कुंभ 2019 : प्रयागराज में संस्कृति का संगम,परंपरा और आधुनिकता का गवाह कुंभ मेला

'कुंभ' के मनोहारी दृश्य गंगा, यमुना और सरस्वती का पावन सुरम्य त्रिवेणी संगम आस्था का सैलाब मानस कुंभ को मथने लगते हैं क्योंकि आध्यात्मिक जगत में ये अमृत की बूंदें हमारे घट में भी हैं। सत संगति, सच्चे साधु, संत और गुरुकृपा हमें अमृत का ज्ञान करा देती है।

Update:2019-01-15 16:15 IST

प्रयागराज: 'कुंभ' के मनोहारी दृश्य गंगा, यमुना और सरस्वती का पावन सुरम्य त्रिवेणी संगम आस्था का सैलाब मानस कुंभ को मथने लगते हैं क्योंकि आध्यात्मिक जगत में ये अमृत की बूंदें हमारे घट में भी हैं। सत संगति, सच्चे साधु, संत और गुरुकृपा हमें अमृत का ज्ञान करा देती है। और कुंभ में स्नान ध्यान भजन पूजन और भ्रमण का सार है। यही कारण है कि कुंभ में आस्था की डुबकी लगाने के लिए देश-विदेश से लोग यहां आ रहे हैं। प्रयागराज में कुंभ को लेकर संस्कृति का एक अलग ही संगम देखने को मिलता है।

इस बार परंपरा और आधुनिकता के संगम का गवाह बनेगा कुंभ मेला

भारत का विश्व प्रसिद्ध कुंभ मेला हमेशा से लोगों का ध्यान आकर्षित करने में सफल रहा है। यह इस बात को दर्शाता है कि हमारी परम्पराएं और संस्कृति कभी आसानी से खत्म नहीं होतीं बल्कि ये समय के साथ खुद को नया कर लेती हैं और हमारे जीवन में शामिल हो जाती हैं।

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कुंभ भी आधुनिकता का अद्भुत संगम है। सांस्कृतिक अमृत तत्व की तलाश में यहां आने वाले युवाओं को लुभाने के लिए सेल्फी प्वाइंट का भी आयोजन है। अगर किसी तरह की कोई इमरजेंसी आ जाती है तो उससे निपटने के लिए वाटर और एयर एंबुलेंस जैसे इंतजाम भी किए गए हैं।

उत्तर प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ नहीं चाहते थे कि कुंभ में किसी तरह की कोई कमी आए। इसके लिए उन्होंने दिन रात अथक परिश्रम करके एक ऐसी व्यवस्था तैयार की जिससे लोग कुंभ को याद करें। इस बार कुंभ मेले में अंतराष्ट्रीय स्तर के बैलेट कलाकार खास मेहमान हैं जोकि रामलीला का हिस्सा होंगे। यह रामलीला 55 दिनों तक चलने वाली है। यही नहीं, 'संस्कृत ग्राम' का आयोजन इस बार 10 एकड़ क्षेत्र में किया जा रहा है। 'संस्कृत ग्राम' का मकसद देश दुनिया को कुंभ की ऐतिहासिकता से रूबरू करने का है। इसके लिए सभी इंतजाम पुख्ता कर लिए गए हैं क्योंकि कुंभ 15 जनवरी से शुरू हो गया है।

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दुनियाभर से कलाकार आकर देंगे प्रस्तुतियां

कुंभ 2019 की सबसे खास बात ये है कि इस बार विदेश से कलाकार यहां आकर प्रस्तुतियां देने वाले हैं। जो कि लोगों को एक अलग ही किस्म का मनोरंजन देगा।

196 देशों के एनआरआई पर होंगे मेहमान

कुंभ पर उत्तर प्रदेश की सरकार ने 3,000 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। इस बार योगी सरकार ने कुंभ को शानदार बनाने के लिए 196 देशों से NRI भी आमंत्रित किया है।

रामलीला के साथ कृष्ण लीला भी

वहीं, कुंभ में अपनी प्रस्तुतियां देने के लिए दुनियाभर से आने वाले कलाकारों की बात करें तो रामलीला और कृष्णलीला में भाग लेने के लिए कई विदेशी कलाकारों तो आमंत्रित किया गया है। बता दें कि रामलीला और कृष्णलीला के लिए मंच तैयार कर दिए गए हैं। यह दोनों कार्यक्रम 55 दिनों तक चलने वाले हैं।

धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व है कुंभ

एक अवसर के तौर पर मशहूर कुंभ महोत्सव का रूप ले चुका है। अब काफी बड़े पैमाने पर कुंभ का आयोजन किया जाता है। पूरी दुनिया पर एक छाप छोड़ने वाला कुंभ एक धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व है, जोकि सिर्फ एक धर्म और संस्कृति के बारे में ही विचार करता है और जिसकी संस्कृति विष्णुपदी गंगा है।

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पौराणिक सीमा तक फैला कुंभ क्षेत्र

12वीं सदी से कुंभ एक बड़े पर्व के रूप में उभरकर सामने आया लेकिन इससे पहले कुंभ का आकार छोटा हुआ करता था। अब यह पर्व इतना विकसित हो गया है कि इसका फैलाव परेड ग्राउंड से त्रिवेणी बांध तक, दारागंज से नागवासुकी की सीमा तक, झूंसी (प्रतिष्ठान्पुरी) से (अलर्कपुरी) अरैल तक हो गया है।

