Gyanvapi Masjid Case: क्या है प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991, क्यों कर रहा है मुस्लिम पक्ष पैरवी, जानिये पूरी कहानी

Gyanvapi Masjid Case: ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में अदालत द्वारा मस्जिद के सर्वे कराए जाने के आदेश पर मुस्लिम तबके ने 'प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991' का जिक्र करते हुए ऐतराज जताया है।

Published By :  Shashi kant gautam
Update: 2022-05-17 11:52 GMT

ज्ञानवापी मस्जिद मामला: Photo - Social Media

Lucknow: वाराणसी स्थित काशी विश्वनाथ (Kashi Vishwanath) और ज्ञानवापी मस्जिद परिसर विवाद (Gyanvapi Mosque Complex Controversy) को लेकर देश में इन दिनों गरमागरम बहस छिड़ी हुई है। अदालत द्वारा मस्जिद के सर्वे कराए जाने के आदेश पर मुस्लिम तबके ने कड़ा ऐतराज जताया है। वह 'प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991' (Place of Worship Act 1991) का जिक्र कर अदालत के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) की अवहेलना बता रहे हैं। एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी (AIMIM Chief Asaduddin Owaisi) ने भी इस कानून का जिक्र करते हुए कोर्ट के फैसले को गलत बताया था और कहा था कि इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जानी चाहिए। तो आईए एक नजर उस एक्ट पर डालते हैं, जिसकी इन दिनों खूब चर्चा हो रही है।

प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 (Place of Worship Act 1991)

90 के दशक में राम मंदिर आंदोलन (Ram Mandir Movement) अपने चरम पर पहुंच चुका था। बीजेपी (BJP) विरोधी पार्टियां और विशेषकर तब केंद्र में सत्तारूढ़ पीवी नरसिम्हा राव (PV Narasimha Rao) की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार (Congress government) इस आंदोलन से काफी असहज महसूस कर रही थी। हिंदुस्तान में चले लंबे मुस्लिम शासनकाल में अनगिनत मंदिरों को ध्वस्त कर उनकी जगह मस्जिदें कायम की गई थी, ऐसे में अयोध्या से उठी लपटें अगर धीरे–धीरे देश के बाकी हिस्सों तक पहुंच जाती, तो शायद देश का माहौल खराब हो सकता था और एक नया ट्रैंड भी बन सकता है।

नरसिम्हा राव सरकार को डर था कि अयोध्या के बाद काशी, मथुरा ही नहीं देश के अन्य हिस्सों में सैंकड़ों मस्जिदों पर भी ऐसा ही दावा किया जाएगा और उन्हें हिंदुओं को सौंपने की मांग की जाएगी। विश्व हिंदू परिषद (Vishwa Hindu Parishad) ने 90 के दशक में ही अयोध्या के साथ –साथ काशी में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में शाही ईदगाह पर कब्जे के लिए अभियान तेज कर दिया था। जिससे सरकार की आशंका और प्रबल हो गई थी। ऐसे में सरकार ने इससे निपटने के लिए प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 ((Place of Worship Act 1991) ) यानि पूजा स्थल कानून बनाया। कानून के जरिए राममंदिर आंदोलन के कारण उपजी उग्रता को शांत करना था।

अयोध्या विवाद कानून में अपवाद (Exception in Ayodhya dispute law)

इस कानून में बाबरी मस्जिद विवाद को शामिल किए जाने को लेकर खूब बवाल हुआ, जिसके बाद सरकार को अपने पैर खींचने पड़े। राव सरकार ने दवाब में आकर 1991 के इस कानून में एक प्रावधान किया कि अयोध्या की बाबरी मस्जिद के अलावा में देश में किसी धार्मिक स्थल के दावे को स्वीकार नहीं किया जाएगा। कानून में किए गए प्रावधान के मुताबिक, देश के आजादी के दिन यानि 15 अगस्त 1947 को कोई धार्मिक ढांचा और या पूजा स्थल जिस रूप में था, उसपर दूसरे धर्म के लोग दावा नहीं कर पाएंगे। इसमें अयोध्या स्थित बाबरी मस्जिद को अपवाद रखा गया।

अयोध्या फैसले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

2019 में सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद और रामजन्मभूमि विवाद पर ऐतिहासिक फैसला देते हुए इस विवाद का हमेशा के लिए पटाक्षेप कर दिया। इस फैसले के बाद अयोध्या में भव्य राममंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूजा स्थल कानून, 1991 का जिक्र करते हुए अहम टिप्पणी भी की थी। सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि संसद ने 1991 में ये कानून बनाया ताकि मौलिक मूल्यों को संरक्षित किया जा सके।

संविधान (Indian Constitution) कहता है कि तमाम लोगों की आस्था और विश्वास को प्रोटेक्ट किया जाएगा। पूजा और प्रार्थना के अधिकार को संरक्षण दिया जाएगा। हमारा संविधान सभी धर्मों का सम्मान और सहिष्णुता की बात करता है। इस कानून को 1947 के धार्मिक स्थल को संरक्षित करने के उद्देश्य से लाया गया। सिर्फ पेंडिंग केसों को अपवाद में रखा गया।

इस कानून पर सुप्रीम कोर्ट की स्पष्ट टिप्पणी के कारण अब किसी धार्मिक स्थल को किसी दूसरे धार्मिक स्थल में परिवर्तित करना आसान नहीं होगा। ज्ञानवापी मामले में भी ऐसी ही संभावना जताई जा रही है।

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