राजकुमार उपाध्याय
लखनऊ। लंबे समय से रियल इस्टेट इंडस्ट्री यानी बिल्डरों व विकास प्राधिरणों की मनमानी पर नियंत्रण के लिए एक रेगुलेटरी अथारिटी के गठन की मांग की जा रही थी। तमाम उपभोक्ता संगठन इसके लिये लड़ाई लड़ रहे थे। केंद्र सरकार ने 2016 में ‘रेरा’ यानी रीयल एस्टेट रेग्यूलेशन एक्ट लागू किया तो लगा था कि लोगों को राहत मिलने वाली है और गैरजिम्मेदार बिल्डरों की शामत आयेगी। केंद्र ने जो कानून बनाया उसमें काफी सख्त नियम बनाये गये थे और सख्त सजा-जुर्माने की व्यवस्था थी।
चूंकि जमीन राज्यों के अधिकार क्षेत्र का मामला है सो सभी राज्यों को यह एक्ट अपने यहां की भौगोलिक-सामाजिक स्थिति के हिसाब से संशोधित करते हुये 31 जुलाई 2017 तक अधिसूचित कर देना था। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि : अधिकांश राज्यों ने केन्द्र द्वारा बनाये गये मूल को ढीला कर दिया है। तथा 28 राज्यों में से मात्र 15 ने ही अब तक ‘रेरा’ लागू किया है।
यूपी में जब रियल इस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम यानि रेरा के लागू करने की घोषणा हुई तो उपभोक्ताओं को लगा कि अंतत: सरकार ने उनकी आवाज सुन ली है, मगर अब रेरा के प्रावधानों में नरमी से वे खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं। ढेरों आवासीय योजनाएं इसके दायरे से बाहर हैं। केन्द्र सरकार ने इस अधिनियम में जो कड़े प्रावधान किए थे उन्हें राज्य सरकार ने ढीला कर दिया है। बिल्डरों पर इस दरियादिली से उपभोक्ता नाराज हैं। प्रदेश सरकार ने रेरा के प्रावधानों में जो फेरबदल किया है उसमें सबसे खास वह नियम है जो चालू यानी निर्माणाधीन परियोजनाओं पर लागू हो रहा है।
ऐसी योजनाएं जिनका कंप्लीशन सर्टिफिकेट (सीसी) अभी जारी नहीं हुआ है, उनके लिए ऐसे मापदंड बनाए गए हैं जिससे उपभोक्ता के प्रति जवाबदेही से बचने के रास्ते मिल रहे हैं।
ऐसी योजनाएं रेरा के दायरे से बाहर
प्रदेश सरकार ने जो नियम बनाए हैं, उसके मुताबिक वे सभी योजनाएं रेरा के दायरे से बाहर हैं जो स्थानीय अधिकारी या फिर कामन एरिया व अन्य सुविधाओं के रखरखाव के लिए रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन को सौंप दी गई हो। इसके अलावा जिन योजनाओं में सभी विकास काम पूरे हो गए हों या विक्रय/लीज डीड का 60 फीसदी काम पूरा कर लिया गया हो या सक्षम प्राधिकारी के समक्ष कंप्लीशन सर्टिफिकेट के लिए आवेदन किया गया हो वे भी रेरा के प्रति जवाबदेह नहीं होंगे। इसकी आड़ में ऐसी ढेरों योजनाएं अथारिटी के कायदे कानून की जद से दूर हो गयी हैं।
दरअसल प्रदेश में संपत्तियों पर कब्जा देने में देरी बिल्डर और उपभोक्ता के बीच विवाद की मुख्य वजह रहा है। नोएडा और ग्रेटर नोएडा में ऐसे सैकड़ों रियल इस्टेट प्रोजेक्ट हैं, जो अपनी तय समय सीमा पार कर चुके हैं। कई ऐसे प्रोजेक्ट हैं जो 10 साल से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी अधूरे हैं। प्रापर्टी के स्वामित्व में देरी और अब रेरा के प्रावधानों में नरमी ने वास्तव में घर पाने की वेटिंग लाइन में खड़े उपभोक्ताओं को निराश किया है, क्योंकि तमाम बिल्डर अपनी व्यावसायिक बुद्धिमत्ता प्रयोग कर रेरा के इन्हीं नियमों की आड़ में अपने मनमाफिक काम करने की फिराक में हैं।
अधिनियम का उद्देश्य