पाप नाशी कुंभ

वैराग्य और भक्ति के पर्व के नाम से मशहूर कुंभ लोगों की आस्था के लिए दुनियाभर में जाना-जाता है, जिसका आयोजन संगम की ठंडी रेत पर किया जाता है। यहां आपको ईंटों और पत्थरों मिलना मुश्किल है। कुंभ एक ऐसा पर्व है, जो लोगों के पवित्र मन और पुण्य की भावना को दर्शाता है। यहां आने से लोगों के पापों का अंत हो जाता है।

ज्ञान वैराग्य और भक्ति की गंगा

कुंभ एक ऐसा पर्व है, जहां आपको गंगा, जमुना और सरस्वती का संगम तो देखने को मिलेगा ही साथ में आप यहां श्रीमद् भागवत ज्ञान वैराग्य का संगम भी देख पाएंगे। कहते हैं कि गंगा में नहाने के बाद तो सिर्फ पुण्य की प्राप्ति होती है लेकिन भागवत कथा श्रवण करने से सारे तीर्थों का फल मिलता है।

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विभिन्न धर्मों के धर्म मुखियाओं का आगमन

कुंभ में विभिन्न धर्मों के धर्म मुखियाओं का आगमन पहले ही हो चुका है। प्रयागराज में मकर संक्रांति (मंगलवार) पर कुंभ का पहला शाही स्‍नान आरंभ हो चुका है। शाही स्नान में सबसे पहले अखाड़ों के साधु स्नान करते हैं। सूर्योदय के साथ जूना अखाड़ा, अटल, महानिर्वाणी और आह्वान अखाडों ने शाही स्नान किया। ब्रह्म मूहर्त में ढोल नगाड़ों के नागा साधुओं और संतों की टोली स्नान के लिए निकली।

संगम की ठंडी रेत पर टेंटों में बसा लघु भारत

कुंभ में संगम की ठंडी रेत पर टेंटों से बसा शहर दूर से ही लोगों को आकर्षित कर रहा है। रात में जब सब जगह रोशनी हो जाती है तो इसकी छटा अनूठी ही देखते बनती है। और कुंभ बन जाता है। आस्था, विश्वास, सौहार्द और संस्कृतियों के मिलन का पर्व। ज्ञान, चेतना और उसका परस्पर मंथन का पर्व, जो आदि काल से ही हिंदू धर्मावलम्बियों की जागृत चेतना को बिना किसी आमंत्रण के खींचकर ले आता है।

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मेला क्षेत्र में कलाग्राम

कुंभ में कलाग्राम का आयोजन भी किया गया है, जिसका उद्घाटन उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने 11 जनवरी को किया। कलाग्राम में विभिन्न प्रदेशों ने अपने-अपने पंडाल सजाए हुए हैं। यहां लोगों को एक से एक कला देखने को मिलेगी।

चलो मन गंगा यमुना तीर

कुंभ न सिर्फ धार्मिक आस्था का प्रतीक है बल्कि देश की तमान संस्कृतियों का भी संगम देखने को मिलता है। राज्यपाल राम नाईक ने 11 जनवरी को कुंभ में कलाग्राम का उद्घाटन किया, जिसमें 'चलो मन गंगा यमुना तीर' कार्यक्रम का भी शुभारंभ किया गया।

इस दौरान अलग-अलग राज्यों के कलाकारों ने अपने-अपने सांस्कृतिक कार्यक्रम की सामूहिक प्रस्तुति दी। वैसे इस बार कुंभ के कलाग्राम परिसर में देश के सात प्रमुख सांस्कृतिक केंद्रों का संगम देखने को मिलेगा। यह नजारा लोगों का ध्यान आकर्षित करने वाला है।

इस बार कुंभ में दो पंडाल लगाए गए हैं, जोकि 'संस्कृति कुंभ' और 'कला ग्राम' हैं। वहीं, उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के निदेशक इंद्रजीत ग्रोवर ने 'चलो मन गंगा यमुना तीर' को लेकर बताया कि कुंभ 2019 में 'चलो मन गंगा यमुना तीर' के नाम को लेकर थोड़ा परिवर्तन किया गया है। अब से इसका नाम संस्कृति कुंभ हो गया है।

लोकसभा चुनाव को देखते हुए योगी सरकार ने इस बार कुंभ का भव्य आयोजन करने की सोची है। ऐसे में एनआरआइ शिविर के लिए मेला क्षेत्र में कला ग्राम की स्थापना की गई है। इसके पीछे का मकसद श्रद्धालुओं को देश की संस्कृतियों का दर्शन कराने का है।

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इतिहास, अध्यात्म से संस्कृति तक

कुंभ अपने आपमें इतिहास है। यहां साधु-संतों के पंडालों से उठती भजन कीर्तन की मधुर ध्वनियों से लेकर विद्वानों के प्रवचन तक सब सुनाई देंगे। भारतीयों के साथ विदेशी भी हिन्दुस्तानी पोशाकों में राम और कृष्ण की भक्ति में लीन नजर आएंगे।

कुंभ सृष्टि में सभी संस्कृतियों का संगम है। कुंभ न सिर्फ आध्यत्मिक चेतना है बल्कि यह मानवता का प्रवाह भी है। कुंभ नदियां, वनों और ऋषि संस्कृति का प्रवाह है।

कुंभ पर्व किसी इतिहास निर्माण के दृष्टिकोण से नहीं शुरू हुआ था लेकिन इसका इतिहास समय द्वारा स्वयं ही बना दिया गया।

वैसे भी धार्मिक परम्पराएं हमेशा आस्था और विश्वास के आधार पर टिकती हैं न कि इतिहास पर। यह कहा जा सकता है कि कुंभ जैसा विशालतम् मेला संस्कृतियों को एक सूत्र में बांधे रखने के लिए ही आयोजित होता है।

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