Ram Manohar Lohia Ki Punyatithi: जब लोहिया ने मुलायम सिंह की जेब में रख दिए 100 रुपए का नोट, पढ़ें पूरा वाकया

Ram Manohar Lohia Ki Punyatithi: समाजवाद के प्रणेता डॉ. राम मनोहर लोहिया की आज पुण्यतिथि है। यूपी के पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव इनके सच्चे भक्त कहे जाते हैं।

Written By :  Yogesh Mishra
Written By :  aman
Published By :  Chitra Singh
Update: 2021-10-12 02:57 GMT

राम मनोहर लोहिया - मुलायम सिंह यादव (फाइल फोटो- सोशल मीडिया)

Ram Manohar Lohia Ki Punyatithi: राजनीति व समाज में विचारों के वाहक बनने व सिद्धांतों पर अमल करना वंश वेल की ज़रूरत को ख़त्म कर देता है। हमारे तमाम महापुरुष ऐसे हैं जिनका नाम व काम लोगों के बीच आज भी उनके परिवार की वजह से नहीं बल्कि समर्थकों व अनुयायियों की वजह से ज़िंदा है। इनमें डॉ. भीमराव अंबेडकर, पंडित दीन दयाल उपाध्याय व डॉ. राम मनोहर लोहिया प्रमुख है। इन विचारकों, चिंतकों को उनके परिवार ने नहीं, बल्कि इनके अनुयायियों ने न केवल चिर प्रासंगिक बनाया वरन अमर कर देने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। डॉ. भीमराव अंबेडकर के लिए यह काम किया विंश्वनाथ प्रताप सिंह व कांशीराम ने तो डॉक्टर राम मनोहर लोहिया के लिए मुलायम सिंह ने। उन्होंने उत्तर प्रदेश राजनीति में लोहिया के विचारों वाली की समाजवादी पार्टी बनाई। इस दल का नाम ही डॉ. लोहिया के विचारों (ram manohar lohia ke vichar) को समर्पित रहा। पार्टी के संस्थापक और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव डॉ. राम मनोहर लोहिया के सच्चे भक्त हैं।

रही बात पंडित दीन दयाल उपाध्याय की तो इनके पीछे संघ व भाजपा की बड़ी ताक़त रही। और है। आज भले ही उत्तर प्रदेश की सियासत में अखिलेश यादव व शिवपाल यादव के बीच लोहिया का उत्तराधिकारी होने की भले होड चल रही हो पर जब मुलायम सिंह यादव ने डॉ. लोहिया का परचम उठाया था तब ऐसी कोई होड़ नहीं थी। मुलायम सिंह ने अपनी कोशिशों व मेहनत के बल पर खुद को लोहिया का ऐसा उत्तराधिकारी साबित कर दिया कि लोहिया के तमाम लोगों को रश्क होने लगा। ऐसे में यह सवाल भी उठाया जाने लगा कि लो मुलायम सिंह का लोहिया से क्या लेना देना? आलोचकों ने तो यहाँ तक कहना शुरू किया कि मुलायम कभी लोहिया से मिले ही नहीं। पर आज हम मिथ व हक़ीक़त के बहाने उठाये जा रहे ऐसे सवालों का जवाब देने के लिए तमाम तथ्य व सत्य से आपको रूबरूँ कराते हैं। कई ऐसे किस्से और कहानियां हैं, जो इन दोनों के रिश्ते को रेखांकित करने को काफी है। तो डॉ. लोहिया की पुण्यतिथि के मौके पर एक ऐसी ही कहानी आपके लिए। समाजवाद (Lohia Samajwad) के प्रणेता डॉ. राम मनोहर लोहिया की पुण्यतिथि 12 अक्टूबर को हर साल मनाई जाती है। इस दिन उनके विचारों को याद करते हुए हम नमन करते हैं।

राम मनोहर लोहिया - मुलायम सिंह यादव (डिजाइन फोटो- सोशल मीडिया)

समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव का शुरुआती जीवन संघर्षपूर्ण रहा था। इस दौरान एक वक्त ऐसा भी था, जब 'नेताजी' (मुलायम सिंह के समर्थक उन्हें इसी नाम से बुलाते हैं) के खाने-पीने का इंतजाम भी पार्टी के कार्यकर्ता किया करते थे। एक बार तो डॉ. राम मनोहर लोहिया ने मुलायम सिंह की जेब में 100 रुपए का नोट डाल दिया था। आज कहानी उसी 100 रुपए के नोट से जुड़ी। इस कहानी का जिक्र मुलायम सिंह की राजनीतिक जीवनी 'द सोशलिस्ट' में लेखक फ्रैंक हुजूर ने किया है।

साल 1963 की बात

दरअसल, डॉ. राम मनोहर लोहिया, मुलायम सिंह यादव को बहुत मानते थे। खुद राम मनोहर लोहिया ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। ऐसे कई किस्से हैं, जो यह बताते हैं कि डॉ. लोहिया, उन्हें कितना प्यार करते थे। यह बात है साल 1963 की। फर्रुखाबाद लोकसभा सीट के लिए उपचुनाव था। मुलायम सिंह यादव अपने साथियों के साथ प्रचार में जुटे थे। ये संघर्ष के दिन थे। वह दौर था, जब मुलायम सिंह के पास पैसों का अभाव था। समर्थकों के भरोसे ही उनका चुनाव प्रचार आदि का खर्च चलता था। और, इस बात को सभी वरिष्ठ नेता भी अच्छी तरह से समझते थे।

'लइया चना रखते हैं, लोग भी खिला देते हैं..'

फर्रुखाबाद लोकसभा सीट के लिए उपचुनाव था, ऐसे ही माहौल के बीच एक बार बिधूना विधानसभा में राम मनोहर लोहिया और मुलायम सिंह यादव रास्ते में आमने-सामने हो गए। तब, लोहिया ने मुलायम सिंह से पूछा, कि 'प्रचार के दौरान क्या खाते हो, कहां रहते हो? इस पर मुलायम सिंह ने कहा कि 'लइया चना रखते हैं। लोग भी खिला देते हैं। जहां रात होती है उसी गांव में सो जाते हैं। तब, डॉ. लोहिया ने मुलायम सिंह के कुर्ते की जेब में 100 रुपए का नोट रख दिया था।

राम मनोहर लोहिया - मुलायम सिंह यादव-लइया चना (डिजाइन फोटो- सोशल मीडिया)

लोहिया की शून्यता बरकरार रही

वर्ष 1967 में जब डॉ. राम मनोहर लोहिया का निधन हुआ तब मुलायम सिंह यादव को बड़ा आघात लगा। धीरे-धीरे मुलायम सिंह यादव खुद राजनीतिक जीवन की सीढ़ियां चढ़कर आगे बढ़ते गए। लेकिन उनके जीवन में लोहिया की शून्यता लम्बे समय तक बरकरार रही। इसके बाद मुलायम सिंह दूसरे बड़े समाजवादी नेता चौधरी चरण सिंह के करीब आए। उनके जीवित रहने तक उन्हीं की पार्टी में रहे। एक ऐसा भी वक़्त आया जब चौधरी चरण सिंह ने मुलायम सिंह यादव को सुरक्षा दिलाने के लिए उन्हें विधान परिषद में विपक्ष का नेता तक बना दिया। यह वही दौर था, जब मुलायम सिंह पर जानलेवा हमला हुआ था।

नई पीढ़ी को लोहिया को पढ़ना ही होगा

सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव पहले भी कई मौकों पर कह चुके हैं कि 'यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि नई पीढ़ी अपनी महान समाजवादी विरासत से दूर होती जा रही है। अगर एक समृद्ध और सक्षम भारत का निर्माण करना है और भारत को समझना-जानना है तो नई पीढ़ी को लोहिया को पढ़ना ही होगा।'

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव भी कई मौकों पर कहते रहे हैं कि लोहिया ही हमारे पार्टी के सबसे बड़े आदर्श हैं। 1967 में पहली बार उन्होंने ही 'नेताजी' को टिकट दिया था, जसवंतनगर विधानसभा सीट से। दरअसल, मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक क्षमता को सबसे पहले लोहिया ने ही देखा था।

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