लखनऊ: कहते हैं की हमारे लखनऊ में तीन चीजें बड़ी ही फेमस हैं चौक की चिकन जरदोजी, अमीनाबाद के टुंडे-कबाब और इन सबमें भी सबसे ज्यादा फेमस हैं लखनऊ की धरोहरें। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ को नवाबों की नगरी के नाम से जाना जाता है। यहां के लोग नवाबी शान-ओ-शौकत, नजाकत और नफासत और तहजीब के लिए जितने जाने जाते हैं, उतनी ही यहां कि धरोहरें भी जानी जाती हैं। आज विश्व धरोहर दिवस के मौके पर हम आपको आपकी धरोहरों के बारे में कुछ याद कराना चाहते हैं। केवल धरोहर दिवस मनाने से धरोहर नहीं बचेंगी, कुछ फर्ज भी निभाने होंगे।
चीज चाहे जैसी हो, सस्ती हो या महंगी हो .. अगर हमारी है, तो हम उसे बड़े ही प्यार से सहेज कर रखते हैं। बिलकुल उसी तरह हमारी धरोहरें भी हैं, जिन्हें सहेजकर रखना हमारा फर्ज है। पुराने लखनऊ में चले जाइए, आपको लखनऊ की जीती-जागती खूबसूरती की इमारतें शान से यहां के नवाबों के शौक से बाकायदा परिचय कराती दिखेंगी।
जब भी कभी लखनऊ वाले बाहर जाते हैं, तो लोग अक्सर ही उनसे पूछ बैठते हैं कि आप उसी नवाबों के शहर से हैं, जहां भूलभुलैया और रूमीगेट बने हुए हैं। कितना अच्छा लगता है कि लोग हमारे शहर को उनकी धरोहरों के नाम से जानते हैं। नवाब आसिफुद्दौला, नवाब शुजाउद्दौला, नवाब वाजिद अली शाह और नवाब सिराजुद्दौला ने ऐसी सुंदर ओर आकर्षक रहस्यमयी इमारतों की तामीर करवाई, जो कि सैकड़ों सालों से उत्तर प्रदेश की शान रही हैं। यहां रहने वाला हर इंसान अपने लखनवी होने पर गर्व महसूस करता है।
आमतौर पर देखा जाये तो यहां अब कई ओर भी आसमान को छूने वाली इमारतें भले ही बन चुकी हैं पर लखनऊ कि असली शान तो यहां कि धरोहरें ही हैं। चाहे वो छोटा इमामबाड़ा हो या रेजीडेंसी या फिर घंटाघर। लखनऊ में आने वाला कोई भी इंसान तब तक वापस नहीं जाता है, जब तक वो इन खूबसूरत इमारतों का दीदार ना कर ले। ये इमारतें न केवल नवाबों के जमाने के कला-कौशल का बखान करती हैं बल्कि इनसे सांप्रदायिक सौहार्द और सर्वधर्म समभाव भी झलकता है। शहीद स्मारक, रेजीडेंसी, घंटाघर, रूमीगेट, भूलभुलैया ओर छोटा इमामबाड़ा ऐसी ही धरोहरें हैं, जिनकी वजह से हमारे लखनऊ में विरासतों की यादें जिंदा हैं।
थूक कर लगा रहे नजर
आज न जाने ऐसा क्यों लगता है कि इन धरोहरों को नजर सी लगती जा रही है। अगर आप किसी भी ऐतिहासिक स्थल पर जाते हैं, तो जगह-जगह आपको पान की पीक दिखाई देगी। छोटा इमामबाड़ा, बड़ा इमामबाड़ा, शाहनजफ इमामबाड़ा तथा शीशमहल स्थित पिक्चर गैलरी की देख-रेख का जि़म्मा हुसैनाबाद ट्रस्ट पर है। इनका काम है इन इमारतों की देख-रेख करना। पर अब धीरे-धीरे इनकी खूबसूरती में उखड़े हुए प्लास्टर और ईंटें दाग बन रहे हैं। बची-खुची कसर यहां आने वाले पर्यटक पूरी कर रहे हैं। भूलभुलैया में जगह-जगह पान की पीक इसकी खूबसूरती में दाग की तरह लगती है।
