धनंजय सिंह
लखनऊ: जहरीली शराब से होने वाली मौतों पर रोक नहीं लग पा रही है। देश के हर राज्य और शहर में अवैध या जहरीली शराब के कारोबारी इंसानी जान से खेल रहे हैं। मौत के बाद सरकारी सिस्टम की नींद टूटती है और दिखावे के लिए सख्त कार्रवाई का ऐलान और मुआवजे बांटकर अपने कत्र्तव्य की इतिश्री कर ली जाती है। शासन का यह चिरस्थायी ट्रेंड है। इसमें किसी तरह का कोई बदलाव नहीं आया है। अगर प्रशासन का रुख कड़ा और ईमानदार होता तो ऐसी घटनाएं दोबारा नहीं होतीं। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में महज एक साल में जहरीली शराब के कारण 150 लोगों की जान जा चुकी है। इसके जिम्मेदारों पर कार्रवाई के नाम पर कुछ छोटी मछलियों की गिरफ्तारी भी हुई मगर नतीजा फिर वही ‘ढाक के तीन पात’।
कोई राष्ट्रीय नीति नहीं
हमारे देश में शराब के उत्पादन-वितरण के लिए कोई राष्ट्रीय नीति नहीं है। सबकुछ राज्यों के जिम्मे छोड़ दिया गया है। इसी छूट का बेजा इस्तेमाल राज्य सरकारें अपने राजनीतिक नफा-नुकसान के मद्देनजर करती हैं। मनमाने फैसलों के चलते न केवल सरकार की आय पर चोट पहुंचती है, वरन अवैध शराब के कारोबारियों की पौ-बारह हो जाती है।
जानकारों का कहना है कि आबकारी नीति को राज्य सरकार का मसला बनाने के बजाय एक राष्ट्रीय नीति बनाई जानी चाहिए। शराब कौन सी बिके और कितने में बिके इसके लिए एक राष्ट्रीय नीति से काफी हद तक ऐसी घटनाओं में कमी आएगी। दूसरा, आबकारी और मद्य निषेध विभाग की विभिन्न इकाइयों को मजबूती प्रदान की जाए। लंबा-चौड़ा अमला सिर्फ दिखाने काम आता है। इनकी चूलें कसी जाएं। स्थानीय खुफिया महकमे को जिम्मेदार बनाया जाए। कुछ कड़वे फैसलों से ही जहरीली शराब से मौतें रुक सकती हैं।
खतरनाक रसायनों का इस्तेमाल
कच्ची शराब बनाने में इथेनॉल, मिथाइल एल्कोहल, ऑक्सीटोसिन के इंजेक्शन और यूरिया जैसे खतरनाक रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है।
कैसे जहरीली हो जाती है जहरीली शराब
बियर, अंग्रेजी और देशी शराब बनाने के लिए इथेनॉल अलकोहल का इस्तेमाल किया जाता है। इथेनॉल अलकोहल शुगर मिल में शीरे से बनता है। इस पर आबकारी विभाग का नियंत्रण होता है। इथेनॉल अलकोहल जब शराब की फैक्ट्री में भेजा जाता है तो आबकारी विभाग की देखरेख में टैंकर से जाता है। टैंकर ड्राइवर चोरी छिपे छोटे-छोटे कैन के माध्यम से इथेनॉल अलकोहल निकाल ले जाते है। इसे थोड़ी मात्रा में मिलाया जाए तो शराब जहरीली नहीं होती है, जबकि इसे अधिक मात्रा में मिला दिया जाए तो यह जहरीली हो जाएगी। तब भी इसके पीने से मरने वालों की संख्या बहुत काम होती है।
सबसे खतरनाक मिथाइल एल्कोहल होता है। मिथाइल एल्कोहल और इथेनॉल अलकोहल देखने में एवं स्वाद एक होता है। इन दोनों में अंतर केवल लेबोरेटरी ही कर सकती है। मिथाइल एल्कोहल पेट्रोलियम पदार्थ होता है। इस पर नियंत्रण सेंट्रल एक्साइज का होता है। इसे भी टैंकर ड्राइवर चोरी छिपे छोटे-छोटे कैन के माध्यम से चुराते हैं। इसे थोड़ी मात्रा में भी मिलाया जाए तो शराब जहरीली हो जाती है।
