यूपी: बेहाल है जिला हॉस्पिटल्स का हाल, 1 बेड पर 3-3 पेशेंट्स का होता है ट्रीटमेंट

Update:2017-08-22 15:43 IST
सुल्तानपुर: बेहाल है डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल का हाल, 1 बेड पर 3-3 पेशेंट्स का होता है ट्रीटमेंट

सुल्तानपुर: गोरखपुर में 50 से ज़्यादा बच्चों की मौत के बाद सरकार चौतरफा घिर गई थी, हर कोई सरकार पर उंगली उठा रहा था। बावजूद इसके यहां जिला अस्पताल के अधिकारी और कर्मचारी सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं। आलम ये है कि डाक्टरों की लापरवाही के चलते हार्ट अटैक से पेशेंट की मौत होती है और अटेंडेंट को न तो स्ट्रेचर मिलता है और न डेड बॉडी घर ले जाने के लिए एम्बुलेंस। यही नहीं पेशेंट को अस्पताल परिसर के अंदर होने के नाम पर 20 का टोकन लिया जा रहा है और इमरजेंसी रूम में एक ही टेबल पर 3-3 पेशेंटों का ट्रीटमेंट चल रहा है।

घंटों बाडी लेकर वाहन का इंतजार करते रहे अटेंडेंट

मंगलवार को सुल्तानपुर के डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल का जो नज़ारा कैमरे में कैद हुआ, उसने हॉस्पिटल प्रशासन की पोल के साथ गोरखपुर ट्रेजडी की झलक भी दिखा दिया। हॉस्पिटल के एमरजेंसी रूम के बाहर कोतवाली नगर के अंकारीपुर निवासी मोतीलाल अपने मरे हुए पेशेंट को लेकर इसलिए घंटों से बैठा था कि उसे डेड बॉडी ले जाने के लिए सवारी का इंतजाम नहीं हो पा रहा था।

मोतीलाल को इस परेशानी का सामना तब करना पड़ रहा है, जब सरकार ने पेशेंट क्या, डेड बाडी ले जाने के लिए एंबुलेंस की व्यवस्था कर रखी है। मगर ये मुमकिन तब है जब ज़िम्मेदार सुध लें, पर वो तो एसी चैंबर में बैठकर मौज काटने में जुटे होते हैं।

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20 रुपए देना पड़ रहा शुल्क

हॉस्पिटल के एमरजेंसी रूम का आलम ये है कि कुल पांच बेड हैं, वायरल फीवर आदि का मौसम है। ऐसे में एक ही बेड पर तीन-तीन पेशेंटों का ट्रीटमेंट हो रहा है। पेशेंट को रिलीफ हुई हो या नहीं इससे डॉक्टर को कोई सरोकार नहीं है, अगर सीरियस या एक्सीडेंटल केस आ गए तो इन पेशेंटों को बेड छोड़ना ही है। यही नहीं इमरजेंसी के बाहर कौन ट्रीटमेंट के अभाव में पड़ा है, उसको देखने वाला कोई नहीं है। पेशेंट के अटेंडेंट बताते हैं कि अब तो पेशेंट की इंट्री के लिए 20 रुपए शुल्क देना पड़ रहा है।

और बेंच पर हो रहा ट्रीटमेंट

हॉस्पिटल कैंपस के अंदर कैमरे के फ्लैश के चमकते ही कैंपस में हड़कम्प मच गया। सफाईकर्मियों ने हॉस्पिटल कैंपस को साफ करने के लिए हाथों में झाडू अवश्य उठा लिए। लेकिन अव्यवस्था का आलम ये के पेशेंट को वार्ड में बेड नसीब नहीं है, किसी का ट्रीटमेंट ज़मीन पर लेट कर हो रहा है तो किसी के फ्रैक्चर हाथ का ट्रीटमेंट बेंज पर लेटकर। और डॉक्टर अपनी ड्यूटी के बजाए टाइम पास करने लगे हुए थे। हैरत तो इस बात पर है कि जब प्रभारी मंत्री या सरकार के दूसरे मंत्रियों का आगमन होता है, तब हॉस्पिटल के डाक्टरों का क्या कहना? सभी बिल्कुल सही ढंग से कार्य करते हुए दिखाई पड़ते हैं।

CMS बोले संज्ञान में नहीं मामला

वहीं जब इस पूरे मामले पर प्रभारी CMS डा. बी.बी. सिंह से बातचीत किया गया तो उन्होंने रटा रटाया जबाब दिया, मामला मेरे संज्ञान में नही है अगर इसमें कोई दोषी पाया जाएगा तो उस पर कार्यवाही की जाएगी। आमतौर से लापरवाह अधिकारी यही जवाब देते हैं। सवाल यहीं पर खड़ा होता है कि क्या मीडिया के पहल करने पर ही चिकित्सा अधिकारी की आंख खुलेगी और वो सुध लेंगे?

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