लोकसभा चुनाव 2019: यूपी में डीजीपी से लेकर सिपाही तक पहन चुके हैं खादी

राजनीतिक दृष्टि से देश के इस सबसे महत्वपूर्ण राज्य में हर स्तर के पुलिस अधिकारी राजनीतिक झंडा थाम चुकें हैं चाहे वह सिपाही हो अथवा अधिकारी। यह बात अलग है कि इसमें से कुछ लोग सफल हुए तो कुछ असफल रहे।

Update: 2019-04-20 10:48 GMT

श्रीधर अग्निहोत्री

लखनऊ: कहा जाता है कि राजनीति एक शौक है जिसके बाहर रहकर लोग उसकी आलोचना करते हैं पर मन के अंदर राजनीति में आने की तमन्ना अधिकतर लोगों को रहती हैं। राजनीतिक दृष्टि से देश के इस सबसे महत्वपूर्ण राज्य में हर स्तर के पुलिस अधिकारी राजनीतिक झंडा थाम चुकें हैं चाहे वह सिपाही हो अथवा अधिकारी। यह बात अलग है कि इसमें से कुछ लोग सफल हुए तो कुछ असफल रहे।

इनमें आईपीएस से लेकर पुलिस सिपाही तक शामिल है। कुछ ने तो खादी धारण करने के लिए अपनी नौकरी तक छोड दी और खादी धारण कर जनसेवा में लग गये। कुछ को खादी भा गयी और कुछ ने इससे तौबा कर ली। अब चाहे वह आगरा से चुनाव लडने वाले पूर्व सिपाही रहे एसपी सिंह बघेल हों अथवा पूर्व पुलिस महानिदेशक यशपाल सिंह हों।

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पिछले विधानसभा चुनाव में भी प्रदेश के एक और पुलिस अधिकारी डीआईजी स्टाम्प एवं रजिस्ट्रेशन रामलखन पासी ने खाकी उतारकर अब खादी धारण कर ली। जबकि उनके रिटायरमेंट के अभी छह साल बाकी थे। लेकिन उन्होंने रिटायर होने के पहले ही बसपा का काम देखने का फैसला कर लिया।

प्रदेश की राजनीति में रामलखन पासी अकेले पुलिस अधिकारी नहीं हैं जिन्होंने यह रास्ता अपनाया हो उनके पहले न जाने कितने पुलिस अधिकारियों ने अलग अलग दलों में जाकर अपनी महत्वपूर्ण राजनीतिक भूमिका निभाई। पूर्व डीजीपी यशपाल सिंह भी पीस पार्टी में शामिल होकर राष्ट्रीय प्रवक्ता की भूमिका बखूबी निभा चुके है।

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमन्त्री मुलायम सिंह यादव की सुरक्षा में तैनात रहे सब-इंस्पेक्टर एस.पी सिंह बघेल ने भी नौकरी छोड़कर सपा का दामन थामा और बाद में लोकसभा के दो बार सांसद चुने गये। इसके बाद भाजपा में शामिल होकर वह टूंडला विधानसभा से विधायक चुने गए और फिर प्रदेश सरकार में मंत्री बने। इस बार भी वह भाजपा के टिकट पर आगरा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे है।

जौनपुर की मछलीशहर लोकसभा सीट से सांसद चुने गये उमाकान्त यादव भी यूपी पुलिस के सिपाही थे। सपा के टिकट पर विधान सभा का चुनाव जीतने के बाद बसपा ने उन्हें मछलीशहर से लोकसभा का टिकट दिया और वह लोकसभा पहुंच गये।

पूर्व प्रधानमन्त्री राजीव गांधी की सुरक्षा टीम में रहे कमांडो कमल किशोर ने 2009 में बहराइच लोकसभा सीट में किस्मत आजमाई, किस्मत ने उनका साथ दिया और वह कांग्रेस के टिकट पर वहां से सांसद चुन लिए गये। पूर्व डीआईजी सीएम प्रसाद ने भी सेवानिवृत्ति के बाद राजनीति में कदम रखा और बसपा से विधायक बनेे।

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अयोध्या काण्ड के समय फैजाबाद के एसएसपी रहे आईपीएस अधिकारी डीबी राय सुल्तानपुर से भाजपा के टिकट पर सांसद बन गए। पूर्व डीआईजी और आईपीएस अहमद हसन ने रिटायर होने के बाद राजनीति में कदम रखा। समाजवादी पार्टी ने उन्हें विधान परिषद में जगह दी। मुलायम सिंह सरकार में मन्त्री रहे।

इस समय वह विधान परिषद के नेता विरोधी दल के पद की बखूबी भूमिका निभा रहे हैं। रिटायर्ड आईजी मंजूर अहमद लखनऊ से मेयर का चुनाव का चुनाव हार चुके हैं। हालांकि उन्हें अपेक्षा से अधिक वोट मिलें जिसके बाद उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को देखते हुए कांग्रेस ने उन्हें लखनऊ मध्य विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतार दिया लेकिन वह चुनाव नहीं जीत सकें।

आईपीएस महेन्द्र सिंह यादव रिटायर होने के बाद बुलन्दशहर से भाजपा के टिकट पर चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंचने के साथ ही प्रदेश सरकार के मंत्री तक बने।

इसी तरह डिप्टी एसपी शैलेन्द्र सिंह एसटीएफ में तैनात थे। उन्होंने भी नौकरी से इस्तीफा देकर राजनीति का रास्त चुना और लोकसभा चुनाव कांग्रेस के टिकट पर चन्दौली लोकसभा सीट से लड़े। पुलिस की नौकरी छोडकर राजनीति का दामन थामने वाले पुलिस अधिकारी रामलखन पासी ने भी यूपी विधानसभा चुनाव के पहले बसपा में शामिल होकर अपनी किस्मत आजमाई

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