हाईकोर्ट का आदेश : अर्श से फर्श पर आया एम्स प्रशासन, डाक्टर को छुट्टी पर जाने का आदेश जारी
Raebareli News : इलाहाबाद हाईकोर्ट की खण्ड पीठ लखनऊ हाईकोर्ट में अपने अंहकार के कारण अर्श से फर्श पर आने वाले अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स रायबरेली प्रशासन ने आज कोर्ट के आदेश का अनुपालन करते हुये पीड़ित डाक्टर हृदयरोग विशेषज्ञ असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अंकित गुप्ता को छुट्टी पर जाने का आदेश जारी कर दिया।
Raebareli News : इलाहाबाद हाईकोर्ट की खण्ड पीठ लखनऊ हाईकोर्ट में अपने अंहकार के कारण अर्श से फर्श पर आने वाले अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स रायबरेली प्रशासन ने आज कोर्ट के आदेश का अनुपालन करते हुये पीड़ित डाक्टर हृदयरोग विशेषज्ञ असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अंकित गुप्ता को छुट्टी पर जाने का आदेश जारी कर दिया।
गौरतलब हो कि गत दिवस मनमाने आदेश जारी करके डाक्टरों और कर्मचारियों का उत्पीड़न करने वाले अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) रायबरेली के प्रशासनिक अधिकारियों को लखनऊ हाईकोर्ट ने जमकर फटकार लगाते हुए उनके आदेशों को निरस्त कर दिया था। साथ अमेरिका में होने वाली अन्तर्राष्ट्रीय ह्रदयरोग कांफ्रेंस में शामिल होने जाने वाले ह्रदयरोग के विशेषज्ञ असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डा अंकित गुप्ता के पक्ष में चार दिन में आदेश देने के निर्देश दिए।
बताते चलें कि पिछले एक वर्ष से लगातार तरह तरह के उत्पीड़न से जुड़े फरमानों के खिलाफ अधिवक्ता धीरेन्द्र कुमार अग्निहोत्री और विष्णुकांत अवस्थी के माध्यम से हाईकोर्ट लखनऊ में याचिका दायर की थीं। उस याचिका की गम्भीरता को समझते हुये प्रकरण में उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के न्यायमूर्ति अब्दुल मोईन ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान रायबरेली के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर डा. अरविन्द राजवंशी, विभाग अध्यक्ष डा. नीरज कुमारी और डा. अर्चना वर्मा द्वारा डा. अंकित गुप्ता को वाल्टर ई वाशिंगटन कन्वेंशन सेंटर, वाशिंगटन डीसी संयुक्त राज्य अमेरिका में 27 से 30 अक्टूबर तक होने वाले वैश्विक सेमीनार में भाग लेने पर रोक लगाये जाने का आदेश रद्द कर दिया। उनकी परमिशन उनके पेशेंट द्वारा पीआईएल न दाखिल करने के आधार पर निरस्त कर दी गयी।
डाॅ. गुप्ता ने हाईकोर्ट में रिट याचिका संख्या 8774/2024 दायर की। जिसमें एम्स का पक्ष रखते हुये डिप्टी सालिसिटर जनरल भारत सरकार ने कहा था कि याची विगत दो वर्षों में दस से अधिक सेमिनार में भाग ले चुका है। वह प्रोबेशनर हैं। डाक्टरों की कमी है इसलिए मरीजों को जान का खतरा है और अभी तीन साल सर्विस नहीं पूरी किया है। इसलिए उस पर न्यायालय रोक लगाये। लेकिन याची के अधिवक्ता धीरेन्द्र कुमार अग्निहोत्री और विष्णुकांत अवस्थी ने न्यायालय से कहा कि किसी को रोकने का आधार मुकदमा नहीं हो सकता। इस प्रकरण में तो कोई मुकदमा दायर ही नहीं है।
इस पर न्यायाधीश ने कहा कि प्रोबेशनर को रोंकने का कोई नियम एम्स की गाईडलाईन में नहीं है। नियम के बाहर जाकर कोई भी आदेश नहीं पारित किया जा सकता।कारण बताओ नोटिस रोंकने का आधार नहीं हो सकता।डाक्टरों की कमी है तो इसके लिए अधिक डाक्टर नियुक्त करने का अधिकार है। इसके लिए किसी को कैसे रोंका जा सकता है। विवेकाधीन शक्ति का मतलब असीमित शक्ति नहीं है। इसका प्रयोग नियम कानून की सीमाओं में होना चाहिए न कि मनमाने तरीके से।
न्यायालय ने 10 सितम्बर 09 सितम्बर और 03 सितम्बर के आदेश को निरस्त करते हुये आदेशित किया कि चार दिन के अंदर सक्षम अधिकारी निर्णय लें बिना आदेश पाने का इंतजार किये और डिप्टी सालिसिटर जनरल भारत सरकार एसबी पाण्डेय को निर्देशित किया की चौबीस घंटे के अंदर अधिकारियों को आदेश की सूचना देने का आदेश दिया था।