शराब को अधिक नशीला बनाने के लिए इसमें ऑक्सिटोसिन मिला दिया जाता है जो मौत का कारण बनती है। ऑक्सिटोसिन के बारे में कहा जाता है कि ऑक्सिटोसिन से नपुंसकता और नर्वस सिस्टम से जुड़ी कई तरह की भयंकर बीमारियां हो सकती हैं।
लाखों लीटर अवैध शराब जब्त
राज्य सरकार का दावा है कि पिछले साल 2018 में अवैध शराब के 54963 मामले दर्ज किए गए और 59084 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। 1985055 लीटर अंग्रेजी शराब , 2910473 लीटर देसी शराब तथा 1285503 लीटर लहन जब्त की गयी जबकि देसी शराब की 5068 भट्टियां तोड़ी गयीं।
सजा का प्रावधान
सरकार के लाख प्रयासों के बावजूद इस पर रोक नहीं लग पा रही है। नई सरकार ने अपने गठन के छह महीने बाद ही 107 पुराने आबकारी अधिनियम में बदलाव कर इसे सख्त बनाने की कोशिश की।
इसमें एक नई धारा जोड़ते हुए अवैध शराब से मौत होने या स्थायी अपगंता होने पर आजीवन कारावास या 10 लाख रुपए का जुर्माना या दोनों या मत्युदंड का प्रावधान किया गया। वहीं अधिकारियों के अधिकार बढ़ाए तथा संलिप्तता पाए जाने पर बर्खास्तगी तक का प्रावधान रखा गया है।
हर साल लाखों लीटर नकली शराब का गोरखधंधा
एक अनुमान के अनुसार राजधानी लखनऊ में ही हर साल 20 से 25 हजार लीटर अवैध शराब बरामद की जाती है। हर साल लखनऊ में दो करोड़ लीटर देसी शराब की बिक्री की जाती है जबकि 24 लाख लीटर अंग्रेजी शराब की बिक्री होती है। इसके बाद भी अवैध रूप से निर्मित देसी शराब के शौकीनों की संख्या में कोई कमी नहीं होती है।
आबकारी विभाग से जुड़े लोगों का कहना है कि प्रदेश में लगभग 28 हजार शराब के ठेके होने के बाद भी अधिकतर गरीब लोग गुड, महुवा और चावल तथा यूरिया आदि से बनी शराब कम पैसे में लेकर अपना शौक पूरा करते हैं। ऐसी शराब 20 से 25 रुपए प्रति बोतल मिल जाती है। जबकि सरकारी दुकान से इसे लेने पर ज्यादा कीमत चुकानी पड़ती है। खास बात यह है कि इस शराब में नशा भी ज्यादा तेज होता है। इसलिए गरीब व्यक्ति इसी को ज्यादा तरजीह देते हैं।
बढ़ता जा रहा जहरीली शराब का कारोबार
यूपी में जहरीली शराब का कारोबार बढ़ता जा रहा है। यह शराब सरकारी दुकान पर बेची जाती है। शराब की अवैध बिक्री में आबकारी विभाग से ज्यादा स्थानीय पुलिस दोषी है। स्थानीय पुलिस के पास संसाधन और स्थानीय स्तर पर नेटवर्क है। ग्रामीण अंचलो में कच्ची शराब की भट्टियां धधक रही हैं। इसकी पूरी जानकारी स्थानीय पुलिस को रहती है। जबकि आबकारी विभाग संसाधनों की कमी रोना रोता रहता है। वैसे कई बार आबकारी विभाग की टीम कच्ची शराब की भट्टियां पर कार्रवाई करके आती है तो स्थानीय पुलिस के माध्यम से वे फिर गुलजार हो जाती हैं। इसके एवज में स्थानीय पुलिस मोटी रकम वसूल करती है। इसे पाउच में भरकर ग्रामीण क्षेत्रों में सप्लाई किया जाता है। इस बात को नहीं माना जा सकता कि आबकारी और पुलिस विभाग को इसकी भनक नहीं होती। आबकारी विभाग के सिपाही भी अवैध शराब की बिक्री में संलिप्त रहते है। पुलिस विभाग किसी घटना पर अपने सिपाहियों पर दिखावे की कार्रवाई करता है। दो माह में दुबारा थाने में तैनाती कर दी जाती है, जबकि आबकारी विभाग अपने सिपाहियों पर कार्रवाई करता है तो उन्हें मुख्यालय में अटैच कर दिया जाता है। विभागीय जांच चलने तक उन्हें तैनाती नहीं दी जाती।