आज दुनिया से सीधे जुड़ेगा 'बुद्ध नगरी' कुशीनगर, जानें देश के अन्य बौद्ध तीर्थस्थलों से कनेक्टिविटी का क्या है रोडमैप
पीएम नरेंद्र मोदी के आज कुशीनगर एयरपोर्ट का उद्घाटन करेंगें, जिसके कारण घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बौद्ध तीर्थयात्रियों के लिए भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण स्थल की यात्रा करना सुलभ और सुविधाजनक हो जाएगा।
Lucknow: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के बुधवार 20 अक्टूबर को कुशीनगर एयरपोर्ट (kushinagar international airport) का उद्घाटन करने के साथ ही उनके महत्वाकांक्षी बौद्ध तीर्थस्थलों को दुनिया भर से जोड़ने की कोशिशों को नई उड़ान मिलेगी। इस दौरान प्रधानमंत्री कुशीनगर महापरिनिर्वाण मंदिर में अभिधम्म दिवस पर आयोजित एक समारोह में भी हिस्सा लेंगे।
बता दें कि कुशीनगर एक अंतरराष्ट्रीय बौद्ध तीर्थस्थल है। यहां भगवान गौतम बुद्ध का महापरिनिर्वाण हुआ था। कुशीनगर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के उद्घाटन के मौके पर श्रीलंका की राजधानी कोलंबो से आने वाला पहला विमान उतरेगा। इस विमान से 100 से अधिक बौद्ध भिक्षुओं तथा गणमान्य हस्तियों का एक श्रीलंकाई प्रतिनिधिमंडल कुशीनगर पहुंचेगा। प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के मुताबिक इस प्रतिनिधिमंडल में श्रीलंका में बौद्ध धर्म के सभी चार निकातों असगिरिया, अमरपुरा, रामन्या और मालवत्ता के अनुनायक (उप प्रमुख) भी शामिल होंगे। इसके अलावा श्रीलंका सरकार के कैबिनेट मंत्री सहित अन्य मंत्री होंगे।
बुद्ध के महापरिनिर्वाण स्थल की यात्रा सुलभ
कुशीनगर अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट से विमान सेवाएं बहाल होते ही यहां घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बौद्ध तीर्थयात्रियों के लिए भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण स्थल की यात्रा करना सुलभ और सुविधाजनक हो जाएगा। इस हवाई अड्डे का निर्माण दुनिया को इस बौद्ध तीर्थस्थल के जोड़ने की कोशिश के तहत ही किया गया है। कुशीनगर हवाई अड्डा यूपी और बिहार के सीमावर्ती जिलों के निवासियों लिए लाभकारी होगा। धीरे-धीरे इस क्षेत्र में निवेश और रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।
बुद्ध की लेटी हुई मुद्रा वाली मूर्ति के दर्शन
पीएम मोदी महापरिनिर्वाण मंदिर जाकर भगवान बुद्ध की लेटी हुई मुद्रा वाली मूर्ति के दर्शन करेंगे और बोधि वृक्ष का पौधा लगाएंगे। वो 'अभिधम्म' दिवस के मौके पर आयोजित समारोह में भी हिस्सा लेंगे। यह दिवस बौद्ध भिक्षुओं के लिए तीन महीने की वर्षा की वापसी 'वर्षावास' या वास का प्रतीक है। इस दौरान बौद्ध भिक्षु विहार और मठ में एक स्थान पर रहते हैं। इस कार्यक्रम में श्रीलंका, थाईलैंड, म्यांमार, दक्षिण कोरिया, नेपाल, भूटान और कम्बोडिया के जाने-माने बौद्ध भिक्षु सहित विभिन्न देशों के राजदूत शामिल होंगे।
अब तक बोधगया और लखनऊ तक होती थी उड़ान
दरअसल, कुशीनगर अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना 'उड़ान' के अंतर्गत आता है। जिसका मकसद यूपी में 'बौद्ध सर्किट' के पर्यटन विकास की राह खोलना है। बौद्ध सर्किट के कुशीनगर और श्रावस्ती तक उड़ान के लिए टर्बो एविएशन व एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के मध्य एमओयू साइन हुआ है। बौद्ध धर्म के ये दोनों महत्वपूर्ण स्थलों पर बोधगया और लखनऊ से सीधी फ्लाइट होगी। बता दे कि यूपी के बौद्ध सर्किट में सर्वाधिक भागीदारी वाले देश थाईलैंड से सैलानियों की ज्यादातर उड़ानें बोधगया और लखनऊ तक होती थीं। कुशीनगर तक सीधी हवाई सेवा शुरू होने से अब विदेशी सैलानियों को बार-बार भटकना नहीं पड़ेगा। साथ ही, यहां के पर्यटन उद्योग को रफ्तार भी मिलेगी।
