महज आपराधिक मुकदमा दर्ज होना पासपोर्ट रोके जाने का आधार नहीं
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने अपने एक आदेश में स्पष्ट किया है कि महज आपराधिक मुकदमा विचाराधीन होना पासपोर्ट जारी करने से मना करने का आधार नहीं हो सकता है।
लखनऊ : इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने अपने एक आदेश में स्पष्ट किया है कि महज आपराधिक मुकदमा विचाराधीन होना पासपोर्ट जारी करने से मना करने का आधार नहीं हो सकता है। कोर्ट ने पासपोर्ट अधिनियम के इस विषय से सम्बंधित प्रावधान की व्याख्या करते हुए कहा कि यह प्रावधान अधिनियम के अन्य प्रावधानों के आधीन है।
यह आदेश जस्टिस देवेंद्र कुमार अरोड़ा और जस्टिस राजन रॉय की बेंच ने सलीम खान की याचिका पर पारित किया। याचिका में कहा गया था कि याची धार्मिक यात्रा पर जाना चाहता है लेकिन उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 504, 506, 353 और अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज है जिसके चलते उसका पासपोर्ट नहीं बन पा रहा है।
याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने याची को विचारण न्यायालय के समक्ष अर्जी देकर विदेश जाने की अनुमति मांगने को कहा है। कोर्ट ने कहा कि यदि ट्रायल कोर्ट अनुमति दे देती है तो याची पासपोर्ट कार्यालय में आवेदन दे व पासपोर्ट कार्यालय उस पर विधिसम्मत निर्णय ले।
अपने आदेश में कोर्ट ने पासपोर्ट अधिनियम की धारा 6(2)(एफ) को स्पष्ट करते हुए कहा कि इसके अनुसार पासपोर्ट न जारी करने का एक आधार आपराधिक मुकदमे का विचाराधीन रहना होता है लेकिन यह प्रावधान अधिनियम के अन्य प्रावधानों के आधीन है। कोर्ट ने केंद्र सरकार के 25 अगस्त 1993 के नोटिफिकेशन का भी जिक्र किया जिसमें कहा गया है कि ऐसे मामलों में जिस कोर्ट में व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा विचाराधीन है यदि वह कोर्ट विदेश जाने की अनुमति देती है तो एक निश्चित समयावधि के लिए उसे पासपोर्ट जारी किया जा सकता है।
अपने आदेश में कोर्ट ने आगे कहा कि धारा 6(2)(एफ) के प्रावधान इसलिए बनाए गए क्योंकि आपराधिक मुकदमे का सामना कर रहे व्यक्ति का विदेश चले जाना राज्य व समाज के हित में नहीं होगा। लेकिन 1993 के नोटिफिकेशन द्वारा इसमें छूट भी प्रदान कर दी गई। लिहाजा ट्रायल कोर्ट यदि याची को विदेश जाने की अनुमति देती है तो उसे पासपोर्ट जारी करने पर उक्त नोटिफिकेशन की रोशनी में विचार किया जाए।