गंगा आज भी कर रही अच्छे दिन का इंतजार, बेटा आता रहा पर सपना नहीं कर पाया पूरा

तीन साल पहले चुनाव लडऩे के लिए काशी पहुंचे नरेंद्र मोदी ने कहा था, न मुझे किसी ने भेजा है, न मैं खुद आया हूं, मुझे तो मां गंगा ने बुलाया है।

Update:2017-05-27 15:23 IST

आशुतोष सिंह

वाराणसी: तमाम दावों और वादों के बाद भी पतित पावनी गंगा के अच्छे दिन नहीं आए। काशी में गंगा का ये स्वरूप तब है जब तीन साल पहले चुनाव लडऩे के लिए काशी पहुंचे नरेंद्र मोदी ने कहा था कि न मुझे किसी ने भेजा है, न मैं खुद आया हूं, मुझे तो मां गंगा ने बुलाया है।

बाद में काशी से सांसद चुने जाने के बाद मोदी जब पीएम बन गए तो गंगा प्रेमियों के मन में उम्मीद की एक किरण दिखाई दी थी कि अब शायद मां गंगा का उद्धार होगा,मोदी इस दिशा में जरूर कुछ ठोस काम करेंगे।

लेकिन तीन साल बीतने के बाद स्थिति यह है कि गंगा अभी भी मैली की मैली ही बनी हुई हैं। उनकी हालत में कोई सुधार नहीं दिख रहा है। सच्चाई तो यह है कि गंगा में स्नान करने वालों की संख्या कम हुई है और गंगा लोगों के लिए एक पिकनिक स्पॉट बनकर रह गयी हैं।

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बगैर शोधन के गंगा में गिर रहे हैं नाले

गंगा अब कल-कल करके बहती नहीं,बल्कि इसमें गिरने वाले नाले कल-कल करके जरूर बहते हैं। धोबी अभी भी बदस्तूर गंगा में कपड़े धो रहे हैं। लोगों का साबुन लगाकर गंगा में नहाना बंद नहीं हुआ। साथ ही कई स्थानों पर भैसों को भी गंगा स्नान कराया जा रहा है। और यह तब है जब उत्तराखंड हाईकोर्ट गंगा को इंसानी रूप में समझने का फैसला सुना चुका है। गंगा के दर्द को समझते हुए मोदी सरकार ने पहली बार गंगा मंत्रालय बनाया।

नमामि गंगे नया नाम देकर 20 हजार करोड़ रुपये का फंड भी कायम कर दिया। लेकिन यह हैरान करने वाली सच्चाई है कि अभी भी अकेले वाराणसी में छोटे-बड़े 32 नाले बिना शोधन के गंगा में गिरते हैं। गंगा में प्रदूषण को रोकने के लिए फिलहाल तीन एसटीपी काम कर रहे हैं। वैसे मोदी सरकार बनने के बाद एक भी एसटीपी का निर्माण नहीं हो पाया।

लिहाजा अकेले वाराणसी में ही भारी मात्रा में गंदा पानी आज भी सीधे गंगा में गिर रहा है। गंगा में न तो पर्याप्त पानी है और न ही पानी में ऑक्सीजन। वीओडी और फिकल क्वॉलिफार्म की मात्रा काफी बढ़ गयी है। मतलब साफ है कि गंगा के बारे में कहा जा सकता है कि मर्ज बढ़ता ही गया ज्यों-ज्यों दवा की।

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घाटों से दूर हो रही है गंगा

आलम यह है कि बनारस में गंगा निर्मलीकरण के लिए अब तक सिर्फ फाइलों का गठ्ठर ही तैयार होता रहा है। नमामि गंगे मिशन के तहत काम के खाते में सिर्फ और सिर्फ रमना में प्रस्तावित 150 करोड़ की लागत वाला 50 एमएलडी का छोटा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट ही दर्ज है। इसका भी डीपीआर बनने के बाद टेंडर की प्रक्रिया ही शुरू हो पाई है।

काम कब शुरू होगा, यह तय नहीं है। आईआईटी बीएचयू, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड समेत अन्य एजेंसियों के रिसर्च में यह बात साबित हो चुकी है कि गंगा अब घाटों से दूर हो चुकी हैं। गंगा में प्रदूषण रोकने के लिए शहरी इलाके में 27 किलोमीटर ट्रंक सीवर और ट्रांस वरुणा में 144 किलोमीटर सीवर लाइन डालने से लेकर तीन पंपिंग स्टेशन और 260 एमएलडी के दो सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के जो काम चल रहे हैं, वह यूपीए-2 सरकार के कार्यकाल में शुरू हुए हैं।