अब तक सड़क मार्ग ही था एकमात्र जरिया
कुशीनगर और श्रावस्ती में बौद्ध धर्मावलम्बियों वाले देश थाईलैंड, म्यांमार, कोरिया, जापान, श्रीलंका, चीन, भूटान आदि देशों के आलावा यूरोप तथा अमेरिका, मलेशिया से भी सैलानी आते हैं। एक आंकड़े के मुताबिक, विदेशी सैलानियों का वार्षिक आंकड़ा 80 हजार से एक लाख के बीच है, जबकि देशी सैलानियों का आंकड़ा 9-10 लाख के करीब है। वर्तमान में यहां आने का एकमात्र जरिया सड़क मार्ग ही रहा है। ऐसे में एयर कनेक्टिविटी मिलने से सैलानियों की संख्या में इजाफा होना तय है।
कार्गो टर्मिनल निर्माण की प्रक्रिया जल्द
बोधगया में बौद्ध धर्म के अनुयायियों और विदेशी सैलानियों का आना-जाना यहां स्थित एयरपोर्ट से होता है। बोध गया के लिए नई दिल्ली और वाराणसी के रास्ते हवाई यात्रा की जाती है। लेकिन अब केंद्रीय मंत्रालय इस हवाई पट्टी का और विकास करना चाहता है। पर उनके सामने कुछ परेशानियां हैं। इस संबंध में कुछ समय पहले एयरपोर्ट निदेशक ने बताया था कि भूमि अधिग्रहण नहीं होने से हवाई अड्डा का विस्तार नहीं हो पा रहा है। गया में कार्गो टर्मिनल निर्माण की प्रक्रिया शीघ्र शुरू होने की संभावना है। एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने इस प्रोजेक्ट को स्वीकृति दे दी है। इसका प्लान तैयार किया जा रहा है।
बौद्ध स्थलों की कनेक्टिविटी सुधारने पर जोर
सरकार का मुख्य ध्यान बौद्ध पर्यटन स्थलों की कनेक्टिविटी सुधारने पर है। ऐसे में हवाई, सड़क और रेल तीनों मार्गों को दुरुस्त करने की प्रक्रिया तेज कर दी गई है। दरअसल, उत्तर प्रदेश और बिहार के बौद्ध पर्यटन स्थल फिलहाल सड़क और रेल मार्ग से जुड़े हुए हैं। लेकिन इन्हें और बेहतर किया जा रहा है। इसके अलावा बौद्ध सर्किट स्पेशल ट्रेन के अलावा गया से नई दिल्ली, कोलकाता और वाराणसी आदि के लिए 88 जोड़ी ट्रेनें शुरू की गई हैं। इनके अलावा प्रयागराज, वाराणसी, पटना, लखनऊ, गोरखपुर और गया रेलवे स्टेशनों पर विशेष सुविधाएं भी बढ़ाई जा रही हैं।
यह है सरकार की मंशा
बौद्ध सर्किट की बात करें, तो हर साल सिर्फ बिहार के बोधगया में ही करीब साढ़े छह लाख टूरिस्ट पहुंचते हैं। जबकि देश भर के बौद्ध स्थलों में आने वालों का आंकड़ा करीब 40 से 50 लाख के आसपास है। कोरोना काल में इस आंकड़े में काफी गिरावट देखने को जरूर मिली है। लेकिन अब केंद्र सरकार का फोकस इस संख्या को और ज्यादा बढ़ाने पर है। ऐसे में केंद्र सरकार लगातार ढांचागत विकास पर जोर दे रही है। साथ ही अन्य सुविधाओं पर अपना ध्यान बढ़ा रही है। इसके पीछे बड़ा मकसद धार्मिक स्थलों के जरिए पर्यटन को बढ़ावा देना और सरकारी खजाने को भरना है।
बुद्ध से जुड़ी क्या है मान्यता
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान बुद्ध ने यहां अपने अंतिम शिष्य आनंद को उपदेश दिया था। यहां के महापरिनिर्वाण मंदिर स्थित बुद्ध की पांचवीं सदी की शयन मुद्रा वाली प्रतिमा सैलानियों के आकर्षण का केंद्र है। यह प्रतिमा भिन्न-भिन्न दिशाओं से भिन्न-भिन्न मुद्राओं में दिखाई देती है। कहा जाता है कि श्रावस्ती में भगवान बुद्ध ने तीन चौथाई उपदेश दिए थे। श्रावस्ती में बुद्ध ने 'जेतवन विहार' की स्थापना की थी। माना जाता है कि यहां के धर्म सभा मंडप से अपने तीन चौथाई उपदेश दिए। पूरी दुनिया में विशिष्ट महत्व रखने वाले श्रावस्ती में जेतवन सहित दंत कुटी, संघाराम, राजकराम यहीं स्थित हैं। यहां से बुद्ध का ननिहाल कपिलवस्तु और जन्मस्थली लुंबिनी भी नजदीक है।
क्या है बुद्ध सर्किट