भू-सम्पदा विनियामक अधिनियम, 2016 भारत के संविधान का अधिनियम है जिसे घर खरीदने वाले उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा करने के साथ-साथ रियल इस्टेट व्यवसाय में निवेश को बढ़ावा देने के लिए लागू किया गया है। यह अधिनियम 1 मई, 2016 से लागू है। इसका मुख्य उद्देश्य रियल इस्टेट क्षेत्र पर नियंत्रण और परियोजनाओं में पारदर्शिता लाना है ताकि आम जनता को विकासकर्ताओं के बारे में सही व पूरी जानकारी मिल सके।
आसानी से मिल सकेगी जानकारी
भू-संपदा विनियामक प्राधिकरण ऐसी व्यवस्था है, जिसमें विकासकर्ता के विरुद्ध किसी भी गड़बड़ी पर शिकायत दर्ज करायी जा सकती है। प्राधिकरण कानूनी तौर पर आवासीय और व्यावसायिक योजनाओं में धनराशि के लेन-देन पर नियंत्रण रख सकेगा। विकासकर्ता अपनी परियोजना से संबंधित सभी सूचनाएं जैसे-परियोजना मानचित्र, ले-आउट प्लान, शासकीय स्वीकृतियां, भूस्वामित्व विवरण, परियोजना के सब-कान्ट्रैक्ट, काम के शेड्यूल आदि प्राधिकरण को उपलब्ध कराएंगे। इससे उपभोक्ताओं को ऐसी सभी जानकारी आसानी से मिल सकेगी।
तीन साल के कारागार व जुर्माने का प्रावधान
अधिनियम में ट्रिब्यूनल की भी व्यवस्था की गयी है। इसके किसी आदेश का उल्लंघन करने पर अधिकतम तीन वर्ष तक के कारागार या जुर्माने का प्रावधान है। सामान्य तौर पर यदि किसी परियोजना में विलंब होता है तो उसमें विकासकर्ता को कोई विशेष नुकसान नहीं होता है, पर अब यह तय किया गया है कि कोई विलंब होने पर विकासकर्ता को धनराशि पर वही ब्याज दर देनी होगी जो ब्याज दर उपभोक्ताओं से मासिक किस्त वसूलते समय ली जाती है।
अब तक आवास की बुकिंग के नाम पर बिल्डर उपभोक्ताओं से 60 से 70 प्रतिशत तक धनराशि जमा करा लेते थे, लेकिन अब बिल्डरों को उपभोक्ताओं से मिले पैसे बैंक खाते में जमा करने के साथ ही हिसाब देना होगा। बुकिंग के नाम पर लिए गए पैसों का उपयोग बिल्डर केवल उक्त बिल्डिंग के निर्माण कार्य में ही कर सकेंगे। नये नियमों में विकासकर्ताओं के साथ ब्रोकरों को भी जिम्मेदार बनाया गया है। यदि कोई ब्रोकर सही जानकारी नहीं देता है तो एक साल की जेल और जुर्माने का प्रावधान है।
कब से लागू होंगे प्रावधान
केंद्र सरकार का भू-संपदा (नियमन एवं विकास) अधिनियम-2016 यानी रेरा बीते एक मई 2016 से लागू है। राज्य सरकार ने उप्र रियल इस्टेट (रेगुलेशन्स एण्ड डेवलपमेण्ट)-2016 पिछली 27 अक्टूबर, 2016 से लागू किया है। शासन ने स्पष्ट किया है कि जिस तारीख में अधिसूचना जारी हुई है उसके बाद ही रेरा के प्रावधान लागू होंगे।
रेरा के तहत बिल्डरों से संबंधित मामलों को 60 दिन में हल करने की समय सीमा तय की गई है। उपभोक्ता के साथ बिल्डर भी उपभोक्ता से संबंधित समस्याओं को रेरा के सामने रख सकते हैं। दोनों स्थितियों में तय समय सीमा में शिकायतों का निस्तारण करना होगा।
ऐसे मिल सकता है फायदा
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गत 26 जुलाई को उप्र रियल इस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी की वेबसाइट का लोकार्पण किया। वेबसाइट लांच होने के बाद बिल्डरों और उपभोक्ताओं में कनफ्यूजन बढ़ गया है। अधिकारियों का कहना है कि प्रदेश में रेरा बिना किसी संशोधन के लागू किया गया है जबकि विशेषज्ञों का कहना है, कि नियमों में फेरबदल किया गया है जिसका फायदा निर्माणाधीन प्रोजेक्ट को मिल सकता है। यदि किसी प्रोजेक्ट में बिजली, लिफ्ट या पानी की आपूर्ति का काम पूरा हो गया है और उन्हें टावर वाइज ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट (ओसी) दिया जा चुका है तो उसी आधार पर उन्हें रेरा के दायरे से बाहर किया जा सकता है।
