा नहीं मिला और अखिलेश यादव की पार्टी ने यहाँ से आशु मलिक को मैदान में उतार दिया है।

पिछले चुनाव में बसपा के जगपाल सिंह यहाँ दूसरे नंबर पर थे।  जगपाल ने अब भाजपा ज्वाइन कर लिया है और भगवा दल के तस्केंत पर इस बार मैदान में हैं। जगपाल स‍िंह इस सीट पर 2012 में बसपा से व‍िधायक रहे थे। इस सीट पर दलित और मुस्‍लिम वोटर निर्णायक स्‍थिति में हैं। बसपा भी यहां मजबूत रही है। बसपा ने इस बार अजब सिंह चौधरी को यहां से टिकट दिया है। जातिगत समीकरण के लिहाज से बात करें तो इस सीट पर  मुस्लिम करीब 1.30 लाख, अनुसूचित जातियां 80 हजार, क्षत्रिय 14 हजार, ब्राह्मण व कश्यप 10-10 हजार, यादव व सैनी 8-8 हजार हैं।

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