बौद्ध धर्म के पवित्र स्थल जहां भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था। वहीं पर उन्होंने शिक्षा, उपदेश और ज्ञान तथा निर्वाण प्राप्त किया, उन स्थानों को 'बौद्ध सर्किट' कहा जाता है। ये बौद्ध धर्म, धार्मिक मंदिरों और पवित्र धार्मिक स्थलों के मठों के आध्यात्मिक घर हैं, जहां बौद्ध धर्म के अनुयायी स्वयं भगवान बुद्ध के उपदेशों से जुड़े हुए हैं। बौद्ध तीर्थ स्थल न केवल बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए बल्कि अन्य लोगों के लिए भी पर्यटन केंद्रों के रूप में विकसित हुए हैं।
भारत में बौद्ध सर्किट
बौद्ध सर्किट बिहार के बोधगया, वैशाली और राजगीर, जबकि उत्तर प्रदेश में सारनाथ, श्रावस्ती और कुशीनगर में स्थित हैं। भारत में ये सभी बौद्ध धर्म के लिए मुख्य तीर्थ स्थल हैं।
बोधगया
बोधगया बिहार में स्थित है। बोधगया वह स्थान है, जहां राजकुमार सिद्धार्थ को बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। बोधगया में 49 दिनों के ध्यान के बाद, सिद्धार्थ भगवान 'बुद्ध' कहलाए। बोधगया में महत्वपूर्ण पर्यटन आकर्षण में बोधि वृक्ष (पीपल वृक्ष), महाबोधि मंदिर, राजा अशोक द्वारा दानित व्रजना सिंहासन, मुच्छलदा झील, अनिमेष लोचन चैत्य और कुछ अन्य पवित्र पेड़ जैसे चंक्रमण पथ, रत्नागृह, अजपाल निरोध वृक्ष और राजयतन हैं। यहां म्यांमार, श्रीलंका, जापान, थाईलैंड, भूटान सहित दुनिया के विभिन्न देशों से बौद्ध धर्म के अनुयायी आते हैं। बोधगया में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा भी है। जो इन विदेशी पर्यटकों को उनके गंतव्य तक पहुंचाता है।
सारनाथ
सारनाथ वह स्थान है जहां भगवान बुद्ध ने अपना प्रथम धर्मोपदेश दिया था। भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के पश्चात अपना प्रथम उपदेश यहीं दिया था। सारनाथ वाराणसी शहर से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बुद्ध ने अपने शिष्यों के प्रथम संगठन की स्थापना सारनाथ में ही की थी। सम्राट अशोक द्वारा सारनाथ में भारत के गर्व के प्रतीक, प्रसिद्ध सिंह स्तंभ या अशोक स्तंभ, मूल रूप से धमेख स्तूप का निर्माण करवाया था। पर्यटक यहां चौखंडी स्तूप, मूलगंध कुटी विहार और सारनाथ मठ भी देखने आते हैं।
कुशीनगर
कुशीनगर पूर्वी उत्तर प्रदेश का एक जिला है। कुशीनगर, कपिलवस्तु के करीब है जहां 543 ईसा पूर्व भगवान बुद्ध ने निर्वाण प्राप्त किया था। कुशीनगर में मुकुट बंधन स्तूप और लाल बलुआ पत्थर में बैठी हुई बुद्ध प्रतिमा देखने योग्य महत्वपूर्ण स्थान हैं। वाट थाई मंदिर, चीनी मंदिर, जापानी मंदिर, महानिर्वाण मंदिर आदि कुशीनगर के प्रमुख आकर्षण स्थान हैं। कुशीनगर वह स्थान है, जहां भगवान बुद्ध को मुक्ति मिली थी।
वैशाली
बिहार स्थित वैशाली वह स्थान है जहां भगवान बुद्ध ने अपना अंतिम धर्मोपदेश दिया था। वैशाली, बिहार की राजधानी पटना से नजदीक है। कहा जाता है कि भगवान बुद्ध ने अपने शिष्य आनंद को अपनी आसन्न मृत्यु के बारे में बताया था। यह स्थान दूसरी बौद्ध परिषद के लिए भी जाना जाता है।
राजगीर
बोधगया से लगभग 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित राजगीर वह स्थान है जहां भगवान बुद्ध ने 12 साल बाद मानसून की वापसी करवाई थी। अपने सिद्धांत का प्रसार करते समय, उन्होंने लोटस सूत्र और पांडित्य सिद्धांतों के नियमों के बारे में उपदेश दिया था। भगवान बुद्ध की मृत्यु के बाद उनकी शिक्षाएं संकलित हुईं और समिति में उसका प्रचार हुआ। राजगीर में यात्रा के लिए एक और महत्वपूर्ण स्थल है, नालंदा का विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालय।
श्रावस्ती
कहा जाता है, भगवान बुद्ध बरसात के मौसम में श्रावस्ती में समय बिताना पसंद करते थे। श्रावस्ती वही स्थान है जहां बुद्ध ने अपना पहला धर्मोपदेश दिया था।
लुम्बिनी
लुम्बिनी नेपाल के रुपन्देही जिले में स्थित है। यहीं भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था। लुम्बिनी दुनिया भर में एक प्रमुख बौद्ध तीर्थ स्थल के रूप में जाना जाता है।
बौद्ध तीर्थ मार्ग
लुम्बिनी- बोधगया-सारनाथ-कुशीनगर।