जाहिर है यह इमारतें इतनी बड़ी हैं कि इनमें कुछ व्यक्तियों द्वारा निगरानी रख पाना संभव नहीं है। जहां हुसैनाबाद ट्रस्ट अथवा वहां के कर्मचारी इन इमारतों के समुचित रख-रखाव न हो पाने के लिए जि़म्मेदार हैं, वहीं नुकसान पहुंचाने वाले पर्यटकों का भी इन इमारतों की बदहाली में कम योगदान नहीं है। आजकल बड़े इमामबाड़े का प्रवेश द्वार सफेदी के रंग में रंगा हुआ नजर आ रहा है। ऐसे में लगता है कि ट्रस्ट या सरकार द्वारा इस ओर ध्यान देने की शुरुआत की गई है या फिर मात्र बड़े इमामबाड़े के प्रवेश द्वार को चमका कर पर्यटकों को इसके ओर आकर्षित करने का यह उपाय अपनाया जा रहा है।
माशूका और आशिक हैं सबसे बड़ी समस्या
एक तरफ जहां हमारे नवाब अपनी बेगमों की याद में बड़े-बड़े महल बनवाकर अपना प्यार उनके लिए जताते थे, वहीँ हमारे लखनवी प्यार के पंछी उन्हें खरोंचकर, उनपर नाम गोदकर अपना प्यार जताने की कोशिश करते हैं। चाहे भूलभुलैया हो या रेजीडेंसी जगह-जगह इन माशूकाओं और आशिकों के नाम लिखे दिख जाते हैं। पर सोंचने वाली बात तो यह है कि जिस युवा पीढ़ी को इन इमारतों के बचाव के तरीके सोचने चाहिए, वो खुद ही अपने प्यार की कहानियां इन खूबसूरत इमारतों पर लिखकर इन्हें गंदा करते हैं।
छोटे इमामबाड़े के तालाब में फेंकते हैं पॉलिथीन
छोटे इमामबाड़े में काम करने वाले एक व्यक्ति का कहना है कि वो ज्यादातर लोगों पर नजर रखते हैं। उनका कहना है कि यह एक धार्मिक स्थल है और यहां आने आने वाले पर्यटकों को खुद ही सफाई रखनी चाहिए। लेकिन फिर भी कुछ लोग इसका ध्यान नहीं रखते और गंदगी फैलाते हैं। इस इमामबाड़े में बने तालाब में लोग अक्सर पॉलिथीन और दूसरे पैकेट्स फेंकते हैं। ऐसे में बाहर से आने वाले विदेशी पर्यटकों के सामने लखनवी सभ्यता की बुरी छाप पड़ती है। इसके अलावा शीशमहल स्थित पिक्चर गैलरी के आस इसमें जगह-जगह कूड़ा-करकट और पर्यटकों द्वारा फेंकी गई सामग्री देखी जा सकती है।
खत्म हो रही रूमीगेट की नक्काशी
यही हाल विशाल रूमी गेट का भी है, जिसके बीच से होकर आज भी हुसैनाबाद व हज़रतगंज के बीच चलने वाला यातायात गुजरता है। इस गेट के सबसे ऊपर लगने वाली पत्थर की खूबसूरत नक्काशीदार कलगियां एक-एक कर टूटती जा रही हैं। परंतु इसकी मरम्मत का खास ध्यान नहीं दिया गया। जहां यदि कोई भाग क्षतिग्रस्त हो गया, तो उसकी मरम्मत करने के बजाए उसे या तो उसी टूटी-फूटी हालत में छोड़ दिया जाता है या उस क्षेत्र को ईंट व सीमेंट की सहायता से पूरी तरह बंद ही कर दिया जाता है। नवाबों की कई अनमोल धरोहरें प्रबंधन की लापरवाही की गवाही दे रही हैं।
इतिहास दोहराया नहीं जाता
लखनऊ के नवाबों ने जब ये इमारतें बनवाई होंगी, तो उन्होंने शायद ये नहीं सोचा होगा कि जिस पीढ़ी के लिए वो यादें संजोकर रखना चाहते हैं, वही एक दिन उसे गंदा करेंगे। कहते हैं इतिहास दोहराया नहीं जाता। पुराने जमाने के कारीगर दोबारा नहीं आएंगे, अपनी कलाकारी का हुनर दिखाने। ये इमारतें न केवल सभ्यता की पहचान हैं इनसे प्यार और मोहब्बत के पैगाम भी मिलते हैं। यहां आने वाले लोगों को चाहिए कि वो इसकी साफ सफाई का ध्यान रखें दीवारों को गंदा न करें ये धरोहर ही तो हैं, जो आज तक हमारे लखनऊ की शान बनी हैं इन ऐतिहासिक धरोहरों को संकट से बचाने के हर संभव उपाय किए जाने चाहिए। इस विश्व धरोहर दिवस पर इन्हें बचाने के प्रण लें और विदेशी मेहमानों को यहां की खूबसूरती से रूबरू करवाएं।
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