वाराणसी: आज विश्व धरोहर दिवस है। मौका है अपने धरोहरों के बारे में विचार करने का। उनके बारे में सोचने का कि क्या जो धरोहर हमें विरासत में मिली है, हम उनका ख्याल रख पा रहे हैं या नहीं। काशी को देश की सांस्कृतिक राजधानी कहने के पीछे यहां के घाट हैं जिनके सहारे काशी की गलियां विकसित हुईं और इन्ही गलियों में विभिन्न संस्कृतियां जन्मीं और आगे बढीं।
काशी को अन्य शहरों से अलग करने वाले घाट आज किस स्थिति में हैं, ये जानने के लिए हम पहुंचे विभिन्न घाटों पर ताकि उनकी जमीनी सच्चाई जान सकें। घाटों का आलम ये है कि गंगा के पानी से घाट की सीढ़ियां खोखली हो रही हैं, लेकिन उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। इन घाटों पर लोग अपने मकसद से आते है और पूरा होने के बाद चले जाते है।
प्रो.यूके चौधरी ने बताया कि ये घाट पिछले दस सालों से लगातार खोखले हो रहे हैं, लेकिन प्रशासन का कोई ध्यान नहीं है क्योंकि हर किसी को सिर्फ गंगा से हासिल करना है। उसे बचाने की कोशिश कोई नहीं करना चाहता।
-उनका कहना है कि गंगा का जल स्तर जितना कम होगा, गंगा के भूजल की तीव्रता बढ़ेगी।
-उसी अनुपात में घाट के नीचे की मिट्टी में भी तेज कटान होगा।
-दूसरा कारण है कछुवा सेंचुरी के कारण घाट के दूसरे किनारे पर बालू या मिट्टी जितनी जमा होती जाएगी।
-उसी अनुपात में बालू के दूसरे साइड में पानी की गहराई होती जाएगी।
-जितनी गहराई बढ़ेगी, उतना ही भू जल का रिसाव बढेगा, घाट के नीचे की मिट्टी कटेगी व घाट खोखला होगा।
-प्रो.चौधरी के मुताबिक कछुवा सेंचुरी को लागू रखे, लेकिन घाट के दूसरे किनारे पर बढ़ रहे बालू के क्षेत्रफल और उसकी ऊंचाई को कम करें।
-वरना घाटों का अस्तित्व खत्म हो जाएगा।
-प्रो.चौधरी के मुताबिक गंगा का आधारभूत जड़ ग्राउंड वाटर होता है।
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निषाद सेवा समिति के अध्यक्ष विनोद निषाद कहते हैं कि घाट पर पीएम या कोई बड़ा आदमी आता है।-तो घाटों की इन कमियों को ठीक कराने के बजाय नगर निगम और जिला प्रशासन द्वारा छुपा दिया जाता है।
-घाट की ये हालत पिछले दस से पंद्रह सालों में धीरे-धीरे बद से बद्तर होती जा रही है।
-मेयर और डीएम एक कार्यक्रम में व्यस्त हैं, इसलिए अभी उनका वर्जन नहीं मिल पाया है।