जल्द होगी अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति
यूपी रेरा के अध्यक्ष और सदस्यों के चयन के लिए आए आवेदन पत्रों की सर्च कमेटी स्क्रूटनी कर रही है। उम्मीद जताई जा रही है, कि जल्द ही अध्यक्ष और सदस्यों के चयन की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी।
डेवलपरों पर रेरा की मार
रियल एस्टेट (नियमन एवं विकास) अधिनियम या रेरा की मार छोटे डेवलपर्स पर पड़ी है। बड़े कारोबारियों के मुताबिक किसी परियोजना को समय पर तैयार करके डिलिवरी देना रेरा में गंभीर मसला है। कानून बहुत सख्त है। अगर 15 लोग भी आपकी परियोजना में फ्लैट खरीद लेते हैं तो उसे आपको पूरा करना होगा। इसके लिए आपके पास वित्तीय साधन और परियोजना क्रियान्वयन का कौशल होना चाहिए। ज्यादातर के पास यह नहीं है। इसका असर छोटे डेवलपरों पर पडऩा तय माना जा रहा है।
विभागीय प्रमुख ही रेगुलेटरी अथारिटी
भू-संपदा (विनियमन एवं विकास) अधिनियम-2016 के तहत रियल इस्टेट रेगुलेटरी अथारिटी के औपचारिक गठन होने तक अपर मुख्य सचिव आवास एवं शहरी नियोजन विभाग को एक मई से रेगुलेटरी अथारिटी बनाया गया था मगर अब इसमें संशोधन किया गया है। अब अपर मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव व सचिव आवास एवं शहरी नियोजन विभाग में से जो भी विभाग के प्रमुख के रूप में कार्यरत हों, उन्हें एक मई से रेगुलेटरी अथारिटी बनाया गया है।
केंद्रीय एक्ट में यह है प्रावधान
धारा 59-उपधारा 2 के बार-बार उल्लंघन पर तीन वर्ष के कारावास की सजा या परियोजना के लागत का 10 फीसदी तक जुर्माना देना होगा या फिर कारावास और जुर्माना दोनों दंड एक साथ भी दिया जा सकता है।
= धारा 64-यदि प्रमोटर (प्रवर्तक) अपील प्राधिकरण के आदेशों का पालन नहीं करता है तो उसे तीन वर्ष की कारावास या जुर्माना अथवा दोनों दंड एक साथ दिया जा सकता है।
= धारा 66-यदि रियल इस्टेट एजेंट अपील प्राधिकरण के आदेश का पालन नहीं करता है तो उसे एक साल तक की सजा या प्रापर्टी की लागत का 10 फीसदी जुर्माना अथवा दोनों दंड एक साथ दिया जा सकता है।
= धारा 68-यदि आवंटी अपील अधिकरण के आदेश का पालन नहीं करता है तो उसे एक साल की सजा या प्रापर्टी की लागत का दस फीसदी तक जुर्माना अदा करना होगा या फिर दोनों दंड एक साथ दिया जा सकता है।
यूपी रेरा के प्रावधान हुए ढीले
धारा 59-उपधारा 2 के उल्लंघन पर कारावास के मामले में समझौते के लिए धनराशि का भुगतान किया जाएगा। कारावास की अवधि के अनुपात में यह धनराशि प्रोजेक्ट के अनुमानित लागत के दस फीसदी से ज्यादा नहीं होगी और अधिकतम तीन वर्षों के लिए होगी।
= धारा 64- उक्त
= धारा 66-रियल इस्टेट एजेंट को एक साल के लिए प्रापर्टी की लागत का अधिकतम 10 प्रतिशत तक जुर्माना देना होगा।
= धारा 68-आवंटी को एक साल के लिए प्रापर्टी की लागत का अधिकतम 10 फीसदी तक जुर्माना देना होगा।
बिल्डरों के बच निकलने का रास्ता साफ
आम नागरिक रेरा का विरोध कर रहे हैं। इसके प्रावधानों को अखिलेश सरकार में ही ड्राफ्ट किया गया था। तब सरकार और बिल्डरों की मिलीभगत से एक्ट के प्रावधानों को कमजोर करने का आरोप लगा था और अब उसी ड्राफ्ट को कुछ संशोधनों के साथ आगे बढ़ा दिया गया है। साफ है कि अथारिटी बनने के बावजूद बिल्डरों को बच निकलने का रास्ता साफ हो गया है।
