Maha Kumbh 2025: महाकुम्भ में हुई जंगम साधुओं की एंट्री, जूना अखाड़े में सिंगिंग साधु का मिला है दर्जा
Maha Kumbh 2025: महाकुंभ में रंग बिरंगी पोशाक पहने गीत गाते कई साधु अपनी ही धुन में नजर आ रहे हैं । ये कहीं रुकते नहीं हैं बस एक ही अखाड़े के विभिन्न शिविरों में गीत गाते रहते हैं।;
Maha Kumbh 2025: प्रयागराज में आस्था के महाकुम्भ में भक्ति और साधना के कई रूप नजर आ रहे हैं। कोई साधना में धूनी रमाए है तो कोई अपने इष्ट का कीर्तन कर रहा है । साधुओं का एक समूह ऐसा भी है जो सिर्फ जूना अखाड़े की महिमा का गुणगान घूम घूम कर अपने गीतों से कर रहा है। ये अनोखे साधु हैं हरियाणा से आए जंगम साधु।
सन्यासी नहीं जूना अखाड़े के चारण हैं जंगम साधु
महाकुंभ में रंग बिरंगी पोशाक पहने गीत गाते कई साधु अपनी ही धुन में नजर आ रहे हैं । ये कहीं रुकते नहीं हैं बस एक ही अखाड़े के विभिन्न शिविरों में गीत गाते रहते हैं। ये नॉन स्टॉप गीत गाते रहते हैं लेकिन किसी का मनोरंजन करना इनका मकसद नहीं है। ये साधु भगवान शिव और उनके उपासक श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े की गाथा के गीत निरंतर गाते रहते हैं। ये बस सुर साधक हैं जो अपने इष्ट और उसके उपासक अखाड़े की महिमा का गान करते हैं। ऐसे में इन्हें अखाड़ों के चारण कहा जाता है।
शंकर के क्रोध की उत्पति है जंगम साधु
इन जंगम साधुओं की उत्पति भी काफी रोचक है । धार्मिक मान्यता है की भगवान् शिव और पार्वती की शादी के बाद जब भगवान शिव ने भगवान विष्णु और ब्रम्हा को दान देना चाहा तो उन्होंने दान लेने से मना कर दिया जिससे नाराज होकर भगवान शिव ने अपनी जंघा को क्रोध में पीटकर उससे साधुओं के एक सम्प्रदाय को पैदा किया जिसका नाम दिया गया जंगम साधु अर्थात जांघ से जन्मा साधु। यही जंगम साधु आज भी इसी वजह से सन्यासी अखाड़ो के पास जाकर शिव की कथा सुनाते है और उनसे मिले दान से अपनी जीविका चलाते है। किसी और अखाड़े में ये कदम तक नहीं रखते।
जंगम का मेकअप है विहंगम
भगवान शंकर के अभिशाप के बाद खुद शिव द्वारा उत्पन्न किये गए ये जंगम साधु वैराग्य धारण नहीं करते। सर पर भगवान् शिव का नाम और कानो में पार्वती के कुंडल और बिंदी और मोर पंख के श्रंगार से सजे शिवजी के नाम की अलख जगा रहे इन शिव भक्तो और अखाड़ो के बीच अगर एक समानता यह है की दोनो शिव के उपासक है तो दोनों में फर्क यह है की यह जंगम शिव भक्त अखाड़ो को शिव जी की कथा सुनाते हैं अखाड़ो की तरह उपासना पद्यति को नहीं अपनाते । इसलिए ये भगवा वस्त्र न पहनकर बहु रंगी वस्त्र पहनते हैं।