जल निगम की गंगा प्रदूषण नियंत्रण ईकाई के जीएम जेबी राय के मुताबिक 2010 व 2012 में जेएनएनयूआरएम और जायका के तहत गंगा एक्शन प्लान में स्वीकृत करीब 10 हजार करोड़ रुपए के काम अब पूरे होने को हैं। दिसंबर 2017 से लेकर मार्च 2018 के बीच सारे काम पूरा कर लेने की तैयारी है। प्रोजेक्ट पूरा होने पर सभी गंदे नालों का गंगा में सीधे गिरना बंद होने के साथ ही सीवेज का ट्रीटमेंट हो सकेगा।

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सफेद हाथी बना सेंटर फॉर गंगा रिसर्च एंड डेवलपमेंट

गंगा समेत देश की अन्य नदियों को प्रदूषण मुक्त करने के अभियान के तहत बीएचयू में महामना मालवीय सेंटर फॉर गंगा रिसर्च एंड डेवलपमेंट की स्थापना 21 अप्रैल 2015 को की गई।

चेयरमैन से लेकर कोऑॢडनेटर तक नियुक्त हैं,लेकिन फंड के अभाव में दो साल में काम शुरू नहीं हो सका। चेयरमैन प्रोफेसर बीडी त्रिपाठी के मुताबिक सेंटर चलाने के लिए 300 करोड़ रुपए का प्लान केंद्र सरकार को काफी पहले भेजा जा चुका है।

मंत्रालय से इसे जल्द मंजूरी मिलने के संकेत मिले हैं। सेंटर शुरू होने पर सबसे पहले नदियों का प्राइमरी डाटा तैयार कर फीड किया जाएगा ताकि आने वाले समय में जो योजनाएं बनें उसके बेहतर परिणाम सामने आ सकें।

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साल भर में पावर प्वाइंट नहीं बनवा सका प्रशासन

लापरवाही सिर्फ गंगा के लिए बनी योजनाओं में ही नहीं बरती जा रही है बल्कि दूसरे अन्य स्तर पर भी जारी है। मसलन ई-बोट को लीजिए। गंगा में प्रदूषण को रोकने के लिए एक मई 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अस्सी घाट पर देश की जिस पहली ई-बोट को लॉन्च किया था, वह कबाड़ बनने के कगार पर पहुंच गयी है।

इसके पीछे कारण सिर्फ नगर निगम और जिला प्रशासन की लापरवाही है। प्रशासन ई-बोट की चाॄजग के लिए पॉवर प्वांइट सालभर में नहीं बनवा सका। प्रशासन अभी तक सिर्फ आश्वासन ही देता रहा है। प्रशासन के इस लापरवाह रवैये से परेशान होकर कुछ नाविक बैटरी निकालकर डीजल इंजन लगाकर रोजी-रोटी के जुगाड़ में लग गये हैं।

गंगा से सटे गांवों में ई-बोट से रोजगार के नए साधन पैदा करने की उम्मीद भी जगी थी मगर अब वह टूटती नजर आ रही है। पर्यावरण की रक्षा के साथ देश में डीजल की बचत की दिशा में उठाया गया यह कदम एक साल के भीतर भी साकार नहीं हो सका।

पड़ताल में पता चला है कि जिन 11 नाविकों को पीएम की ओर से ई-बोट दी गयी थी उनमें से अधिकांश ने गंगातट पर चाॄजग प्वाइंट न होने से ई-बोट को डीजल इंजन मोटरबोट में तब्दील कर दिया।

इसके पीछे कारण बताते हुए संदीप नामक नाविक ने कहा कि बैटरी को रिचार्ज करने के लिए घाट पर कोई पॉवर प्वाइंट नहीं है। प्रत्येक ई-बोट को लगभग 200 किलो वजन वाली छह बैटरी के सेट की आवश्यकता होती है और ई-बोट को अस्सी इलाके की गली में स्थित निकटतम सॢवस स्टेशन तक ले जाना मुश्किल है।

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महापौर बोले-समस्या का समाधान करेंगे

बनारस के महापौर रामगोपाल मोहले से जब इस बारे में बात की गयी तो उन्होंने कहा कि बैटरी रीचाॄजग की समस्या काफी दिनों से बनी हुई है। इसका समाधान हम जल्दी ही निकालेंगे। पीएम ने पर्यावरण की रक्षा करने के साथ ही नाविकों की आॢथक स्थिति में सुधार लाने की जो कोशिश शुरू की है उसे हम और आगे ले जाएंगे।

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