रेरा के दायरे में ऐसे प्रोजेक्ट
बिल्डर और उपभोक्ता अब भी यह समझ नहीं पा रहे हैं कि उनका प्रोजेक्ट रेरा के दायरे में है या नहीं। जानकारों के मुताबिक 500 वर्गमीटर या आठ फ्लैट वाले हर डेवलपर्स रेरा के दायरे में है। यदि कोई 400 वर्ग मीटर में छह फ्लैट बनाता है तो वह इसकी जद से बाहर है पर यदि इतने ही क्षेत्रफल में कोई आठ फ्लैट बनाता है तो वह इसके दायरे में होगा। इसी तरह 500 वर्गमीटर में चार फ्लैट बनाने वाला भी रेरा के दायरे में आएगा। अब तक कंप्लीशन सर्टिफिकेट नहीं ले पाने वाले डेवलपर्स भी रेरा के तहत आएंगे। साफ है कि परियोजना का पंजीयन उस दशा में नहीं होगा जहाँ विकसित किए जाने वाला भू क्षेत्र पांच सौ वर्ग मीटर से अधिक नहीं है, या विकसित किए जाने वाले अपार्टमेंटों की संख्या सभी फेजों में मिलाकर आठ से अधिक नहीं है।
व्यापारी प्रावधान को बता रहे कठोर
व्यापारी तर्क दे रहे हैं कि रेरा के प्रावधान काफी कठोर हैं और कई मामलों में डेवलपर के सीधे नियंत्रण से बाहर हैं। वे प्रोजेक्ट में देरी के लिए सरकारों को ही जिम्मेदार ठहराते हैं और तर्क देते हैं कि इंफ्रास्ट्रक्चर प्रावधानों की मंजूरी में देरी होती है। उधर उपभोक्ता प्रावधानों में नरमी से परेशान हैं, अब उन्हें अपने विरोध प्रदर्शन से ही उम्मीद है।
निजी व सरकारी विभागों की जवाबदेही तय
इसमें निजी विकासकर्ताओं के साथ सरकारी विभागों की भी जवाबदेही तय की गई है। यदि सरकारी एजेंसी तय समय पर काम पूरा नहीं करती है तो संबंधित अफसर भी जिम्मेदार होंगे। निजी बिल्डरों के साथ सरकारी विभागों को भी तय समय सीमा पर आवास देना होगा। ऐसा नहीं होने पर समान नियम लागू होंगे।
चुन-चुन कर नियमों की कुंद की गई धार
सरकार की मेहरबानी बिल्डर लॉबी पर जमकर बरसी है। केंद्र सरकार ने रेरा एक्ट में दंड का जो प्रावधान किया है उसकी धार को राज्य सरकार ने चुन-चुन कर खत्म कर दिया है। अधिसूचना के मुताबिक किसी भी अपराध पर बिल्डर को अधिकतम सजा के तौर पर जुर्माना भरना पड़ सकता है।
निवेशक का पैसा सुरक्षित
अर्थ इंफ्रा के वाइस प्रेसिडेंट इरफान का कहना है कि रेरा को लेकर दिक्कत उन बिल्डरों को है, जिनके पास जरूरी अप्रूवल नहीं है। उपभोक्ता बस यही चाहता है कि प्रापर्टी उसे कब सौंपी जाएगी। रेरा के लागू होने से उपभोक्ता खुश हैं। उनका पैसा सुरक्षित है। क्रेडाई के सदस्य एसके गर्ग रेरा के प्रावधानों में नरमी को सिरे से खारिज करते हुए कहते हैं कि सबकुछ एक्ट के हिसाब से ही है। इसके लागू होने से अच्छे बिल्डर अलग दिखाई पड़ेंगे। उपभोक्ता का विश्वास बढ़ेगा और खराब काम करने वालों पर कार्रवाई होगी।
प्रोजेक्ट का परीक्षण कर रहे हैं:
प्रमुख सचिव आवास प्रमुख सचिव आवास मुकुल सिंघल ने यूपी रेरा के दंड के प्रावधानों को हल्का किए जाने को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि एक्ट में कम्पाउंडिंग (समझौते) का प्रावधान है। उसी को लेकर यूपी रेरा में यह व्यवस्था की गई है। निर्माणाधीन प्रोजेक्ट के पंजीकरण नियमों में बदलाव पर उन्होंने कहा कि हम लोग ऐसे प्रोजेक्ट का परीक्षण कर रहे हैं जो एक्ट के हिसाब से निर्माणाधीन होने चाहिए पर नियमों के मुताबिक नहीं हो पाए हैं।